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बिजली कर्मचारियों ने निजीकरण के विरोध में किया प्रदर्शन

यूपी में 42 जिलों और कई बड़ी बिजली परियोजनाओं में कर्मचारियों ने भोजनावकाश के दौरान धरना दिया। उन्होंने सरकार से तुरंत निजीकरण की प्रक्रिया रोकने की मांग की।

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Anupam Singh
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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता।  27 लाख बिजली कर्मचारी पूरे भारत में विरोध में उतर आए हैं। लखनऊ में उन्होंने शक्ति भवन के बाहर प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि निजीकरण से बिजली सेवा प्रभावित होगी और कर्मचारियों की नौकरी खतरे में पड़ जाएगी। उत्तर प्रदेश में खासतौर पर प्रदर्शन हुआ। 42 जिलों और कई बड़ी बिजली परियोजनाओं में कर्मचारियों ने भोजनावकाश के दौरान धरना दिया। उन्होंने सरकार से तुरंत निजीकरण की प्रक्रिया रोकने की मांग की। यह विरोध सरकार की उस योजना के खिलाफ है, जिसमें बिजली क्षेत्र को निजी हाथों में देने का प्रयास किया जा रहा है। कर्मचारी चाहते हैं कि बिजली सेवाएं जनता के हित में रहें और उनकी नौकरी सुरक्षित रहे।सरकार का कहना है कि निजीकरण से बिजली व्यवस्था मजबूत होगी, लेकिन कर्मचारियों का कहना है कि इससे उनकी आजीविका पर असर पड़ेगा। प्रदर्शन जारी है, और सरकार से बातचीत की उम्मीद है।

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यूपी के 42 जिलों में किया गया विरोध प्रदर्शन

संघर्ष समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने आरोप लगाया है कि निजीकरण की प्रक्रिया में एक ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट, ग्रांट थॉर्टन, को गलत जानकारी और झूठे शपथ पत्र के बावजूद फिर से नियुक्त कर दिया गया है। इस फैसले के खिलाफ इंजीनियर ऑफ कांट्रैक्ट ने सिफारिश की थी कि उसकी नियुक्ति रद्द कर दी जाए, लेकिन यह नहीं माना गया। साथ ही, निधि नारंग, जो वित्त विभाग की निदेशक हैं, को तीसरी बार सेवा विस्तार भी इसी मिलीभगत के कारण मिला है। यह मामला सरकारी प्रक्रिया में पारदर्शिता और सही निर्णय लेने की प्रक्रिया पर सवाल खड़े करता है।

निजी कंपनियों को पहुंचाया जा रहा फायदा

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संघर्ष समिति सदस्यों कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार जानबूझकर घाटे के आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रही है। राज्य में निजी बिजली उत्पादक कंपनियों को बिना बिजली खरीदे ही हर साल 6761 करोड़ का भुगतान किया जा रहा है। साथ ही, महंगे दामों पर बिजली खरीद कर वितरण कंपनियों पर 10000 करोड़ का अतिरिक्त भार डाला जा रहा है।

14,400 करोड़ का बकाया बिजली बिल

सरकारी विभागों का बिजली बिल 14,400 करोड़ रुपये का है। सरकार हर साल 22,000 करोड़ रुपये सब्सिडी में खर्च करती है। समिति का कहना है कि यह राहत सामाजिक जिम्मेदारी के तहत दी जा रही है, कोई घाटा नहीं है। यदि आंदोलन कर रहे कर्मचारियों पर कोई दबाव डाला गया, तो 27 लाख कर्मचारी चुप नहीं रहेंगे।

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