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क्या "नाटो" से अलग हो सकते डोनाल्ड ट्रंप!
क्या संयुक्त राज्य अमेरिका नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) से अलग हो जाएगा? इन दिनों पूरी दुनिया में शायद इसी सवाल के जवाब की तलाश हो रही है, जो फिलहाल अनुत्तरित हैं। अमेरिका में दूसरी बार डोनाल्ड ट्रंप की सरकार आने के बाद वैश्विक समुदाय अपने हितों को लेकर अलर्ट मोड में आ गया है। खास तौर पर यूरोपीय देश। अमेरिका के पूर्व सहायक अटॉर्नी जनरल और रिपब्लिकन सलाहकार रूप में कार्य कर चुके राजनीतिक टिप्पणीकार जॉन बोल्टन ने ट्रंप के चुनाव जीतने के तुरंत बाद ही आशंका व्यक्त की है कि डोनाल्ड ट्रंप "नाटो" से अलग हो सकते हैं। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने तो म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में ही खुलेआम यूरोपीय देशों को खरी-खोटी सुना दी।
14 से 16 फरवरी के बीच जर्मनी में आयोजित तीन दिवसीय म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में यूक्रेन रूस युद्ध को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के बीच हुई वार्ता पर विचार मंथन किया गया। सबसे अधिक इसकी चिंता रही कि यदि अमेरिका यूरोपीय संगठन से बाहर हो जाता है और यूक्रेन प्रस्ताव गिर जाता है, तो यूरोप को रूस से सामना करना पड़ेगा। ऐसे कयास इसलिए लगाए जा रहे हैं क्योंकि म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में 14 फरवरी को अमेरिका ही अपने सहयोगियों के खिलाफ हो गया। अमेरिका के नवनियुक्त उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने अपने संबोधन में यूरोपीय लोकतंत्रों के खिलाफ जहरीली टिप्पणी की और उन पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक स्वतंत्रता का गला घोंटने का आरोप लगाया। जेडी वेंस का यह विचार सुनकर यूरोप के कई देश आहत हुए हैं। वेंस ने स्पष्ट रूप से कहा कि अमेरिका के लिए सबसे बड़ा खतरा न तो रूस है और न ही चीन, बल्कि यूरोप का अपने कुछ सबसे बुनियादी मूल्यों से पीछे हटना है।
म्यूनिख सम्मेलन के दूसरे दिन यूरोपीय देशों को और भी कड़वी बयानबाजी सुनने को मजबूर होना पड़ा। यूक्रेन के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विशेष दूत जनरल कीथ केलॉग ने भी पुनः यह स्पष्ट कर दिया कि उनके देश का रूस के आक्रमण से शुरू हुए युद्ध को समाप्त करने को किसी भी वार्ता के लिए यूरोप को आमंत्रित करने का कोई इरादा नहीं है। फ्रांस के प्रतिष्ठित समाचार पत्र "ला मोंडे" का कहना है कि अमेरिका के मौजूदा व्यवहार को देखते हुए यूरोपीय देश स्तब्ध हैं। उसी सम्मेलन में यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलदिमिर ज़ेलेंस्की ने एक ऐसा भाषण दिया जिसका खड़े होकर तालियां बजाकर स्वागत किया गया। उन्होंने यूरोपीय लोगों से आह्वान किया कि वे यूरोपीय सुरक्षा से अमेरिकी वापसी के रूप में जो कुछ भी देखते हैं, उससे ठोस निष्कर्ष निकालें।
"कैपिटल इन ट्वेंटी-फर्स्ट सेंचुरी " के लेखक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त फ्रांसीसी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी का भी मानना है कि राष्ट्रपति रोनाल्ड विल्सन रीगन के बाद से गलत नीतियों का पालन करने वाला संयुक्त राज्य अमेरिका अब दुनिया पर नियंत्रण खोने के कगार पर है। दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप का राष्ट्रीय पूंजीवाद महज अपनी ताकत का दिखावा करता है, लेकिन हकीकत में यह कमज़ोर है, खतरे में है। फरवरी 2022 में शुरू हुए रूस यूक्रेन युद्ध के बाद अब तक हजारों की संख्या में लोगों की मौत हुई, जिसमें कई शरणार्थी शामिल हैं। रूस ने यूक्रेन पर इसलिए हमला किया था, क्योंकि यूक्रेन "नाटो" का सदस्य बनना चाहता था। अब नाटो के अस्तित्व पर संकट के बदल मंडरा रहे हैं।
वर्ष 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद पश्चिमी यूरोप के कुछ असंतुष्ट देशों ने 1949 में अमेरिका के नेतृत्व में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन "नाटो" की स्थापना की थी। इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा समेत आठ अन्य पश्चिमी यूरोप के देश शामिल थे। जिनका मकसद सोवियत संघ की गतिविधियों पर नजर रखना था। पिछले कुछ वर्षों में कई अतिरिक्त देश इसमें शामिल हुए हैं, जिसमें स्वीडन 2024 में नवीनतम सदस्य बन गया है। वर्तमान में कुल सदस्य देशों की संख्या 32 हो गई है। इसके विपरीत नाटो में शामिल देशों से मुकाबला करने के लिए वर्ष 1955 में 14 मई को पूर्वी यूरोप के कुछ देश सोवियत संघ के नेतृत्व में वारसा संधि की हुई थी। जिसमें अल्बानिया, बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, पूर्वी जर्मनी, हंगरी, पोलैंड और रोमानिया शामिल थे। 1990 में साम्यवादी सोवियत संघ के विघटन के बाद वारसा संधि का अस्तित्व भी खत्म हो गया और 45 वर्षों से जारी "शीत युद्ध" पर विराम गया, लेकिन नाटो अस्तित्व में बना रहा। रूस के राष्ट्रपति पुतिन नाटो के औचित्य पर अनेक बार अंतरराष्ट्रीय मंचों से विरोध कर चुके हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अभी हाल ही में रूस के राष्ट्रपति पुतिन से वार्ता की हैं। वार्ता क्या हुई है इसे कोई में जनता। उधर, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की का कहना है कि वह अमेरिका और रूस के बीच किए गए किसी भी शांति समझौते को मान्यता नहीं देंगे, यदि इसमें यूक्रेन शामिल नहीं होता है। यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने भी कहा है कि अमेरिका के इस अप्रत्याशित व्यवहार से यूरोप की सुरक्षा महत्वपूर्ण मोड़ पर है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि मुद्दा यूक्रेन के बारे में था, लेकिन हमारे बारे में भी है। हमें तत्काल रक्षा में वृद्धि की आवश्यकता है, क्योंकि यूरोपीय शक्तियों के नेता यूक्रेन में युद्धविराम को लेकर अपनी भूमिका पर आपातकालीन वार्ता के लिए पेरिस में मिलने के लिए तैयार हैं।