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UPRVUP : ऊर्जा मंत्री ने सच्चाई की बयां, बिजली निजीकरण का फैसला वापस ले सरकार

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि ऊर्जा मंत्री एके शर्मा ने रविवार को 'एक्स' पर पोस्ट किया कि एटी एंड सी हानियां घटकर 16.5 प्रतिशत रह गई हैं। तो बिजली निगमों को निजी क्षेत्र में सौंपने का सरकार का निर्णय सही नहीं है।

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Deepak Yadav
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avadhesh verma

ऊर्जा मंत्री के हानियां कम होने के दावा पर उपभोक्ता परिषद ने निजीकरण निरस्त करने की मांग की Photograph: (YBN)

लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता

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यूपी के ऊर्जा मंत्री एके शर्मा की ओर से एटी एंड सी हानियां कम होने का दावा करने पर उपभोक्ता परिषद ने सरकार से बिजली के निजीकरण का फैसला वापस लेने की मांग की है। परिषद ने कहा कि जब हानियां कम हो गईं तो बिजली निगमों का निजीकरण करना उचित नहीं है। साथ ही इस मामले की जांच होनी चाहिए कि किस कंसलटेंट कंपनी ने पहले हानियां ज्यादा बताकर निजीकरण का प्रस्ताव तैयार किया।

हानियां कम होने पर भी निजीकरण सही नहीं

उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद (UPRVUP) के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि ऊर्जा मंत्री एके शर्मा ने रविवार को 'एक्स' पर पोस्ट किया कि एटी एंड सी हानियां 2017 में 40 प्रतिशत थीं, जो 2024 में घटकर 16.5 प्रतिशत रह गई हैं। वर्मा ने कहा कि जब हानियां पहले से कम हो चुकी हैं तो बिजली निगमों को निजी क्षेत्र में सौंपने का सरकार का निर्णय सही नहीं है।

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2024 में हानियां 34.28 प्रतिशत बताईं

उन्होंने कहा कि पांच दिसंबर 2024 को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एनर्जी टास्क फोर्स की बैठक में दक्षिणांचल और पूर्वांचल के 42 जनपदों को निजी क्षेत्र में देने का फैसला किया गया था। उस समय वित्तीय वर्ष में सितंबर तक सी एंड डी हानियां 34.28 प्रतिशत बताई गई थीं। अब ऊर्जा मंत्री खुद ही कह रहें कि एटी एंड सी हानियां कम हो गईं। ऐसे में प्रदेश के दोनों बिजली निगमों को निजी क्षेत्र में देने का फैसला सरकार को तत्काल वापस लेना चाहिए। क्योंकि यह तो देश के लगभग ज्यादातर बिजली निगमों के बराबर है।

कंसलटेंट कंपनी के खिलाफ हो सख्त कार्रवाई

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अवधेश वर्मा ने कहा कि पिछले लगभग चार महीनों से प्रदेश के बिजली निगमों में एटी एंड सी हानियां बहुत अधिक होने की बात कहकर उनके निजीकरण के लिए ट्रांजेक्शन एडवाइजर तक नियुक्त कर दिया गया। आज ऊर्जा मंत्री ने खुद सच्चाई बयां कर दी। ऐसे में तत्काल निजीकरण का फैसला वापस लिया जाना चाहिए। साथ ही उस कंसलटेंट कंपनी के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, जिसने पहले हानियां अधिक बताकर निजीकरण का प्रस्ताव तैयार कराया।

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