लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता
होली का त्योहार रंगों और उमंग के साथ-साथ खास पकवानों के लिए भी जाना जाता है। इन्हीं में से एक है गुजिया, जो इस पर्व की मिठास को दोगुना कर देती है। इस वर्ष यह उत्सव 14 मार्च को मनाया जाएगा। जबकि होलिका दहन 13 मार्च की रात को किया जाएगा। देश के हर हिस्से में होली के अवसर पर गुजिया बनाई और खिलाई जाती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पहली गुजिया कब और कैसे बनी होगी? इस पारंपरिक मिठाई का इतिहास बेहद रोचक और दिलचस्प है। गुजिया भारतीय व्यंजनों में विशेष स्थान रखती है, लेकिन इसके इतिहास को लेकर बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। पुराने शास्त्रों और ग्रंथों में इसका नाममात्र ही उल्लेख हुआ है। हालांकि, पारंपरिक कहानियों और ऐतिहासिक संदर्भों से इसके विकास के बारे में कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आते हैं।
प्रदेश के बुंदेलखंड से हुई थी शुरुआत
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, गुजिया की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में हुई थी। 16वीं और 17वीं सदी के दौरान यह मिठाई लोकप्रिय हुई। धीरे-धीरे यह उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में भी प्रचलित हो गई। प्रसिद्ध लेखिका नंदिता अय्यर ने अपनी पुस्तक The Great Indian Thali में इस मिठाई का उल्लेख किया है, जिसमें बताया गया है कि पहले के मुकाबले गुजिया बनाने की विधि में काफी बदलाव आ चुका है। इतिहासकारों के अनुसार गुजिया से मिलती-जुलती एक मिठाई 13वीं शताब्दी में भी बनाई जाती थी। उस दौर में इसे गेहूं के आटे से तैयार किया जाता था और भरावन के लिए गुड़ और शहद का इस्तेमाल किया जाता था। इसे धूप में सुखाकर लंबे समय तक सुरक्षित रखा जाता था।
विदेशी व्यंजनों से भी है समानता
ऐसा माना जाता है कि मध्यकालीन भारत में जब अरब और तुर्की के व्यापारी यहां आए, तो वे अपने साथ कई तरह के व्यंजन भी लाए। तुर्की का प्रसिद्ध व्यंजन बकलावा दिखने और स्वाद में काफी हद तक गुजिया से मेल खाता है। इतिहासकारों का मानना है कि मुगलकाल में भारतीय मिठाइयों पर भी विदेशी व्यंजनों का प्रभाव पड़ा और गुजिया को मुगल शाही रसोई में और निखारा गया। मुगल रसोई में कई तरह की पारंपरिक मिठाइयों का विकास हुआ। ऐसा माना जाता है कि 15वीं और 16वीं सदी में मुगल खानसामों ने गुजिया में बदलाव किए और इसे त्योहारों के लिए खास तौर पर तैयार किया जाने लगा।
आधुनिक गुजिया का विकास
17वीं शताब्दी के बाद गुजिया के निर्माण में बदलाव आया। पारंपरिक गेहूं के आटे की जगह मैदा का उपयोग होने लगा और भरावन में खोया, सूखे मेवे और चीनी का मिश्रण किया जाने लगा। आज के समय में अलग-अलग राज्यों में गुजिया के कई प्रकार बनाए जाते हैं गुजिया की विभिन्न किस्में पूरे भारत में लोकप्रिय हैं और हर क्षेत्र में इसे अलग-अलग तरीके से बनाया जाता है। राजस्थानी मावा गुजिया खोए और सूखे मेवों से भरकर बनाई जाती है, जो इसका एक समृद्ध स्वाद प्रदान करती है। उत्तर भारतीय सूजी वाली गुजिया में सूजी और खोए का मिश्रण भरा जाता है, जिससे इसका स्वाद हल्का और कुरकुरा होता है। वहीं, चाशनी में डूबी हुई गुजिया विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार में बनाई जाती है, जहां तली हुई गुजिया को मीठी चाशनी में डुबोकर इसका स्वाद और भी लाजवाब बना दिया जाता है।
गुजिया का महत्व आज भी बरकरार
समय के साथ गुजिया के स्वाद और बनाने के तरीके में बदलाव आया है, लेकिन यह मिठाई आज भी भारतीय त्योहारों, खासकर होली का अभिन्न हिस्सा बनी हुई है। इसकी मिठास न केवल स्वाद में, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपराओं में भी घुली हुई है। यही कारण है कि होली आते ही हर घर में गुजिया बनाने की खुशबू फैल जाती है और यह पारंपरिक मिठाई हमारी खुशियों को और बढ़ा देती है।