प्रदेश में 13 एनआईसीयू, 119 एसएनसीयू और 410 एनबीएसयू सक्रिय
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। गर्भधारण से प्रसव पूर्व तक सभी जरूरी जांचें... प्रसव के दौरान और जन्म के समय जच्चा-बच्चा की निगरानी...नवजात के जन्म के समय देखभाल... स्वस्थ शिशु की देखभाल...कम वजन व बीमार नवजात की देखभाल और जीवित रखने से आगे की देखभाल । इन छह बिंदुओं पर अगर ध्यान दिया जाए तो हर प्रीटर्म (समय से पहले) शिशु को बचाया जा सकता है।
गर्भवती महिलाएं सरकारी अस्पताल में ही प्रसव कराएं
यह कहना है किंग जार्ज मेडिकल विश्वविद्यालय की बाल रोग विभाग की प्रोफेसर डॉ शालिनी त्रिपाठी का। उन्होंने सोमवार को बताया कि ये छोटी-छोटी सावधानियां बरत ली जाएं तो हम बहुत से प्रीटर्म शिशुओं को बचा सकते हैं। आज गांव से लेकर शहर तक सरकारी अस्पताल सक्रिय हैं। सभी गर्भवती महिलाएं सरकारी अस्पताल में ही प्रसव कराएं। प्रसव के तुरंत बाद शिशु से लेकर छह माह तक सिर्फ स्तनपान कराएं। जन्म के समय शिशु की अच्छे से देखभाल करें। डॉक्टर के परामर्श पर ही बच्चे को घर ले जाएं। यूनिसेफ के सर्वे के मुताबिक 53 प्रतिशत कम वजन वाले बच्चे प्रसव के बाद घर चले जाते हैं। कम वजन वाले व बीमार शिशु का खास ख्याल रखना चाहिए।
100 में से 10 शिशु जन्म के फौरन बाद नहीं रोते
डॉ. शालिनी ने बताया कि 100 में से 10 शिशु ऐसे होते हैं, जो जन्म के फौरन बाद नहीं रोते हैं। इन्हीं शिशुओं को विशेष देखभाल की जरूरत होती है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के मुताबिक 24.5 प्रतिशत शिशु ही जन्म के पहले एक घंटे में स्तनपान कर पाते हैं। इसलिए जरूरी है कि मा-बच्चे को साथ रखें और बच्चे को शीघ्र स्तनपान कराएं। उन्होंने कहा कि स्त्री रोग विभाग व बाल रोग विभाग में बेहतर आपसी समन्वय नवजात की देखभाल में काफी मददगार हो सकता है। लैंसेट ग्लोब हेल्थ रिपोर्ट 2019 के मुताबिक, प्रीटर्म बर्थ जटिलताओं से 44.9 प्रतिशत शिशुओं की मौत हो जाती है। शिशुओं की मौत का दूसरा बड़ा कारण इंट्रापार्टम यानी बच्चे के मां से अलग होने का समय है।
अस्पतालों में बन रहे न्यूबार्न केयर कार्नर
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के महाप्रबंधक डॉ सूर्यांशु ओझा ने बताया कि सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) के अनुसार, वर्ष 2030 तक नवजात मृत्यु दर 12 प्रति एक हजार कम वजन वाले बच्चों से कम होनी चाहिए। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उत्तर प्रदेश को अधिक काम करने की जरूरत है। इसके लिए प्रदेश सरकार विभिन्न तरह के प्रयास कर रही है। प्रदेश में केजीएमयू के अलावा गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में स्टेट न्यूबार्न रिसोर्स सेंटर स्थापित किए गए हैं। इसके अलावा जिला अस्पतालों में न्यूबार्न केयर कार्नर बनाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस समय प्रदेश में 13 न्यूबार्न इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू), 119 सिक न्यूबार्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) और 410 न्यूबार्न स्टेबलाइजेशन यूनिट (एनबीएसयू) सक्रिय तौर पर काम कर रहे हैं। प्रदेश सरकार की लगातार कोशिश है कि कोई भी नवजात इलाज के अभाव में दम न तोड़े।