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Stray Dogs: फूड वेस्ट और छः करोड़  कुत्ते - क्या भारत सीख लेगा विदेशों से?

भारत में 6 करोड़ से अधिक आवारा कुत्ते और बढ़ता खाद्य अपव्यय सामाजिक संकट बन गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश और अंतरराष्ट्रीय मॉडलों से समाधान की उम्मीद।

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YBN News
Dr Rachna Gupta
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डॉ. रचना गुप्ता, पूर्व सदस्य हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग

भारतजनसंख्या वृद्धि और बेरोज़गारी की समस्या से ही जूझ रहा है, वहीं आवारा कुत्तों और जानवरों की बेक़ाबू होती समस्या ने देश को वैश्विक स्तर पर शर्मसार कर दिया है। शायद सुप्रीम कोर्ट का पहला आदेश इसी शर्मिंदगी से देश को निकालने का प्रयास था, जहाँ नीति बनाने वाले और उन्हें लागू करने वाले दोनों स्तरों पर मौजूद गैर -जिम्मेदाराना रवैये को बेनक़ाब किया जा सके।सुप्रीम कोर्ट के दूसरे आदेश में जो बदलाव दिखे हैं, वह भी यही संकेत करते हैं कि भारत को अभी एक सिविक सोसायटी बनने में कई वर्ष लगेंगे। 

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चिंतन की जरूरत

आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तुरंत बाद यह चिंतन–मनन करना होगा कि कैसे प्रदेश सरकारें और भारत सरकार मिलकर कानूनी संशोधनों के ज़रिए छोटी-छोटी समस्याओं को भ्रष्टाचार की जाल से मुक्त करें, ताकि वे भविष्य में भयंकर सामाजिक महामारियों का रूप न ले सकें। देश के पर्यटन स्थानों, शिमला और अन्य हिस्सों  का हालिया उदाहरण लें, जहाँ ब्रिटिश पर्यटक घूमने आते हैं। वे सड़क पर बैठे बंदरों और कुत्तों के साथ सेल्फ़ी लेना नहीं भूलते। यहाँ तक कि वे उन तस्वीरों को भी कैद करते हैं, जहाँ माल रोड पर कुत्तों और बंदरों की गंदगी के बीच ढाबों  का सड़ा हुआ खाना बिखरा रहता है और वही जानवर उसे खा रहे होते हैं। विदेशी पर्यटकों के लिए यह दृश्य दुर्लभ हो सकता है, लेकिन भारत के लिए यह गंभीर सामाजिक और स्वास्थ्य संकट का संकेत है।

कुत्तों की जनसंख्या ऐसे कैसे बढ़ी? 

सवाल उठता है कि आखिर भारत में अनुमानित छह करोड़ कुत्तों की जनसंख्या ऐसे कैसे बढ़ी? 11 अगस्त और 22 अगस्त 2025 को भारत के सुप्रीम कोर्ट के आदेशों फिर परिवर्तित आदेशों में बताया गया कि भारत में आवारा कुत्तों की संख्या 5.25 करोड़ से ज़्यादा  है। केवल दिल्ली में ही लगभग 10 लाख आवारा कुत्ते मौजूद हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस समस्या के समाधान के लिए तीन मुख्य बिंदुओं पर ज़ोर दिया है— पहला, ‘कैच–न्यूटर–वैक्सीन–एंड–रिलीज़’ (CNVR) की प्रभावी व्यवस्था; दूसरा, ‘एनिमल बर्थ कंट्रोल’ (ABC) प्रोग्राम को विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (OIE) के मानकों के अनुरूप लागू करना और तीसरा, डॉग फीडिंग के लिए अलग क्षेत्र निर्धारित करना, साथ ही रेबीज़ से संक्रमित कुत्तों को सार्वजनिक स्थानों से हटाना।लेकिन आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ने के सबसे बड़े कारणों में से एक ‘वेस्ट फ़ूड’, पर अब तक सरकारों का ध्यान गंभीरता से नहीं गया है।

931 मिलियन टन भोजन हर साल बर्बाद होता है

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) (2021 एवं 2024) ने साफ़ कहा  है  कि वैश्विक स्तर पर 931 मिलियन टन भोजन हर साल बर्बाद होता है और इसमें सबसे बड़ा हिस्सा घरों से आता है। भारत  में घरेलू भोजन-कचरे का अनुमान लगभग 50 किग्रा प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष (कुल 68.76 मिलियन टन प्रति वर्ष वर्ष) है। पर भारत में इस दिशा में कंट्रोल करने का  काम नहीं हुआ। जब शहरों में खाद्य कचरा खुले मे फैला रहता है, तब होटल-ढाबा-मंडी के पीछे, गीले-कचरे के ढेरों पर , तो यह कुत्तों के लिए स्थायी फूड-हब बन जाता है। लगातार भोजन मिलने से कुत्तों की सर्वाइवर रेट और प्रजनन-सफलता दोनों बढ़ती हैं; पिल्लों की मृत्यु-दर घटती है; और कुछ सालों में स्थानीय आबादी तेज़ी से ऊपर जाती है। इसका अर्थ है कि केवल नसबंदी पर्याप्त नहीं, जब तक वेस्ट-फूड कम न किया  जाए ! यह निष्कर्ष अंतरराष्ट्रीय डॉग-पॉपुलेशन-मैनेजमेंट की स्टडी से निकला  है।   दुर्भाग्यवश, खुले में खाने को फेंकने पर अब तक सरकारी स्तर पर कोई सख़्त कार्यवाही नहीं की गई है।

इस मामले में भारत को विदेश से सबक लेने की जरूरत

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अगर विदेशों में आवारा कुत्तों के नियंत्रण के लिए बनाए गए क़ानूनों पर गौर करें, तो भारत को भी उनसे सबक लेना चाहिए। यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में सख़्त -पेट ओनरशिप लॉ - लागू हैं, जिनके तहत हर कुत्ते का पंजीकरण अनिवार्य होता है, उन्हें नियमित वैक्सीनेशन दिलाना पड़ता है और खुले में छोड़ने पर जुर्माना व सज़ा का प्रावधान है। वहीं फूड वेस्ट मैनेजमेंट के कड़े नियमों ने इन देशों में कुत्तों और अन्य जानवरों के लिए उपलब्ध खुले भोजन को लगभग ख़त्म कर दिया है। नतीजा यह हुआ कि सड़कों पर आवारा कुत्तों की संख्या नियंत्रित रही और नागरिक जीवन सुरक्षित बना रहा। भारत को भी इन अंतरराष्ट्रीय मॉडलों से प्रेरणा लेकर ऐसे कानूनों और नीतियों को लागू करना होगा, ताकि बढ़ती कुत्तों की आबादी पर नियंत्रण पाया जा सके।विकसित देशों जैसे सिंगापुर और जर्मनी ने कठोर पेट-लॉ और फूड वेस्ट मैनेजमेंट लागू करके आवारा कुत्तों की संख्या को नियंत्रित किया है

1.5 से 2 करोड़ लोग लोग डॉग बाइट का शिकार होते हैं

अब बात करें भारत में डॉग बाइट मामलों की, तो यहाँ मानव जीवन  दांव पर लगा है और  मानवाधिकारों का गंभीर हनन है। नेशनल हेल्थ पोर्टल ऑफ़ इंडिया (NHP) के अनुसार, हर साल भारत में लगभग 1.5 से 2 करोड़ लोग कुत्तों के काटने का शिकार होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में रेबीज़ से होने वाली कुल मौतों में से लगभग 36% मौतें अकेले भारत में होती हैं। यहाँ हर साल करीब 18 से 20 हज़ार लोग रेबीज़ के कारण अपनी जान गंवाते हैं।भारत में पिछले पाँच वर्षों (2018–2023) में डॉग बाइट के एक करोड़ से अधिक केस दर्ज हुए।    ICMR की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर घंटे औसतन 150 लोग डॉग बाइट का शिकार होते हैं। WHO मानता है कि यदि भारत ने ठोस नीतियाँ नहीं अपनाईं तो 2030 तक स्थिति और भयावह हो सकती है।    

नियंत्रण और वैक्सीनेशन की सख़्त व्यवस्था चाहिए

इसका सीधा अर्थ है कि जब तक आवारा कुत्तों पर नियंत्रण और वैक्सीनेशन की सख़्त व्यवस्था नहीं होगी, तब तक नागरिक जीवन सुरक्षित नहीं रह सकता। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने हालिया आदेशों में यह स्पष्ट किया है कि जानवर के अधिकार और मानव जीवन की सुरक्षा  के बीच संतुलन बनाना ज़रूरी है। लेकिन आंकड़े साफ़ दर्शाते हैं कि वर्तमान परिस्थितियों में जानवरों की सुरक्षा के नाम पर मानव जीवन को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है।कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को स्पष्ट चेतावनी दी है कि अब समय आ गया है जब भारत अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि को सुधारने के लिए कठोर कदम उठाए। सरकार को चाहिए कि वह व्यापक क़ानून और ठोस नीतियों के ज़रिए इसे उसी तरह नियंत्रित करे जैसे किसी महामारी को नियंत्रित किया जाता है। साथ ही ‘डॉग लवर्स’ को भी यह समझना होगा कि घर का वेस्ट या बचा हुआ खाना हर जगह कुत्तों को खिलाने से उनकी जनसंख्या और आक्रामकता दोनों बढ़ती है।

मानव जीवन की सुरक्षा सर्वोपरि है

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सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा है कि मानव जीवन की सुरक्षा सर्वोपरि है।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो कई विकसित देशों में लाइसेंसिंग, माइक्रोचिपिंग, कठोर दंड, मज़बूत एनिमल-कंट्रोल व शेल्टर और कचरा अनुशासन के कारण आवारा कुत्तों की समस्या काफ़ी हद तक नियंत्रित है। यूरोप में  (CNVR), एडॉप्शन और ओनर-रिस्पॉन्सिबिलिटी पर ज़ोर दिया जाता है। नीदरलैंड का उदाहरण अक्सर ‘नो-स्ट्रे’ देश के रूप में दिया जाता है, जहाँ दशकों से नीतियाँ सख़्त हैं। पालतू स्वामित्व नियम और फूड-वेस्ट प्रबंधन व स्वच्छता अनुशासन समानांतर रूप से लागू किए गए हैं।भारत को विकसित कैसे किया जा सकता है जब तक छः लाख कुतों जैसा मसला तक नहीं सम्भाला जा रहा। निश्चित तौर पर केंद्र में सख़्त क़ानून बनाने और फिर लागू करना जरूरी है। वरना यह समाजिक महामारी देश को आगे नहीं बढ़ने देगी। 

Stray Dogs | supreme court

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