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यूपी का पांचवां डीजीपी भी कार्यवाहक होगा! Photograph: (YBN)
प्रशांत कुमार 30 मई को होंगे रिटायर, पर पूर्णकालिक डीजीपी के लिये पैनल भेजना कठिन
विशेष प्रतिनिधि
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता।जेठ की गर्मी जब चरम पर होगी। यूपी के पड़ोसी राज्य बिहार में चुनावी हलचल होगी। पुलिस महानिदेशकों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की तिथि करीब होगी। तब यूपी डीजीपी का पद रिक्त होगा। यानी पहली जून को यह पद रिक्त होगा। मई 2022 से अब तक उत्तर प्रदेश की पुलिस को कार्यवाहक अधिकारी डीजीपी चलाते रहे हैं। यह परम्परा अभी और आगे बढ़ेगी या थमेगी? यह सवाल हवा में गूंज रहा है। वैसे, वरिष्ठताक्रम के हिसाब से शफी अहसन रिजवी, दलजीत चौधरी और आलोक शर्मा यूपी के डीजीपी पद के योग्य हैं। पर मुसलमान ऊपर से केन्द्र की सेवा में होने के चलते उन्हें यह पद संभवतः नहीं ही मिलेगा।
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डीजी पीएम का सबसे विश्वसनीय अधिकारी
आलोक शर्मा एसपीजी (स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप) के डीजी हैं। मगर कैडर में कई अधिकारियों से जूनियर भी हैं। वैसे भी एसपीजी के डीजी का पद इतना ताकतवर है कि इस पर आसीन अधिकारी चौबीस घंटे में किसी भी समय प्रधानमंत्री से मिल सकता है। पीएम का सबसे विश्वसनीय अधिकारी होता है, जाहिर है कि वह यूपी क्यों आना चाहेगा? तीसरे अधिकारी दलजीत चौधरी बीएसएफ (बार्डर सिक्योरिटी फोर्स) के डीजी हैं। यह भी बेहद शक्तिशाली पद है। पहलगाम नरसंहार के बाद सीमा की निगरानी से लेकर आपरेशन्स तक में उन्हीं की भूमिका है, ऐसे में वह यूपी आना चाहेंगे, इसमें संदेह है? लेकिन अगर सरकार ने 17 आईपीएस अफसरों को सुपरशीट करने का प्रयोग किया तो राजीव कृष्णा को यूपी पुलिस की कमान मिल सकती है। सामान्यत: उनकी छवि अच्छे अफसरों की है, लेकिन उनके परिवार में बड़ी संख्या में ब्यूरोक्रेट होने और राजनैतिक व्यक्ति होने के चलते डिमेरिट से इनकार नहीं किया जा सकता।
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सिसायी दांव का प्रयोग भी हो सकता है
वैसे उत्तर प्रदेश पुलिस में डीजी पद पर तैनात अधिकारियों में जिनका कार्यकाल तीन माह से अधिक हैं, उनमें से एक दलित और एक पिछड़े वर्ग का है। और इसी दौर में बिहार में विधानसभा चुनाव की शुरुआत होनी है। यूपी से सटे इस राज्य में पिछड़े और दलित वर्ग के मतदाताओं की तादाद अच्छी खासी है। दलित अथवा पिछड़े वर्ग का डीजीपी बनाकर यूपी सरकार बिहार के पिछड़े मतदाताओं को साधने का दांव चल सकती है और ऊपर से सपा के पीडीए के राजनीतिक अभियान को भी रोक सकती है। अगर ऐसे होता है तो दावेदारी में बीके मौर्य और एमके बशाल में से किसी एक को यह पद मिल सकता है। ऐसे में सरकार इस दिशा में फैसला ले भी सकती है। आम चर्चा भी है कि एमके बशाल के लिए यूपी सरकार के बेहद करीबी अधिकारियों की ओर से पैरवी भी चल रही है।
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दिसंबर तक कार्यवाहक हाथ में रहेगी पुलिस!
इन तकनीकी स्थितियों से संकेत है कि दिसम्बर 25 तक यूपी पुलिस कार्यवाहक डीजीपी ही संभालेंगे। अगर जून माह में ही सुप्रीम कोर्ट ने लंबित चल रही याचिका पर जून माह में ही कोई स्पष्ट आदेश जारी कर दिया तो बात अलग होगी। वैसे, सरकार अपनी असीमित शक्तियों का प्रयोग कर डीजी स्तर के किसी अधिकारी को डीजीपी पद का दायित्व दे सकती है। राजकुमार विश्वकर्मा को तीन माह के लिए डीजीपी बनाकर यह नजीर पहले ही स्थापित है। हालांकि यह कोई आवश्यक नहीं है। प्रशांत कुमार को डीजीपी बनाने के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार ने 15 आईपीएस अधिकारियों को सुपरशीट किया था, जो यूपी पुलिस का इतिहास है। इससे पहले सपा की अखिलेश यादव सरकार ने जावीद अहमद को 13 आईपीएस को सुपरशीट का डीजीपी बनाया गया था, लेकिन वह पूर्णकालिक थे।
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इतिहास पर नजर
योगी आदित्यनाथ सरकार ने 11 मई 2022 को मुकुल गोयल को डीजीपी पद से हटाकर डॉ. डीएस चौहान को डीजीपी नियुक्त किया। इस पर तैनाती के लिये पांच आईपीएस अधिकारियों को सुपरशीट किया। मगर, मुकुल गोयल को हटाने को लेकर लोकसेवा आयोग व सरकार के बीच विधिक पत्राचार का पेंच ऐसा उलझा कि वह पूर्णकालिक डीजीपी नहीं बन सके। उनके रिटायर होने पर राजकुमार विश्वकर्मा को ओहदा मिला। विजय कुमार की बारी आई। ये पूर्णकालिक डीजीपी नहीं बन पाये। अब 30 मई को प्रशांत कुमार रिटायर हो रहे हैं, वह भी कार्यवाहक डीजीपी ही हैं। दरअसल, 11 मई 2022 को मुकुल गोयल को हटाने के बाद नये डीजीपी को पूर्णकालिक बनाने के प्रस्ताव पर लोकसेवा आयोग ने जो पेंच फंसाया था, वह अभी सुलझा नहीं। हालांकि यूपी सरकार ने डीजीपी की नियुक्ति के लिए नये नियम बनाये हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट में वाद अभी लंबित है। ऐसे में उस कानून के लागू पर होने में दिक्कते हैं।
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किसी की क्षमता को चुनौती देना कठिन
इन परिस्थितियों में संकेत हैं कि देश की सबसे बड़ी यूपी पुलिस का पांचवां मुखिया भी कार्यवाहक होगा? क्योंकि वरिष्ठता सूची में शफी अहसान रिजवी, आशीष गुप्ता, अभय कुमार प्रसाद, आदित्य मिश्र, संदीप सांलुके, रेणुका शास्त्री, वीके मौर्य जैसे अधिकारी हैं। इन अधिकारियों की छवि, प्रशासनिक क्षमता को चुनौती देना कठिन है।
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