महाकुंभनगर, वाईबीएन नेटवर्क।
प्रयागराज महाकुंभ की शोभा यहां सेक्टर 20 में मौजूद सनातन धर्म के ध्वजवाहक 13 अखाड़े हैं। महाकुंभ नगरी में लोगों की आस्था के केंद्र इन अखाड़ों के नागा संन्यासियों की सेना में नई भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो गई है। श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अवधूतों के लिए नागा दीक्षा की प्रक्रिया गंगा तट पर शुरू हो गई है। संन्यासी अखाड़ों में सबसे ज्यादा नागा संन्यासियों वाला अखाड़ा श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा है, जिसमें नागाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है, इसके विस्तार की प्रक्रिया शनिवार को शुरू हो गई।
श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के 1500 अवधूत बने नागा संन्यासी
महाकुंभ में भगवान शिव के दिगंबर भक्त नागा संन्यासी सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं और शायद यही वजह है कि लोगों की आस्था का सबसे ज्यादा सैलाब जूना अखाड़े की छावनी में देखने को मिल रहा है। अखाड़ों की छावनी की जगह सेक्टर 20 स्थित गंगा तट इन नागा संन्यासियों की उस परंपरा का गवाह बना जिसका हर 12 साल बाद अखाड़ों के अवधूत इंतजार करते हैं।
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श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय मंत्री श्रीमहंत चैतन्य पुरी ने बताया कि शनिवार को नागा दीक्षा शुरू हो गई है। पहले चरण में 1500 से ज्यादा अवधूतों को नागा संन्यासी की दीक्षा दी जा रही है। नागा संन्यासियों की संख्या के मामले में जूना अखाड़ा सबसे आगे है, जिसमें इस समय 5.3 लाख से ज्यादा नागा संन्यासी हैं।
महाकुंभ और नागा संन्यासियों का दीक्षा कनेक्शन
नागा सन्यासी सिर्फ कुम्भ में ही बनते हैं और जहाँ उनका जन्म होता है। सबसे पहले साधक को ब्रह्मचारी के रूप में जाना जाता है। उन्हें तीन साल तक अपने गुरुओं की सेवा करनी पड़ी और अखाड़ों के धर्म और सिद्धांतों को तोड़ना पड़ा। इस दौरान उसकी ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है। यदि किसी व्यक्ति या व्यक्ति का गुरु तय कर लिया जाए कि वह दीक्षा के योग्य है तो उसे अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है।
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यह प्रक्रिया महाकुंभ में होती है जहां उन्हें ब्रह्मचारी से महापुरुष और अवधूत बनाया जाता है। महाकुंभ में गंगा तट पर उनके सिर मुंडवाने के साथ ही महाकुंभ की नदी में 108 बार यात्रा लगवाई जाती है। अंतिम प्रक्रिया में उनका खुद का पिंडदान और दंडात्मक संस्कार आदि होता है। शिक्षकों के धर्म ध्वजा के नीचे शिक्षकों के आचार्य महामंडलेश्वर उन्हें नागा दीक्षा देते हैं। प्रयाग के महाकुंभ में दीक्षा लेने वालों को राज राजेश्वरी नागा, संगम में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को हिमानी नागा और नासिक में दीक्षा लेने वालों को खिचड़िया नागा कहा जाता है। अलग-अलग अलग-अलग जीवों से सिर्फ इसलिए जाना जाता है ताकि यह जरूरी हो सके कि किस स्थान पर दीक्षा ली जाए।