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लाइट-कैमरा, कैंसर : फिल्म निर्माता Anurag Basu ने ल्यूकेमिया से अपनी लड़ाई को किया साझा

अनुराग ने अपनी फिल्म निर्माण यात्रा और ल्यूकेमिया के साथ अपनी लड़ाई को साझा किया। सत्र में कहानी कहने, सहानुभूति पर जोर देने, बॉलीवुड के मानसिक स्वास्थ्य चित्रण के विकास को भी शामिल किया गया।

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Deepak Yadav
film director Anurag Basu

अनुराग बसु ने फिल्म निर्माण यात्रा में ल्यूकेमिया से अपनी लड़ाई को साझा किया Photograph: (YBN)

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लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता

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फिल्म निर्माता अनुराग बसु ने ल्यूकेमिया (ब्लड कैंसर) के साथ अपनी लड़ाई को साझा किया। इंडियन साइकियाट्रिक एसोसिएशन के सहयोग से वर्चुअली आयोजित थर्सडे म्यूजिंग्स के 237वें संस्करण में बतौर मुख्य वक्ता अनुराग बसु ने  बीराम के दौरान भावनात्मक कमजोरियों और सिनेमा पर चर्चा की। इस सत्र में कहानी कहने, फिल्मों में मानसिक स्वास्थ्य के चित्रण और सिनेमा के चिकित्सीय मूल्य पर चर्चा शामिल थी।  

मानव मन पर सिनेमा की गहराई से चर्चा

अनुराग बसु ने किसी भी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं पर अपने अनुभव साझा किए। प्रतिभागियों ने सिनेमा के मानव मन को पढ़ने की क्षमता पर सवाल किए। इस पर अनुराग ने अपनी फिल्म निर्माण यात्रा और ल्यूकेमिया के साथ अपनी लड़ाई को साझा किया। सत्र में कहानी कहने, सहानुभूति पर जोर देने, बॉलीवुड के मानसिक स्वास्थ्य चित्रण के विकास को भी शामिल किया गया। संगीत की चिकित्सा क्षमता का भी पता लगाया गया। भविष्य की चर्चाओं में अनुराग बसु का दिल्ली में इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी के सम्मेलन में बोलना और आत्महत्या की रोकथाम और नशीली दवाओं के दुरुपयोग के बारे में जागरूकता पर संभावित फिल्म परियोजनाएं शामिल थीं। 

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237 एपिसोड में 84 हजार से ज्यादा प्रतिभागी हुए शामिल

थर्सडे म्यूजिंग्स 23 जुलाई 2020 को शुरू की गई मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए विश्व रिकॉर्ड धारक वेबिनार श्रृंखला है। जिसमें 237 संस्करणों में 84,120 प्रतिभागी शामिल हो चुके हैं। यह निःशुल्क पहल डॉ. तोपन पाटी, डॉ. अलीम सिद्दीकी, डॉ. अमृत पट्टजोशी, डॉ. शोभित गर्ग, डॉ. विशाल छाबड़ा के नेतृत्व में मनोरोग चिकित्सा में चिकित्सीय विषयों पर केंद्रित है। 

बोन मैरो में होता है ल्यूकेमिया 

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ल्यूकेमिया बोन मैरो में होता है। बोन मैरो में ही खून बनता है, इसलिए इसे एक तरह से ब्लड कैंसर भी कह सकते हैं। जब बोन मैरो में कैंसर हो जाता है तब खून में मौजूद व्हाइट ब्लड सेल्स की संख्या असमान्य तरीके से बढ़ने लगती है। यही से कैंसर की शुरुआत हो जाती है। भारत में यह बीमारी तेजी से बढ़ने लगी है। 30 से 40 साल की उम्र के बीच के लोगों में यह ज्यादा देखा जा रहा है। हालांकि क्रोनिक माइलोजेनस ल्यूकेमिया यानी सीएमएल बीमारी बहुत धीरे-धीरे शरीर में बढ़ती है। यही कारण है कि अगर समय पर इसका ध्यान दे दिया जाए तो इसकी पूरी तरह इलाज संभव है।

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