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केजीएमयू के डॉक्टर ने बदल दिया सविदा कर्मी का बिसरा सैंपल Photograph: (YBN)
- अयोध्या मेडिकल कॉलेज के संविदा कर्मी की आत्महत्या का मामला
- पूर्व प्राचार्य डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार के रसूख के आगे सिस्टम बौना
अयोध्या मेडिकल कॉलेज (AMC) के संविदा कर्मी प्रभुनाथ मिश्रा की आत्महत्या ने चिकित्सा जगत में सफेद कोट के पीछे छिपे कलंकित चेहरे को बेनकाब कर दिया है। संविदा कर्मी को प्रताड़ित करने के आरोपित अयोध्या मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ ज्ञानेंद्र कुमार के रसूख के आगे सिस्टम बौना साबित हुआ। ज्ञानेंद्र कुमार ने कर्मचारी की मौत के बाद सच्चाई को दफन करने की हर मुमकिन कोशिश की। इसमें उसका साथ धरती के भगवान कहे जाने वाले एक चिकित्सक ने दिया। केजीएमयू के पोस्टमार्टम हाउस में प्रभुनाथ मिश्रा के बिसरा सैंपल को बदल दिया गया। ताकि सच सामने न आ सके। हैदराबाद की सीडीएफडी लैब में डीएनए जांच ने इस घिनौनी साजिश की परतें खोल दीं। डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक की ओर से जांच आदेश देना पीड़ित परिवार को थोड़ी राहत जरूर देगा। पर जब तक ऐसे रसूखदार और निर्दयी चेहरों को कानून के कठघरे में लाकर सजा नहीं दी जाती, तब तक प्रभुनाथ जैसे न जाने कितने लोग ऐसे ही अन्याय और अत्याचार की भेंट चढ़ते रहेंगे।
प्रताड़ता से तंग आकर प्रभुनाथ ने खाया जहर
मृतक के परिजनों के अनुसार, अयोध्या मेडिकल कॉलेज में प्रभुनाथ मिश्रा संविदा कर्मी के रूप में कार्यरत थे। उनकी ड्यूटी पर्चा बनाने वाले काउंटर पर थी। 29 जुलाई 2024 को सुबह 11 बजे 2020 बैच की एमबीबीएस छात्राएं ऋतु और निर्मला कुमावत जबरन पर्चा बनवाने का दबाव बनाती हैं, लेकिन प्रभुनाथ नियमों का हवाला देते हुए मना कर देते हैं। इसके बाद छात्राओं ने साथियों संग उनकी पिटाई की। मामला डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार तक पहुंचा। उन्होंने प्रभुनाथ को आठ दिन तक बुलाकर अपशब्द कहे और सात अगस्त को छात्राओं से माफी मांगने का दबाव बनाया। मना करने पर एससी-एसटी एक्ट में फंसाने की धमकी दी। मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न से परेशान होकर प्रभुनाथ ने जहर खा लिया। हालत बिगड़ने पर परिजनों को पूरी बात बताई।
मेडिकल कॉलेज में प्रभुनाथ को घोषित किया शराबी
परिजन प्रभुनाथ को आनन-फानन इलाज के लिए अयोध्या मेडिकल कालेज लेकर पहुंचते हैं। लेकिन वहां ज्ञानेंद्र कुमार अपने रसूख के चलते इलाज कर रहे डॉक्टर से मेडिकल पर्चे में प्रभुनाथ को 'अल्कोहलिक' (शराबी) घोषित कर दिया। जबकि प्रभुनाथ शराब को छूता तक नहीं था। रात में लगभग आठ बजे प्रभुनाथ को भर्ती किया जाता है। उसके बाद ज्ञानेंद्र कुमार के राउंड पर आते ही प्रभुनाथ की हालत और बिगड़ जाती है। परिजन बार-बार मरीज को किसी बेहतर अस्पताल में रेफर करने की गुहार लगाते हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती। अगले दिन दोपहर में परिजन किसी तरह मिन्नतें करके प्रभुनाथ को डिस्चार्ज कराकर अयोध्या से लखनऊ के लोहिया अस्पताल लेकर पहुंचते हैं। यहां इलाज के दौरान प्रभुनाथ की मौत हो जाती है।
मृतक संविदा कर्मी के खिलाफ ही दर्ज हुई एफआईआर
प्रभुनाथ की मौत की सूचना मिलते ही दोनों छात्राएं निर्मला कुमावत और ऋतु खुद को बचाने में जुट जाती हैं। दोनों प्रभुनाथ से 29 जुलाई को हुए विवाद के मामले में थाने में आठ अगस्त 2024 की रात तीन बजे शिकायती पत्र देती हैं। आमतौर पर आधी रात को इस तरह की शिकायतें नहीं ली जातीं। रात तीन बजे ही मृतक प्रभुनाथ मिश्रा पर मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है। इधर दूसरी तरफ लखनऊ के विभूतिखंड थाने में प्रभुनाथ का पंचनामा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया और बिसरा संरक्षित किया गया। परिजनों ने अयोध्या कोतवाली में डॉ. ज्ञानेंद्र, ऋतु और निर्मला कुमावत के खिलाफ तहरीर दी, लेकिन पुलिस ने मुकदमा दर्ज नहीं किया। परिजन न्याय के लिए भटकते रहे। अंततः कोर्ट के आदेश पर सात नवंबर को एफआईआर दर्ज की गई।
60 कर्मचारियों ने शपथ पत्र में की प्रभुनाथ के उत्पीड़न की पुष्टि
इस मामले में डीएम अयोध्या चंद्र विजय सिंह ने मजिस्ट्रियल जांच के आदेश दिए। परिजनों का आरोप है कि मजिस्ट्रेट संदीप श्रीवास्तव ने बिना आरोपियों को बुलाए ही डॉ. ज्ञानेंद्र, ऋतु और निर्मला को क्लीन चिट दे दी। जबकि 60 कर्मचारियों ने शपथ पत्र में प्रभुनाथ के उत्पीड़न की पुष्टि की थी। न्याय की मांग को लेकर प्रभुनाथ के पिता ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा। मामले की गंभीरता को देखते हुए डॉ. ज्ञानेंद्र को अस्थायी रूप से मेडिकल कॉलेज से हटाया गया। परिजन प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा से मिले, लेकिन निराश लौटे।
डीएनए मिलान के लिए बिसरा हैदराबाद भेजा
प्रभुनाथ मिश्रा के पिता जगदीश मिश्रा को बिसरा रिपोर्ट में जहर नहीं पाए जाने के बाद न्याय की उम्मीद टूट गई। लेकिन वकील की सलाह पर मेडिको लीगल परीक्षण कराया गया। डॉ. जी खन की रिपोर्ट में मृत्यु का कारण एस्फिक्सिया (घुटन) बताया गया। बिसरा रिपोर्ट और मेडिको लीगल रिपोर्ट में विरोधाभास देखकर परिजनों को बिसरा में छेड़छाड़ का शक हुआ। उन्होंने लखनऊ पुलिस को पत्र लिखकर बिसरा के डीएनए परीक्षण के लिए डीएनए फिंगर प्रिंटिंग एवं निदान केंद्र (सीडीएफडी) भेजने की अपील की। पुलिस ने प्रभुनाथ का बिसरा और उनके माता-पिता का ब्लड सैंपल डीएनए मिलान के लिए हैदराबाद भेजा।
सीडीएफडी की रिपोर्ट में खुली सफेद कोट की काली करतूत
सीडीएफडी ने 27 मार्च 2025 को डीएनए मिलान रिपोर्ट जारी की। जो 12 अप्रैल को प्रभुनाथ के परिजनों को दी गई। रिपोर्ट पढ़कर परिजनों के पैरों तले जमीन खिसक गई। सीडीएफडी की डॉ. पूजा त्रिपाठी ने रिपोर्ट लिखा कि प्रभुनाथ के बिसरा नमूनों का माता-पिता के खून से मिलान करने पर किसी भी प्रकार का जैविक संबंध नहीं पाया गया। इसका मतलब था कि केजीएमयू मोर्चरी के डॉक्टर ने डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार से मिलीभगत कर बिसरा बदल दिया और दूसरे शव से सैंपल लेकर उसे प्रभुनाथ के नाम पर दर्ज कर दिया। डिप्टी सीएम और यूपी के स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक ने इस मामले की जांच के आदेश दिए हैं।