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कामकाजी दुनिया में आधी आबादी पिछड़ी, हर पांच नौकरियों में सिर्फ एक महिलाओं के पास, सर्वे में खुलासा

ग्लोबल हायरिंग प्लेटफॉर्म इनडीड के हालिया सर्वे के अनुसार, भारत में हर पांच ब्लू-कालर नौकरियों में से केवल एक नौकरी महिलाओं के पास है। इस असमानता के कई कारण हैं।

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Deepak Yadav
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सर्वे में खुलासा, हर पांच नौकरियों में सिर्फ महिलाओं के पास

सर्वे में खुलासा, हर पांच नौकरियों में सिर्फ महिलाओं के पास Photograph: (AI)

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता

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भारत में ब्लू-कालर नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी अब भी सीमित है। यह स्थिति पिछले काफी समय से लगातार बनी हुई है। ग्लोबल हायरिंग प्लेटफॉर्म इनडीड के हालिया सर्वे के अनुसार, भारत में हर पांच ब्लू-कालर नौकरियों में से केवल एक नौकरी महिलाओं के पास है। यह आंकड़ा इस तथ्य को उजागर करता है कि महिलाओं की रोजगार में हिस्सेदारी अपेक्षाकृत कम है। इस असमानता के कई कारण हैं। इसमें प्रमुख कारण वेतन असमानता, कठोर कार्य शेड्यूल और कामकाजी स्थानों पर स्वच्छता की खराब स्थिति जैसी समस्याएं महिलाओं के करियर में बाधा है।

वेतन असमानता (Wage Inequality)

ब्लू-कालर नौकरियों में काम करने वाली महिलाओं के लिए सबसे बड़ी समस्या वेतन असमानता है। जहां पुरुषों को समान कार्य के लिए अधिक वेतन मिलता है। वहीं महिलाओं को समान काम के बदले कम पारिश्रमिक मिलता है। यह वेतन असमानता उन्हें दी जा रही मौकों और उनके पेशेवर विकास में भी रुकावट डालती है। विशेष रूप से निर्माण, विनिर्माण और श्रम-प्रधान उद्योगों में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले बहुत कम वेतन मिलता है।

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कठोर कार्य शेड्यूल (Rigid Work Schedule)

ब्लू-कालर नौकरियों में लंबी शिफ्ट, रात की ड्यूटी और शारीरिक रूप से कठिन काम के कारण महिलाओं के लिए इन नौकरियों में आना और टिके रहना कठिन हो जाता है। इसके अलावा कई मामलों में कार्य स्थल पर सुविधाएं भी महिलाओं की जरूरतों के हिसाब से अनुकूल नहीं होतीं। जैसे कि शौचालय, सैनिटरी सुविधा और कामकाजी घंटे जो पारिवारिक जिम्मेदारियों से मेल खाते हों।

स्वच्छता की खराब स्थिति (Poor Hygiene Conditions)

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कई ब्लू-कालर नौकरियों में काम करने वाली महिलाओं को कार्य स्थल पर स्वच्छता की समस्याएं झेलनी पड़ती हैं। खासकर निर्माण स्थलों पर, जहां सफाई की स्थिति ठीक नहीं होती है। महिलाओं के लिए काम करना और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है। यह ना केवल उनकी शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। बल्कि मानसिक रूप से भी उन्हें अस्वस्थ महसूस कराता है।

सामाजिक बाधाएं (Social Barriers)

भारत में पारंपरिक मान्यताएं प्रबल हैं। महिलाओं के लिए ब्लू-कालर नौकरियों में भागीदारी को लेकर सामाजिक पूर्वाग्रह होते हैं। ऐसी नौकरियों को अक्सर पुरुषों के लिए उपयुक्त माना जाता है और महिलाओं को इस क्षेत्र में काम करने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता। इसके अलावा परिवार और समाज का दबाव महिलाओं को कमतर मानता है और उन्हें अन्य प्रकार के रोजगार की ओर प्रोत्साहित करता है।

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2025 तक महिलाओं की नियुक्ति बढ़ाने की योजना

सर्वे के मुताबिक, 78 प्रतिशत नियोक्ता वर्ष 2025 तक महिलाओं की नियुक्ति बढ़ाने की योजना बना रहे हैं। लेकिन 52 प्रतिशत के अनुसार योग्य महिलाओं की कमी एक बड़ी चुनौती है। रिटेल (32 प्रतिशत), हेल्थकेयर (32 प्रतिशत) और कंस्ट्रक्शन (30 प्रतिशत) क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी अधिक है। जबकि आईटी और बीएफएसआई क्षेत्रों में यह 10 प्रतिशत से भी कम है। विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए वेतन समानता, लचीले कार्य समया और कौशल विकास के अवसर देना बेहद जरूरी है।

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