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रेणुका की जीत और चुराह की चीख - जानें हिमाचल की बेटियों का सच

हिमाचल की बेटी रेणुका ने मेहनत और संघर्ष से महिला क्रिकेट में ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की। रेणुका की कहानी समाज में बेटियों के सशक्तिकरण की मिसाल बनी है।

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YBN News
Dr Rachna Gupta

डॉ. रचना गुप्ता

कहते हैं मेहनत इतनी खामोशी से करो कि सफलता शोर मचा दे। क्रिकेट की पिच पर पहाड़ों की बेटी रेणु की कामयाबी पूरे प्रदेश या देश के लिए प्रेरणा ही नहीं बनी है बल्कि बेटी को आगे बढ़ाने के लिए समाज का संयुक्त रूप से मदद करने का एक नायाब उदाहरण है। यह खुशखबरी उस दौर में आई है जब भारत में बेटियों के लिए चहुं ओर दरवाजे खुल रहे हैं। बेटियां परंपराओं की बेड़ियों से आजाद हो रही हैं। हिमाचल के शिमला जिला के रोहडू के पारसा गांव की रहने वाली इस बेटी ने अपनी लगन व मेहनत से वह बुलंदी छू ली जो अभी तक हिमाचल जैसे राज्य ही नहीं बल्कि देश के लिए भी बेहद कठिन था। नवीं मुंबई में रेणुका उस टीम का हिस्सा थी जो 47 साल के बाद महिला क्रिकेट की विश्व विजेता बनी। यूं तो यह देश व टीम की खास उपलब्धि थी, परंतु रेणुका, जिसे मां प्यार से रेणु कहती थी, के लिए यह एचीवमेंट असाधारण था। यहां उसकी संघर्ष गाथा का विवरण जरूरी है, क्योंकि जिस वक्त रेणुका की जीत का जिक्र आया उसी रोज सोशल मीडिया पर एक महिला द्वारा रोकर अपने शोषण की दर्द भरी दास्तां का बखान किया गया। जिसमें एक विधायक व नेता पर संगीन आरोप लगे और महिला आयोग ने इस पर कड़ी नजर रखने का फैसला लिया।

एक ही दिन में हिमाचल में बेटियों के दो अलग-अलग हालातों का जिक्र हुआ तो महिला सशक्तिकरण पर ध्यान देना जरूरी बन गया है। रेणुका की माता सुनीता से फोन पर बातचीत हुई। रेणु अभी मुंबई में है। बेटियों के नाम पर संदेश के प्रश्न पर मां ने बताया कि "बेटियों पर किसी तरह की रोक-टोक नहीं होनी चाहिए। उन्हें जाने देना चाहिए जहां तक जाना चाहिए"। आपने क्रिकेट को खेलने जाने से पहले क्या प्रेरणा दी थी?, इस प्रश्न पर वह बताती हैं कि - "उस समय पैसा नहीं था। उधार लेते थे। कपड़ा-जूता बहुत महंगा होता था। इधर-उधर से सारे सहायता कर देते थे।" मैं कहती थी - "बस गलत रास्ते पर नहीं जाना- सही रास्ता चुनना है।" जिस परिवेश में आप रहते हैं वहां बेटियां पढ़ने भी मुश्किल से जाती हैं, इस प्रश्न पर सुनीता ने बताया -  बेटी दो साल की थी, तभी इसके पिता जी गुजर गए। मेरे पास स्कूल के लिए पैसे नहीं थे। फिर सोचा कि अगर बच्ची में दिमाग होगा तो कहीं भी निकल जाएगी।"

Renuka Singh
Renuka Singh Photograph: (X.com)

क्रिकेट में कैसे रूझान हुआ? 

इस पर मां कहती है कि - "हम पड़ोसी के घर टीवी पर मैच देखने जाते थे। टाट पर बैठकर मैच देखते थे। बेटी भी शौकीन थी खेलने की। लकड़ी का बल्ला बनाकर, जुराब में कपड़ा ठूंस कर अपने कजन्स के साथ खेलती थी'। "हमारे जेठ जी ने इसका हुनर पहचाना, फिर धर्मशाला अकेडमी में स्लेक्ट हो गई।" वह कहती थी कि मुझे मंजिल तक जाना है। उसे हाटेश्वरी माता का आशीर्वाद मिला, देवी-देवाताओं का भी मिला। इसीलिए वह सफलता पा सकी।

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आपको कैसा लग रहा है अब? 

मां सुनीता कहती हैं- "बार-बार आंसू आते हैं। हे भगवान हमने कभी सोचा भी नहीं था कि हम यहां तक पहुंचेंगे कभी। आज मेरा ही नहीं हिमाचल का सीना चौड़ा किया। रेणु पहाड़ी खाने की शौकीन है। घर पर सभी से मिलने को आती रहती है।" रेणुका की सफलता की दास्तां अखबारों व सोशल मीडिया की सुर्खियां बनने का कारण यही था कि साधारण बेटियों की असाधारण कहानी।

चुराह क्षेत्र की बेटी का दर्द झकझोरने वाला

वहीं दूसरी ओर चंबा के चुराह क्षेत्र की जिस बेटी ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां किया वह वाकई झकझोड़ने वाला है। न्याय व्यवस्था की पोल खोलने वाला है। नेताओं की मैनुपुलेशन की कहानी बताता है। चुराह की महिला से पूर्व कुछ अरसा पहले कांगड़ा जिला की एक प्रशासनिक अधिकारी महिला ने भी अपने नेता पति पर ऐसे ही कुछ कहा था। जिस पर समाज यह सोचने को विवश हुआ कि आखिर महिलाओं पर पुरूष समाज की सोच में कब सम्मान आएगा व सुधार होगा। सोशल मीडिया पर कितनी ही महिलाएं प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष गाली गलौच की शिकार होती हैं। जिसका ज्यादातर आधार सिर्फ राजनीतिक होता है। इसी बीच रेणुका की रोशनी, हिमाचल में ऐसी चमक के रूप में आई जिससे अन्य महिलाओं की तकदीर भी सामाजिक रूढ़िवादिता से बाहर निकलेगी और सफल गाथाएं लिखेगी। Women World Cup | himachal | Renuka

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