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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। 79th independence day: क्या कभी सोचा जा सकता है कि मात्र आठ वर्ष के एक बालक पर गुलामी के दर्द की इतनी गहरी छाप पड़ सकती है कि वह भारत को आज़ादी की साँसें दिलाने के लिए अपनी ही साँसें कुर्बान करने का प्रण ले ले? डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने अपने बाल्यकाल में लिया यह छोटा-सा संकल्प अनुशासन, कर्मठता और जुनून की ऐसी लौ बन गया, जिसके प्रकाश में करोड़ों भारतीय स्वतंत्रता के पथ पर चल पड़े। उनके द्वारा स्थापित मार्ग पर असंख्य लोगों ने अपनी जान की परवाह किए बिना भारत को आज़ाद कराने में योगदान दिया।
संघ के स्थापक रहे राष्ट्रभक्त डॉ. हेडगेवार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना कर देश में संगठन और राष्ट्रभक्ति की अलख जगाने वाले परमुख राष्ट्रभक्त डॉ. हेडगेवार को भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस पर याद करना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि भले ही ब्रिटिश हुकूमत चली गई हो, लेकिन भारत को भीतर से मज़बूत करने के उनके प्रयास आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं।
15 अगस्त 2025 को भारत अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अनेक संगठन और व्यक्तित्व योगदानकर्ता रहे हैं। 1901 से 1942 तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष, दोनों रूपों में स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी रही। डॉ. हेडगेवार का मानना था कि राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ-साथ सांस्कृतिक और सामाजिक एकता भी उतनी ही आवश्यक है। यह कालखंड इस बात का प्रमाण है कि स्वतंत्रता आंदोलन केवल राजनीतिक मोर्चों की कहानी नहीं, बल्कि विचार, संगठन और अनुशासन की सतत यात्रा भी है।विशेषकर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के नेतृत्व में 1901 से 1942 के बीच हुए 13 प्रमुख प्रसंग इस चर्चा के केंद्र में आते हैं। ये प्रसंग न केवल स्वतंत्रता आंदोलन की विविध परिस्थितियों को दर्शाते हैं, बल्कि आरएसएस के स्वरूप और उस समय के राजनीतिक-सामाजिक वातावरण को भी स्पष्ट करते हैं।
1. प्रारंभिक संघर्ष (1901)
डॉ. हेडगेवार का स्वतंत्रता भावना से पहला परिचय 1901 में हुआ। आठ वर्ष की आयु में उन्होंने अंग्रेजों के विरोध में सार्वजनिक रूप से आवाज उठाई। इससे पहले 1897 में plague महामारी के दौरान बाल गंगाधर तिलक की गिरफ्तारी ने भी उनके मन में स्वराज्य की चिंगारी जगाई।
2. लोकप्रबोधन और पत्रकारिता (1907–1908)
1907 में ‘राष्ट्रसेवक’ जैसे पत्रों के माध्यम से उन्होंने सामाजिक-राजनीतिक अन्याय के खिलाफ लिखना शुरू किया। विदेशी शासन के दमनकारी आदेशों की आलोचना, सत्याग्रह और जनजागरण उनके शुरुआती कार्यक्षेत्र रहे।
3. पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव (1920)
1920 के कांग्रेस अधिवेशन में डॉ. हेडगेवार ने पहली बार पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव रखा, जो उस समय पारित नहीं हो सका। लेकिन इस विचार ने आने वाले वर्षों में आंदोलन की दिशा तय करने में योगदान दिया।
4. असहयोग आंदोलन में सहभागिता (1921)
1921 में असहयोग आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के कारण डॉ. हेडगेवार को जेल जाना पड़ा। उनका मानना था कि स्वतंत्रता के लिए केवल आंदोलन ही नहीं, अनुशासित संगठन भी आवश्यक हैं।
5. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना (1925)
1925 में डॉ. हेडगेवार ने नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। उद्देश्य था ऐसा संगठन बनाना जो राष्ट्रभक्ति, अनुशासन और संगठन शक्ति के माध्यम से स्वतंत्रता के संघर्ष में योगदान दे सके।
6. सामाजिक जागरण और संगठन विस्तार (1925–1930)
इस अवधि में संघ ने प्रत्यक्ष राजनीतिक आंदोलनों से दूरी रखते हुए, समाज में नैतिक और सांस्कृतिक जागरण पर बल दिया। स्वयंसेवकों का प्रशिक्षण और शाखाओं का विस्तार इसी दौर में हुआ।
7. 1930 का सविनय अवज्ञा आंदोलन
हालांकि संघ प्रत्यक्ष रूप से इस आंदोलन में शामिल नहीं हुआ, लेकिन कई स्वयंसेवकों ने व्यक्तिगत स्तर पर भाग लिया। डॉ. हेडगेवार ने उन्हें राष्ट्रहित के कार्यों में योगदान के लिए प्रोत्साहित किया।
8. 1931 का जेल प्रवास
1931 में डॉ. हेडगेवार को पुनः जेल भेजा गया। जेल में भी वे स्वयंसेवकों के पत्र-व्यवहार और संगठन विस्तार के कार्य करते रहे।
9. भारत छोड़ो आंदोलन से पहले की गतिविधियां (1935–1940)
इन वर्षों में संघ का फोकस प्रशिक्षण शिविर, शिक्षा और अनुशासन पर रहा। 1940 तक संघ देश के विभिन्न प्रांतों में स्थापित हो चुका था।
10. 1940 का व्यक्तिगत सत्याग्रह समर्थन
अगस्त 1940 में डॉ. हेडगेवार ने स्वयंसेवकों को व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने की स्वतंत्रता दी, ताकि वे स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न रूपों से जुड़े रह सकें।
11. स्वास्थ्य और अंतिम वर्ष (1940–1942)
1940 के बाद स्वास्थ्य कारणों से सक्रियता सीमित रही, किंतु 1942 में उनके निधन से पहले उन्होंने संघ के भावी नेतृत्व और कार्यदिशा को स्पष्ट कर दिया। भारत छोड़ो आंदोलन के समय, यद्यपि संघ के रूप में भागीदारी नहीं हुई, परंतु कई स्वयंसेवक व्यक्तिगत रूप से गिरफ्तार हुए।
12. 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन
संघ के तौर पर इस आंदोलन में प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं रही, लेकिन कई स्वयंसेवक व्यक्तिगत क्षमता से आंदोलन में शामिल हुए और गिरफ्तार भी हुए।
13. विरासत
1901 से 1942 तक का यह काल डॉ. हेडगेवार और आरएसएस की वैचारिक नींव का समय था। उन्होंने स्वतंत्रता को अंतिम लक्ष्य मानते हुए संगठन निर्माण, अनुशासन और राष्ट्रभक्ति पर जोर दिया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का 1901 से 1942 का योगदान प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष, दोनों रूपों में स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा रहा। डॉ. हेडगेवार का दृष्टिकोण था कि राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ-साथ सांस्कृतिक और सामाजिक एकता भी उतनी ही आवश्यक है। ।।।।।
डॉ रचना गुप्ता
वरिष्ठ पत्रकार, लेखिका
शिमला एचपी
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