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कॉफी हाउस की सुनहरी यादें ताजा Photograph: (YBN)
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कॉफी हाउस की सुनहरी यादें ताजा Photograph: (YBN)
राजधानी लखनऊ के हजरतगंज चौराहे पर स्थित इंडियन कॉफी हाउस एक समय शहर की धड़कन माना जाता था। 1938 में स्थापित यह कॉफी हाउस दशकों तक राजनीतिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक चर्चाओं का केंद्र रहा। इसकी दीवारें पल-पल की बदलती सियासी तस्वीरों की गवाही आज भी देती हैं। यहा पर बुद्धिजीवी, कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार और कलाकार कॉफी की चुस्की के साथ बेबाक चर्चा किया करते थे। काफी हाउस के पुराने समय और यादों को ताजा करने के लिए सामाजिक जागरूकता समूह आदाब अर्ज की ओर से एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया।
आदाब अर्ज के सदस्यों ने इंडियन कॉफी हाउस के स्वर्णिम अतीत को याद करते हुए इससे जुड़े राजनीति और अन्य क्षेत्रों की दिग्गजों के दिलचस्प किस्सों पर चर्चा की। सत्र की मेजबानी वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कपूर ने की। जिन्होंने कॉफी हाउस के लखनऊ चैप्टर से संबंधित विभिन्न अनुभवों और घटनाओं के बारे में बात की। पूरा सत्र पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों की दिलचस्प कहानियों पर केंद्रित था। वीर बहादुर सिंह और मुलायम सिंह यादव जैसे दिग्गज नेताओं के किस्सों ने चर्चा को और भी रोचक बना दिया। इसके साथ ही मशहूर उर्दू कवि मजाज और गीतकार हसन कमाल की रचनाओं का जिक्र भी हुआ। फिल्म निर्माता सत्यजीत रे और श्याम बेनेगल जैसे सिनेमा के दिग्गजों पर भी विचार-विमर्श किया गया।
लखनऊ की पहचान रहे इंडियन कॉफी हाउस की एतिहासिक घटनाओं को प्रदीप कपूर ने अपनी पुस्तक लखनऊ का कॉफी हाउस में संकलित किया है। जिसमें उन्होंने कॉफी हाउस से जुड़ी यादों और चर्चाओं का विशेष जिक्र किया है। इस चर्चा में एके श्रीवास्तव, मोहम्मद अहसन, मनीष मेहरोत्रा, आतिफ अंजार, कुशल नियोगी और वली जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने भी अपनी राय रखी। दशकों तक लखनऊ के सांस्कृतिक और बौद्धिक परिवेश का हिस्सा रहे इस कॉफी हाउस की स्मृतियों को साझा करते हुए इसके ऐतिहासिक महत्व और मौजूदा स्थिति पर भी चर्चा की गई।
इंडियन कॉफी हाउस में यूपी से लेकर के देश तक के सभी दिग्गज नेता, मंत्री, साहित्यकार, उपन्यासकार और लेखक आते थे। वरिष्ठ पत्रकारों की तो यह पसंदीदा जगह हुआ करती थी। आदाब अर्ज के कार्यक्रम में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से जुड़ा एक रोचक किस्सा साझा किया गया। एक बार सुब्रमण्यम स्वामी ने चंद्रशेखर के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बयान दिया था। उसी शाम जब वो कॉफी हाउस आए तो चंद्रशेखर के सहयोगी उनके विरोध की तैयारी करने लगे। माहौल तनावपूर्ण होने लगा, लेकिन चंद्रशेखर ने अपने सहयोगियों को शांत किया और कहा कि कॉफी हाउस का अपनी परंपरा है, जिसे बनाए रखना चाहिए। यह किस्सा कॉफी हाउस के स्वर्णिम दौर और वहां की बौद्धिक चर्चाओं की गरिमा को याद दिलाने वाला था।