लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। उत्तर प्रदेश में वक्फ संपत्तियों (Waqf Properties) की जांच के लिए बनाई गई समिति में एक सदस्य के सेवानिवृत्त होने और एक के स्थानांतरण के बाद जांच की रफ्तार धीमी हो गई है। जो जांच को अब तक पूरा हो जाना चाहिए था, अब उन पर अतिरिक्त दो से तीन महीने का वक्त लग सकता है। वक्फ बोर्ड के अनुसार, राज्य में 1.25 लाख से अधिक संपत्तियां वक्फ संपत्ति में पंजीकृत हैं, जिनमें से कई का उपयोग वक्फ कानून के तहत निर्धारित नियमों के अनुसार नहीं हो रहा है।
समिति के एक सदस्य सेवानिवृत्त, एक का तबादला
प्रदेश में वक्फ संपत्तियों की जांच के लिए शासन ने पांच सदस्यीय समिति का गठन किया था। इस समिति की अध्यक्षता राहत आयुक्त भानु चंद्र गोस्वामी कर रहे थे, जबकि सचिव के रूप में राजस्व विभाग के घनश्याम चतुर्वेदी को नियुक्त किया गया था। समिति के अन्य सदस्य में उप भूमि व्यवस्था आयुक्त भीष्म लाल वर्मा, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की पूर्व निदेशक जे. रीभा और पीलीभीत के जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) को शामिल किया गया था। भीष्म लाल वर्मा सेवानिवृत्त हो चुके हैं और जे. रीभा को बांदा का डीएम बना दिया गया है।
समिति को वक्फ संपत्तियों की जांच का जिम्मा
सरकार ने समिति को जिलावार वक्फ संपत्तियों की जांच की जिम्मेदारी सौंपी थी। समिति को जिलों से रिपोर्ट प्राप्त कर वक्फ संपत्तियों की स्थिति की जांच करनी थी, लेकिन समिति के एक सदस्य के सेवानिवृत्त होने और दूसरे के तबादले के बाद जांच की गति धीमी हो गई है। अब तक की जांच में यह खुलासा हुआ है कि प्रदेश में 760 से अधिक वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग किया जा रहा है।
वक्फ संपत्तियों का व्यावसायिक उपयोग
सरकार ने वर्ष 2022 में प्रदेश के विभिन्न जिलों में स्थित वक्फ संपत्तियों की जांच शुरू कराई थी। इसके बाद सभी जिलों से इन संपत्तियों की रिपोर्ट मांगी गई थी। अब तक 2,528 वक्फ संपत्तियों की रिपोर्ट शासन को प्राप्त हो चुकी है। सरकार की कोशिश है कि कानून के मुताबिक वक्फ संपत्तियों केवल गरीबों के कल्याण और धर्मार्थ कार्यों में ही इस्तेमाल हों, लेकिन कई वक्फ संपत्तियों पर प्रभावशाली लोगों ने अवैध कब्जा कर उन्हें व्यावसायिक गतिविधियों के लिए उपयोग किया जा रहा है।