महाकुंभ नगर, वाईबीएन नेटवर्क।
नॉर्वे के पूर्व मंत्री और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के पूर्व कार्यकारी निदेशक एरिक सोलहैम ने महाकुंभ 2025 में भाग लेकर भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक परंपराओं का अनुभव किया। उन्होंने इस महापर्व में शामिल होकर भारतीय दर्शन, प्रकृति के प्रति सम्मान और आध्यात्मिकता की गहराई को नजदीकी से समझने का अवसर प्राप्त किया।
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महाकुंभ में आध्यात्मिक अनुभूति
महाकुंभ में अपनी उपस्थिति पर बोलते हुए सोलहैम ने कहा कि यह उनके लिए एक अद्भुत और अविस्मरणीय अनुभव रहा। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति हमें सिखाती है कि मनुष्य और प्रकृति एक-दूसरे के पूरक हैं। यहां नदियों, पेड़ों, पशु-पक्षियों और पृथ्वी को पूजनीय माना जाता है, जो प्रकृति के प्रति सम्मान और संरक्षण की भावना को दर्शाता है। उन्होंने गंगा स्नान को केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का माध्यम बताया।
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भारतीय संस्कृति से है प्रभावित
सोलहैम ने कहा कि भारतीय परंपराओं में गणेश और हनुमान जैसे प्रतीक इस बात को दर्शाते हैं कि मनुष्य और प्रकृति के बीच गहरा संबंध है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि दुनिया भारतीय दर्शन से सीखे और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दे।
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पर्यावरण संरक्षण में भारतीय परंपराओं की अहमियत
महाकुंभ के अनुभवों को साझा करते हुए सोलहैम ने कहा कि भारतीय संस्कृति में प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना सदियों पुरानी परंपरा रही है। उन्होंने कहा कि धरती माता को सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है। हमें प्रकृति के साथ तालमेल बैठाना होगा। इस मामले में भारतीय संस्कृति पूरे विश्व के लिए प्रेरणास्रोत बन सकती है।