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केजीएमयू में फाइबर ऑप्टिक ब्रोंकोस्कोपी से घायलों की जान बचाने में सफलता
किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय (KGMU) के ट्रॉमा सेंटर में जबड़े की चोट वाले घायलों के लिए फाइबर ऑप्टिक ब्रोंकोस्कोपी तकनीक वरदान साबित हो रही है। ट्रॉमा सेंटर के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. प्रेमराज के अनुसार, इस तकनीक के माध्यम से सांस मार्ग को सुरक्षित रखते हुए मरीजों की जान बचाना संभव हो रहा है। वे रविवार को एनेस्थीसिया, क्रिटिकल केयर विभाग और एयरवे मैनेजमेंट फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एयरवे कार्यशाला 2025 में बोल रहे थे।
नाक के रास्ते डाली जाती है नली
डॉ. प्रेमराज ने बताया कि आमतौर पर घायलों को सांस देने के लिए मुंह के जरिए नली डाली जाती है, लेकिन जबड़े की चोट के मामलों में ऐसा संभव नहीं हो पाता। ऐसे में फाइबर ऑप्टिक ब्रोंकोस्कोपी तकनीक का उपयोग किया जाता है, जिसमें नाक के माध्यम से पतली नली डाली जाती है। इस प्रक्रिया में लगे कैमरे की मदद से पूरे मार्ग को देखा जा सकता है, जिससे रुकावट, रक्त के थक्के या अन्य बाधाओं को आसानी से हटाया जा सकता है।
नई तकनीकों से मिल रही मदद
विशेषज्ञों के अनुसार, वीडियो लैरिंगोस्कोप की सहायता से सांस की नली में अवरोधों को स्पष्ट रूप से देखा और हटाया जा सकता है। इसके अलावा, हाई प्रेशर जेट वेंटिलेशन तकनीक से घायलों को शीघ्रता से ऑक्सीजन पहुंचाई जाती है, जिससे उनकी जान बचाने में मदद मिलती है।
विशेषज्ञों की मौजूदगी में कार्यशाला का आयोजन
कार्यशाला का उद्घाटन KGMU की कुलपति प्रो. सोनिया नित्यानंद ने किया। इस अवसर पर डीन-अकादमिक्स प्रो. अमिता जैन, एयरवे मैनेजमेंट फाउंडेशन के निदेशक डॉ. राकेश कुमार, लोहिया संस्थान के एनेस्थीसिया विभागाध्यक्ष डॉ. पी. के. दास और प्रो. ममता हरजाई सहित कई विशेषज्ञ मौजूद रहे।
मोटापा और छोटी गर्दन से घायलों को अधिक खतरा
केजीएमयू के एनेस्थीसिया विभाग की प्रमुख प्रो. मोनिका कोहली ने बताया कि मोटापा और छोटी गर्दन वाले मरीजों के लिए सांस प्रबंधन अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है। ऐसे मामलों में नली डालने के दौरान रक्तस्राव, दांत टूटने और सांस नली में रुकावट की संभावना बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि इस तरह के जटिल मामलों में सावधानीपूर्वक इलाज आवश्यक होता है।