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स्वतंत्रता दिवस पर विशेष : भारत को अभी सच्ची स्वतंत्रता का इंतजार

यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण यक्ष प्रश्न हमारे सामने खड़ा है।हमें अनेक प्रकार की स्वतंत्रता अवश्य मिली।अपनी सरकार चुनने की स्वतंत्रता, न्यायिक स्वतंत्रता,जीविका इत्यादि की स्वतंत्रता परंतु क्या एक सामान्य भारतीय सच्चे अर्थों में स्वतंत्रता हो पाया है।

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Shashank Bhardwaj
79th Independence Day
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स्वतंत्रता अद्भुत होती है,अलौकिक अनुभव होता है। तिलक ने सही कहा स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है एवं मैं इसे ले कर रहूंगा।कवि शिवमंगल सिंह सुमन ने भी कहा है ,

कहीं भली है कटुक निंबोरी 
कनक कटोरी की मैदा से।

भारत को भी वर्ष लंबे कालखंड के पश्चात 1947 में स्वतंत्र मिली।आधिकारिक स्वतंत्रता तो मिल गई परंतु क्या एक सामान्य भारतीय अपेक्षित स्वतंत्रता पा सका? यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण यक्ष प्रश्न हमारे सामने खड़ा है।हमें अनेक प्रकार की स्वतंत्रता अवश्य मिली।अपनी सरकार चुनने की स्वतंत्रता, न्यायिक स्वतंत्रता, संपत्ति,सुरक्षा,जीविका इत्यादि की स्वतंत्रता परंतु क्या एक सामान्य भारतीय सच्चे अर्थों में स्वतंत्रता हो पाया है। अभी भी सभी सामान्य भारतीयों के मन में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा के प्रति एक तीव्र लगाव का भाव नहीं दिखता। स्वतंत्रता दिवस के दिन तिरंगा बचने वाले का तिरंगा गणतंत्र दिवस तक अनबिका रह जाता है।उदास मुंह से वो देखता रहता कि लोग तिरंगा खरीदे किन्तु.कोई स्वाभाविक उमंग ही नहीं दिखती।

तिरंगे को प्रणाम, महज औपचारिकता

बहुत से स्वतंत्रता दिवस समारोह में कार्यक्रमों ,तिरंगे की प्रणाम एक औपचारिकता सी लगती है। घोर विडंबना यह है कि ज्ञात भ्रष्टाचारी भी तिरंगे का अभिवादन करते दिखते हैं ।इससे जनसामान्य का मोह भंग होना स्वाभाविक है।
तिरंगे के प्रति उदासीनता का भाव अकारण नहीं है। वर्षों तक मत का हरण होता रहा,बूथ लुटे जाते रहे। अभी भी इन्हीं शक्तियों के द्वारा भ्रामक अवधारणाएं बनाई जा रहीं हैं तथा उनके आधार  पर जनमत बनाने का प्रयास किया जा रहा है।कुछ गिने चुने अपवादों को छोड़ शेष नेतागण अथाह भ्रष्टाचार में डूबे हैं।उनके रहन सहन विलासिता भरें हैं।

अफसरों का व्यवहार सेवकों का नहीं शासकों जैसा

व्यवहार घमंडी है।सरकारी अधिकारी कहने को तो अधिकारिक रूप में जनता के सेवक हैं, परंतु उनका व्यवहार क्रूर शासक सा है। बिना घूस कम नहीं होता है।झिड़कियां मिलती हैं।अपमान किया जाता है। सड़कों पर उनके वाहन समूह किसी राजे महाराजे के सामान लोगों को खदेड़ते हुए चलते हैं। थाने में कोई सामान्य व्यक्ति चला जाय तो उससे ऐसा व्यवहार होता है कि फिर उसने मन में  भारत के एक राष्ट्र के प्रति सम्मान, लगाव का भाव ही समाप्त हो जाता है। भारतीय संस्कृत उच्च मूल्यों की संस्कृति थी,है। यहां जन कल्याण की सर्वोच्च अवधारणा थी।हमारे ईश्वर ऐसे ही थे,हैं। परंतु अभी तो जन शोषण की कु संस्कृति छा सी गई है।

कोई भी वर्ग इससे अछूता नहीं 

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पतन ऐसा फैल गया है कि राष्ट्र  का कोई भी वर्ग इससे अछूता नहीं दिखता। यह परिस्थितियां नागरिकों की स्वतंत्रता की परिस्थितियां नहीं है। सामान्य व्यक्ति इतनी आशंकाओं ,भय ,दबाव में जीता है कि उसका आनंद ही समाप्त हो गया है,प्रसन्नता सूचकांक में भारत निचले स्थानों में है।यह कहा जाने लगा है कि भारत के यदि सम्मान से सुरक्षित रहना है तो तीन पी पॉलिटिशियन,प्रेस पुलिस, में आपका प्रभाव परिचय होना चाहिए। यह सभी भयावह स्थितियों में हैं।समाज के लिए भी तथा राष्ट्र के लिए भी।

आवश्यकता है अविलंब इन्हें ठीक किया जाए,इस दिशा में व्यापक तथा गंभीर प्रयास हो। जनसामान्य खिलखिलाता रहें,आनंदित रहे तभी सच्चे अर्थों के स्वतंत्रता है,होगी। तब स्वतंत्रता दिवस पर झंडे बचने वाले के सारे झंडे बिक जाएंगे तथा वो भी एक स्मित के संग वंदे मातरम गुनगुनाता हुआ अपने हृदय में भारत माता की जय के भाव लिए अपने घर की ओर लौट चलेगा। देश मात्र क्रिकेट मैच के तिरंगा लहराने से मुक्त हो हर भारतीय के घर में,मन में तिरंगा होगा।  India true freedom | 78 Years of Freedom | Indian Freedom Struggle | India’s Freedom Legacy  India’s Freedom Legacy 

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