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मंडलायुक्त ने कठौता झील—कुकरेल नदी में डी-शिल्टिंग का कार्यों का लिया जायजा
लखनऊ में जल संरक्षण और जलभराव की समस्या से निपटने के लिए प्रशासन द्वारा कठौता झील और कुकरेल नदी में डी-शिल्टिंग (गाद हटाने) और ड्रेजिंग (तल सफाई) कार्य तेजी से कराया जा रहा है। इसी क्रम में सोमवार को मंडलायुक्त डॉ. रोशन जैकब ने दोनों स्थलों का औचक निरीक्षण कर कार्य की स्थिति का जायजा लिया और संबंधित अधिकारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए।
कठौता झील में युद्धस्तर पर सफाई कार्य जारी
डॉ. जैकब सबसे पहले गोमतीनगर स्थित कठौता झील पहुंचीं, जहां उन्होंने मौके पर मौजूद पोकलैंड और अन्य मशीनरी द्वारा चल रहे डी-शिल्टिंग कार्य का निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान उन्होंने पाया कि झील की सतह पर जमा शिल्ट को मशीनों के माध्यम से हटाया जा रहा है। उन्होंने उपस्थित अधिकारियों को निर्देश दिया कि कार्य में और अधिक तेजी लाई जाए। इसके लिए न सिर्फ मशीनों की संख्या बढ़ाई जाए, बल्कि मैनपॉवर में भी बढ़ोतरी की जाए, ताकि तय समय सीमा में कार्य पूर्ण किया जा सके। उन्होंने कहा कि झील की सफाई से इसकी जलधारण क्षमता में तीन गुना तक इजाफा किया जाना चाहिए, जिससे मानसून के समय जलभराव की स्थिति से प्रभावी ढंग से निपटा जा सके।
कुकरेल नदी में 4.4 किलोमीटर लंबा डी-शिल्टिंग प्रोजेक्ट
कठौता झील के निरीक्षण के बाद मंडलायुक्त डॉ. रोशन जैकब कुकरेल नदी के निरीक्षण पर भी पहुंचीं। निरीक्षण के दौरान उन्हें अधिकारियों ने जानकारी दी कि नदी की डी-शिल्टिंग का कार्य भीखमपुर से खुर्रमनगर तक किया जाना है, जिसकी कुल लंबाई लगभग 4.4 किलोमीटर है। यह कार्य शहर के जल निकासी तंत्र को दुरुस्त करने के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
परियोजना से निवासियों को बड़ी राहत
डॉ. जैकब ने सिंचाई विभाग के अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए कि इस कार्य को अगले डेढ़ महीने के भीतर हर हाल में पूरा किया जाए। उन्होंने कहा कि बरसात के मौसम में कुकरेल नदी के किनारे बसे क्षेत्रों में जलभराव की समस्या लंबे समय से बनी हुई है, और इस परियोजना के समय पर पूरा होने से वहां के निवासियों को बड़ी राहत मिलेगी।
जल संरक्षण और शहरी नियोजन के लिए अहम कदम
मंडलायुक्त ने यह भी स्पष्ट किया कि यह अभियान केवल जलनिकासी की समस्या के समाधान के लिए नहीं, बल्कि शहर में जल संरक्षण को बढ़ावा देने की दिशा में भी एक अहम कदम है। झील और नदी की सफाई से जहां बारिश का पानी बेहतर तरीके से संरक्षित किया जा सकेगा, वहीं बाढ़ जैसे हालात से निपटने की प्रशासन की क्षमता भी बढ़ेगी।