महाकुंभनगर, वाईबीएन नेटवर्क।
Mahakumbh 2025: सनातन आस्था और संस्कृति के महापर्व महाकुंभ का आयोजन तीर्थराज प्रयागराज में संगम तट पर हो रहा है। प्रयागराज का महाकुंभ दुनिया का सबसे बड़ा मानवीय और आध्यात्मिक सम्मेलन है। यूनेस्को ने महाकुंभ को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत घोषित किया है। प्रयागराज महाकुंभ में मानवता के महापर्व में देश के कोने-कोने से विभिन्न भाषा, जाति, पंथ और संप्रदाय के लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ त्रिवेणी संगम में डुबकी लगा रहे हैं। श्रद्धालु साधु-संतों से आशीर्वाद ले रहे हैं, मंदिरों में दर्शन कर रहे हैं, अन्नक्षेत्र में एक ही पंक्ति में बैठकर भंडारों में प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। एकता, समानता और सद्भाव का महाकुंभ सनातन संस्कृति के उदात्त मूल्यों का सबसे बड़ा मंच है।
महाकुंभ भारत की सांस्कृतिक विविधता में समाहित एकता का सबसे बड़ा मंच है
महाकुंभ न केवल भारत की सांस्कृतिक विविधता में समाहित एकता और समानता के मूल्यों का सबसे बड़ा प्रदर्शन स्थल है। इसे देखकर दुनिया भर से पर्यटक और पत्रकार आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह पाते। कैसे अलग-अलग भाषाएं, रहन-सहन, अलग-अलग रीति-रिवाजों को मानने वाले लोग एकता के सूत्र में बंध कर संगम में स्नान करने आते हैं। चाहे साधु-संतों के अखाड़े हों या तीर्थराज के मंदिर और घाट, श्रद्धालु बिना किसी रोक-टोक के दर्शन और पूजन के लिए जा रहे हैं। संगम क्षेत्र में चल रहे कई खाद्य भंडार सभी श्रद्धालुओं, श्रद्धालुओं के लिए दिन-रात खुले हैं। जहां सभी लोग एक साथ पंक्ति में बैठकर प्रसाद और भोजन ग्रहण कर रहे हैं। महाकुंभ मेले में भारत की विविधता इतनी सामंजस्यपूर्ण हो जाती है कि उनमें अंतर करना संभव नहीं होता।
एकता,समता,समरसता के महाकुम्भ का सबसे बड़ा उदाहरण
महाकुंभ में सनातन परंपरा को मानने वाले शैव, शाक्त, वैष्णव, उदासी, नाथ, कबीरपंथी, रैदासी से लेकर भारशिव, अघोरी, कापालिक तक सभी संप्रदायों और पंथों के साधु-संत एक साथ अपनी-अपनी रीति-रिवाजों के अनुसार गंगा में स्नान और पूजा-अर्चना कर रहे हैं। संगम तट पर कल्पवास करने आए लाखों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से अलग-अलग जातियों, वर्गों और भाषाओं के हैं। यहां सभी लोग मिलकर महाकुंभ की परंपराओं का पालन कर रहे हैं। महाकुंभ में अमीर, गरीब, व्यापारी, अधिकारी सभी एक साथ एक भावना से सभी तरह के भेदभाव भुलाकर संगम में डुबकी लगा रहे हैं। महाकुंभ और मां गंगा पुरुष, महिला, किन्नर, शहरी, ग्रामीण, गुजराती, राजस्थानी, कश्मीरी, मलयाली में कोई भेदभाव नहीं करते। अनादि काल से सनातन संस्कृति की समानता और एकता की यह परंपरा प्रयागराज में संगम के तट पर महाकुंभ में निरंतर चलती आ रही है। सही मायनों में प्रयागराज महाकुंभ एकता, समानता और सद्भाव का सबसे बड़ा उदाहरण है।