Advertisment

बीमारी छिपाकर बीमा कराना अपराध, इंश्योरेंस कंपनी करा सकती है FIR

मुरादाबाद के आशक अली ने जुलाई 2011 में मोहम्मद तालिब के नाम पर 4.48 लाख और 10 लाख की दो बीमा पॉलिसी कराईं। 25 अक्टूबर 2011 को तालिब की मौत के बाद अली ने क्लेम किया। बीमा कंपनी ने क्लेम खारिज करते हुए दावा किया कि तालिब की मौत 2009 में हो चुकी थी।

author-image
Deepak Yadav
राज्य उपभोक्ता आयोग

बीमारी छिपाकर बीमा कराना अपराध Photograph: (Social Media)

Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता राज्य उपभोक्ता आयोग ने बीमारी छिपाकर बीमा पॉलिसी लेने के मामलों में सख्त रुख अपनाया है। आयोग ने स्पष्ट किया कि मृत्यु शय्या पर लेटे व्यक्ति का बीमा कराना अपराध है। ऐसे मामलों में बीमा क्लेम की मांग करने वाले के विरुद्ध बीमा कंपनी  एफआईआर दर्ज करा सकती है। मुरादाबाद और संभल जिलों में पहले भी इस तरह के मामले सामने आ चुके हैं। इन मामलों की जांच कर रही एसआईटी को यह प्रकरण भी भेजा जाए। ताकि यह स्पष्ट हो सके कि आखिर किन वजहों से बीमा कराया गया।

मरे हुए शख्स बीमा कराकर मांगा क्लेम

मुरादाबाद जिले के आशक अली पुत्र वहीद ने 20 और 21 जुलाई 2011 को आदित्य बिरला सन लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड से मोहम्मद तालिब के नाम पर 4.48 लाख और 10 लाख रुपये की दो बीमा पॉलिसी कराई थीं। 25 अक्टूबर 2011 को मोहम्मद तालिब की मृत्यु हो गई। जिसके बाद आशक अली ने बीमा कंपनी से दोनों पॉलिसियों पर क्लेम मांगें। बीमा कंपनी ने क्लेम खारिज करते हुए दावा किया कि मोहम्मद तालिब की मौत 2009 में हो चुकी थी और बीमा फर्जी तरीके से कराया गया। इस आधार पर कंपनी ने भुगतान से इनकार कर दिया। आशक अली ने इसे जिला उपभोक्ता फोरम में चुनौती दी। फोरम ने बीमा कंपनी को आदेश दिया कि दोनों बीमा क्लेम का भुगतान नौ प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित करे।

फोरम का फैसला पलटा, क्लेम खारिज

जिला उपभोक्ता फोरम के आदेश को चुनौती देने के लिए कंपनी ने राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील दाखिल की। आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष सुरेश कुमार और सदस्य सुधा उपाध्याय ने दोनों पक्षों की सुनवाई की। सुनवाई में यह तथ्य सामने आया कि मोहम्मद तालिब की मौत 25 अक्टूबर 2011 को हुई थी। लेकिन बीमा कराते समय उन्होंने अपनी बीमारी से जुड़ी जानकारी छुपाई थी। आयोग ने इसे गम्भीर तथ्य छिपाने का मामला मानते हुए जिला उपभोक्ता फोरम का आदेश रद्द कर दिया। आयोग ने स्पष्ट किया कि बीमा कंपनी इस मामले में क्लेम मांगने वाले व्यक्ति, बीमा अभिकर्ता और पॉलिसी के लाभार्थी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा सकती है। साथ ही यह निर्देश भी दिया गया कि इस प्रकरण को मुरादाबाद और संभल जिलों में चल रही एसआईटी जांच में शामिल कराया जाए। ताकि यह स्पष्ट हो सके कि किन परिस्थितियों में बीमा कराया गया।

Advertisment
Advertisment