लखनऊ वाईबीएन संवाददाता। प्रदेश में बिजली निजीकरण (Electricity Privatisation) के बिडिंग डॉक्यूमेंट मसौदे को एनर्जी टास्क फोर्स से मंजूरी मिलने के बाद अब मामला विद्युत नियामक आयोग के पाले में पहुंच गया है। जहां पावर कारपोरेशन (Power Corporation) को आयोग से अभिमत प्राप्त कर अंतिम प्रस्ताव तैयार करना होगा। लेकिन पूर्व में आयोग की ओर से अभिमत देने से इनकार कर देने के चलते पावर कारपोरेशन के लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। वहीं उपभोक्ता परिषद का आरोप है कि निजीकरण प्रक्रिया में पहले ही जालसाजी और कानूनी विवाद समेत कई गंभीर मामले सामने आ चुके हैं। विद्युत नियामक आयोग की मुहर लगने से सभी मामले संवैधानिक हो जाएंगे। इसलिए यह चाल चली गई है।
पूर्व प्रस्ताव को आयोग ने किया अस्वीकार
उपभोक्ता परिषद के अनुसार, पावर कारपोरेशन एनर्जी टास्क फोर्स के फैसले को विद्युत अधिनियम 2003 की किस धारा में नियामक आयोग के सामने प्रस्तुत कर अभिमत मांगेगा। अब पावर कॉरपोरेशन के सामने संकट खड़ा हो गया है कि वह किस धारा में आयोग से अभिमत प्राप्त करे। जबकि इससे पहले पावर कारपोरेशन ने बिडिंग डॉक्यूमेंट पर अभिमत लेने के लिए आयोग को पत्र भेजकर अनुरोध किया था। जिसे आयोग ने अस्वीकार कर सलाहकार कंपनी के साथ बैठक से इनकार कर दिया था।
परिषद ने दाखिल किए आधा दर्जन विधिक प्रस्ताव
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि असंवैधानिक तरीके से निजीकरण किए जाना हो या फिर झूठा शपथ पत्र दाखिल करके ग्रांट थार्नटन को ट्रांजेक्शन एडवाइजर बनने का मामला। परिषद आधा दर्जन विधिक प्रस्ताव आयोग में दाखिल कर चुका है। लेकिन विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 86(2) के तहत राज्य सरकार को नहीं भेजा गया। अब पावर कॉरपोरेशन अभिमत लेने के लिए जो प्रस्ताव आयोग के सामने प्रस्तुत किया जाएगा उसे पर आयोग क्या निर्णय लेना लेकिन अब एक बड़ा विधिक विवाद सामने आने वाला है।
पावर कारपोरेशन के प्रस्ताव पर विवाद की आशंका
राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि चाहे असंवैधानिक ढंग से निजीकरण की प्रकिया हो या झूठा शपथ-पत्र दाखिल कर ग्रांट थार्नटन को ट्रांजेक्शन एडवाइजर बनाने का मामला। परिषद आधा दर्जन विधिक प्रस्ताव आयोग में दाखिल कर चुका है। जोकि विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 86(2) के तहत राज्य सरकार को नहीं भेजा गया। पावर कॉरपोरेशन की ओर से अब जो प्रस्ताव अभिमत प्राप्त करने के लिए आयोग को भेजा जाएगा, उस पर निर्णय लेने से पूर्व विधिक विवाद खड़ा हो सकता है।