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प्रयागराज में साधु-संतों की विभिन्न वेशभूषा और परंपराएं श्रद्धालुओं और पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। इन परंपराओं के बीच हरियाणा के कुरुक्षेत्र के जंगम जाति के साधु-संत अपनी विशेष वेशभूषा और अनोखे रीति-रिवाजों के साथ महाकुंभ के मुख्य आकर्षण में से एक बन गए हैं।
जंगम जाति के साधु शिव और पार्वती के विवाह की कथा सुनाकर भिक्षा मांगते हैं। इनके समूह में आमतौर पर 5 से 7 लोग होते हैं, जो विशेष धार्मिक वेशभूषा धारण करते हैं। इनकी वेशभूषा में भगवान शिव का प्रतीक नागराज, भगवान विष्णु का मोर पंख से बना मुकुट, माता पार्वती के आभूषणों के प्रतीक बाला और घंटियाँ शामिल हैं। ये लोग भिक्षा मांगने के लिए "टल्ली" नामक एक विशेष बर्तन का उपयोग करते हैं।
जंगम जाति के वरिष्ठ साधु सोमगिरी जंगम कहते हैं कि लोग भिक्षा केवल तल्ली में ही लेते हैं। वे हाथ में भिक्षा नहीं ले सकते, चाहे भिक्षा में कितनी भी बड़ी रकम दी जाए। वे साधु-संतों और महंतों से मिलने वाली भिक्षा को "धर्म का दान" मानते हैं। यह भिक्षा ही उनके परिवार के भरण-पोषण का एकमात्र साधन है।
जंगम जाति के ये साधु-संत नियमित रूप से महाकुंभ और अन्य धार्मिक आयोजनों में हिस्सा लेते हैं। प्रयागराज के इस महाकुंभ में करीब 40 से 50 जंगम साधु मौजूद हैं, जो जूना अखाड़े से भी जुड़े हैं। ये साधु सभी शिविरों में जाकर शिव-पार्वती विवाह की कथा सुनाते हैं और भक्तों से दान मांगते हैं।
जंगम जाति के साधु कुरुक्षेत्र के निवासी हैं और ब्राह्मण वंश से हैं। यह परंपरा उनके वंशज ही आगे बढ़ा सकते हैं। इनका उल्लेख धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में भी मिलता है।
महाकुंभ में जंगम जाति के साधु-संत श्रद्धालुओं को भारतीय संस्कृति और परंपरा से जोड़ने का अनोखा माध्यम बन गए हैं। इनकी वेशभूषा और परंपराओं के पीछे गहरी धार्मिक भावना और आस्था है। इनके द्वारा सुनाई जाने वाली शिव-पार्वती विवाह की गाथा लोगों को आकर्षित कर रही है और उनकी भिक्षा संग्रहण प्रक्रिया महाकुंभ के अनुभव को और भी दिव्यता प्रदान कर रही है।
महाकुंभ जंगम जाति के इन साधुओं के बिना अधूरा लगता है। ये साधु केवल धर्म का प्रचार नहीं कर रहे, बल्कि भारतीय परंपरा और लोक संस्कृति को जीवित रख रहे हैं। श्रद्धालु भी इन साधुओं की अनोखी परंपरा का समर्थन करते हुए उन्हें श्रद्धापूर्वक भिक्षा प्रदान कर रहे हैं।