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पावर कारपोरेशन को झटका : नियामक आयोग में ARR स्वीकार, मार्च 2026 तक निजी हाथों में नहीं जाएगी बिजली

राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि बिजली कंपनियों ने एआरआर में बहुवर्षीय वितरण टैरिफ विनियमावली के तहत लाइन हानियों से संबंधित कोई भी ट्रांजैक्ट्री अभी तक दाखिल नहीं की है।

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Deepak Yadav
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नियामक आयोग ने एआरआर किया स्वीकार Photograph: (YBN)

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लखनऊ वाईबीएन संवाददाता। उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (यूपीईआरसी) ने वर्ष 2025-25 के लिए पूर्वांचल और दक्षिणांचल समेत सभी बिजली कंपनियों के वार्षिक खर्च (एआरआर) के  प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए सुनवाई की प्रक्रिया को आगे बढ़ा दिया है। इस बाद बिजली कंपनियों ने विद्युत दरों में वृद्धि का प्रस्ताव कोई प्रस्ताव नहीं दिया है। वहीं आयोग ने बिजली कंपनियों को निर्देश दिए हैं कि वह अपने सभी डेटा को तीन दिन में सार्वजनिक करें। इसके बाद उपभोक्ताओं को अपनी आपत्ति और सुझाव देने के लिए 21 दिन का समय दिया जाएगा। आयोग जून से बिजली दरों पर सुनवाई करेगा।

31 मार्च 2026 तक नहीं होगा निजीकरण

एआरआर को स्वीकार किए जाने के बाद अब 31 मार्च 2026 तक बिजली के निजीकरण का पावर कारपोरेशन का मंसूबा पूरी तरह विफल हो गया है। क्योंकि बिजली दरों की सुनवाई के दौरान पावर कारपोरेशन की ओर से निजीकरण के प्रस्ताव पर कोई भी सूचना आयोग को आज तक नहीं दी गई है। इसलिए अब निजीकरण पर कोई भी कार्यवाही 31 मार्च तक नहीं हो सकती। वहीं, उपभोक्ता परिषद ने प्रदेश में बिजली दरों की सुनवाई के दौरान निजीकरण में भ्रष्टाचार की पोल खोलने का एलान किया है।

बिजली कंपनियों ने दाखिल नहीं की ट्रांजैक्ट्री

राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि सभी बिजली कंपनियों का एआरआर लगभग 1 लाख 13 हजार 923 करोड़ रुपये है। सभी कंपनियों की बेची जाने वाली बिजली 1 लाख 33 हजसा 779 मिलियन यूनिट होगी। इसमें पीजीसीआईएल चार्ज जोड़ने पर इसकी कुल लागत लगभग 88 हजार 755 करोड़ रुपये आएगी। उन्होंने यह भी बताया कि बिजली कंपनियों ने एआरआर में बहुवर्षीय वितरण टैरिफ विनियमावली के तहत लाइन हानियों से संबंधित कोई भी ट्रांजैक्ट्री अभी तक दाखिल नहीं की है। इसके अलावा कुल गैप लगभग 9 से 10 हजार करोड़ रुपये के बीच है। ऐसे में परिषद किसी भी चोर दरवाजे से बिजली दरों में बढ़ोतरी नहीं होने देगा।

बिजली कंपनियां दरें घटाना नहीं चाहतीं

अवधेश वर्मा ने कहा कि बिजली उपभोक्ताओं का कंपनियों पर 33122 करोड़ रुपये सरप्लस है। इसलिए कंपनियों ने बिल में बढ़ोतरी का कोई प्रस्ताव नहीं दिया है। दरअसल, उन्हें बिजली दरों में कटौती का प्रस्ताव देना चाहिए था। लेकिन कंपनियां दरें घटाना नहीं चाहतीं, इसलिए वे चुप्पी साधे हुए हैं। अब बिना किसी प्रस्ताव के पूरे प्रदेश में बिजली दरों पर सार्वजनिक सुनवाई की जाएगी। परिषद प्रदेश भर के उपभोक्ताओं के बीच बिजली से जुड़े सभी मामलों पर खुलकर चर्चा करेगा और पूरी तैयारी के साथ बिजली कंपनियों की असलियत सामने लाएगा। 

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