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Electricity Privatisation : 5 मई को प्रदेशभर में बिजली बंद करेंगे कर्मचारी, निजीकरण के खिलाफ जताएंगे विरोध

संघर्ष समिति ने दावा किया है कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के उपभोक्ताओं पर कुल 66 हजार करोड़ रुपये की बकाया राशि है, जिसे हासिल करने के लिए निजी कंपनियां इस क्षेत्र में कदम बढ़ा रही हैं।

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Abhishek Mishra
Electricity Privatisation

निजीकरण के खिलाफ 5 मई को प्रदेशभर में बिजली बंद करेंगे कर्मचारी

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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग के निजीकरण को लेकर कर्मचारियों का विरोध अब और भी मुखर हो गया है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के नेतृत्व में आंदोलनरत बिजली कर्मचारी 5 मई को रात 8 बजे से 9 बजे तक प्रतीकात्मक रूप से अपने घरों की बिजली बंद रखेंगे। इस अभियान के जरिए जनता को यह संदेश देना है कि अगर निजीकरण की प्रक्रिया आगे बढ़ी, तो प्रदेश में बिजली की उपलब्धता पर संकट गहराने का खतरा है।

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निजीकरण की प्रक्रिया पर उठे सवाल

संघर्ष समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि 42 जिलों में बिजली वितरण के निजीकरण में पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है। उन्होंने बताया कि ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट ग्रांट थॉर्टन के कथित रूप से फर्जी शपथ पत्र दिए जाने के बावजूद किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई। उनका कहना है कि विभागीय चेयरमैन जानबूझकर फाइलों को दबाए बैठे हैं, जबकि ऊर्जा मंत्री इस मुद्दे पर चुप हैं।

बकाया राशि पर निजी कंपनियों की नजर

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संघर्ष समिति ने दावा किया है कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के उपभोक्ताओं पर कुल 66 हजार करोड़ रुपये की बकाया राशि है, जिसे हासिल करने के लिए निजी कंपनियां इस क्षेत्र में कदम बढ़ा रही हैं। समिति ने 2010 में आगरा शहर का उदाहरण दिया, जहां टोरेंट पावर को बिजली वितरण का जिम्मा सौंपा गया था, लेकिन आज तक 2200 करोड़ रुपये की बकाया राशि की वसूली नहीं हो सकी।

अनशन में बड़ी संख्या में जुटे कर्मचारी 

रविवार को राजधानी लखनऊ में जारी धरने पर 200 से अधिक बिजलीकर्मी और अभियंता शामिल हुए। इनमें अभियंता संघ के अध्यक्ष संजय सिंह, प्राविधिक कर्मचारी संघ के प्रमुख चंद्र भूषण उपाध्याय और बिजली मजदूर संगठन के अध्यक्ष माया शंकर तिवारी सहित कई अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी मौजूद थे। सभी ने एक स्वर में निजीकरण की प्रक्रिया को तत्काल रोकने की मांग की।

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