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Techno अधिनायकवाद का अट्टहास

यह तकनीक का जमाना है। डेमोक्रेसी अब टेक्नोक्रेसी में तब्दील हो रही है। इस तंत्र में राजनेताओं का नहीं टेक्नोक्रेट का बोलबाला है। अब कोई भी काम कहीं से भी नहीं किया जा सकता है। सामाजिक नियंत्रण और शासन के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग हो रहा है।

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Mukesh Pandit
NETA TEHNOCRACY NEW

डेमोक्रेसी अब टेक्नोक्रेसी में तब्दील हो रही ह

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यह तकनीक का जमाना है। डेमोक्रेसी अब टेक्नोक्रेसी में तब्दील हो रही है। इस तंत्र में राजनेताओं का नहीं टेक्नोक्रेट (प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ) का बोलबाला है। अब कोई भी काम कहीं से भी नहीं किया जा सकता है। सामाजिक नियंत्रण और शासन के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग हो रहा है। किसी अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने के लिए अब सैन्यशक्ति नहीं कुछ चुनिंदा तकनीकी दिग्गज की जरूरत है। सरल शब्दों में टेक्नोक्रेसी का अभिप्राय सरकार की ऐसी व्यवस्था से है, जिसमें निर्णय लेने वालों का चयन राजनीतिक प्रतिनिधियों के रूप में चुने जाने के बजाय प्रौद्योगिकी के किसी विशेष क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता या दक्षता के आधार पर किया जाता है। 
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के इलेक्शन जीतने के बाद एक मंच पर टेस्ला इंक के सीईओ एलन मस्क का वह डांस तो याद ही होगा , जिसमें वह यह कहते नजर आ रहे हैं कि "दिस इलेक्शन इज रियली मैटर्स"। यह दुनिया के सबसे अमीर टेक्नो उद्योगपति और विश्व के सबसे शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति के बीच जुगलबंदी का अट्टहास है। अभी हाल ही में ओपनएआई के सिंहासन पर बैठे चैट जीपीटी के लिए चीन का  डीपसीक एक नया प्रतिद्वंद्वी बनकर उभरा है। जिसने अमेरिका की एनवीडिया कंपनी को एक ट्रिलियन डालर का नुकसान कर दिया। 
डीपसीक ने अमेरिकी उच्च प्रौद्योगिकी की अजेयता के मिथक को हिला कर रख दिया। 27 जनवरी को अमेरिकन कंपनियों के शेयर में ऐतिहासिक गिरावट देखने मिली। सर्वाधिक नुकसान एनवीडिया को हुआ , जिसकी एआई चिप्स की बाज़ार में हिस्सेदारी लगभग 80-85 प्रतिशत है। बाजार में डीपसीक के हाहाकारी एंट्री पर संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी एहतियातन चेतावनी दी है।
अमेरिका ने दुनिया में तकनीकी-अधिनायकवाद के उदय का मुकाबला करने की कसम खाई है। अपनी और अपने सहयोगियों की प्रौद्योगिकियों को एक लोकतांत्रिक विकल्प के रूप में पेश किया है। अब दुनिया के आम लोगों को भी समझना होगा कि यह 19वीं सदी का अधिनायकवाद नहीं है, जिसे सात दशक पहले जर्मन मूल की अमेरिकी राजनीतिक और दार्शनिक हन्ना अरेंड्ट ने अपनी पुस्तक "द ओरिजिन्स ऑफ टोटालिटेरियनिज्म" में परिभाषित किया था। 
उनकी पुस्तक पूर्वी और पश्चिमी यूरोप में यहूदी-विरोधी भावना की विभिन्न पूर्व-स्थितियों और उसके बाद के उदय का वर्णन करती है। इसके बाद प्रथम विश्व युद्ध  (1914-18) की शुरुआत तक नए साम्राज्यवाद की जांच करती है। लेकिन वर्तमान में डिजिटल अधिनायकवाद का दौर है , जिसमें दुनिया के सबसे कुख्यात जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर और सोवियत संघ के जोसेफ स्टालिन और युगांडा के इदी अमीन जैसे भी आज दौर में बौने साबित होते।
अब तकनीकी दिग्गज कहीं भी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना असंभव बना रहे हैं। चाहे भारत हो या अमेरिका । इससे कोई भी देश शायद अछूता नहीं है। पूरी दुनिया में पिछले कुछ सालों में संपन्न हुए चुनावों में डिजिटल तकनीक का वर्चस्व स्पष्टरूप से देखा जा सकता है।
  पिछले महीने 20 जनवरी को संयुक्त राज्य अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में जब डोनाल्ड ट्रंप शपथ ले रहे थे तो दुनिया भर के राष्ट्रप्रमुखों को निमंत्रण दिया गया। किसे शपथ ग्रहण में बुलाया गया , किसे नहीं , इसका कोई खास महत्व अब नहीं रह गया। शायद ट्रंप को भी इसका मलाल नहीं है। लेकिन समारोह के मुख्य आकर्षण विश्व के दिग्गज टेक्नोक्रेट जरूर थे। अमेज़न के संस्थापक जेफ बेजोस, मेटा प्लेटफॉर्म्स इंक के मार्क जुकरबर्ग, टेस्ला इंक के अरबपति सीईओ एलन मस्क, अल्फाबेट के सीईओ सुंदर पिचाई, माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला और ओपनएआई के सीईओ सैम ऑल्टमैन जैसे दर्जनों टेक दिग्गज डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में शरीक हुए। 
ट्रंप सरकार की दूसरे कार्यकाल में इनकी मौजूदगी तकनीक की दुनिया के लिए बड़ा संदेश है, कि अब यही टेक्नोक्रेट दुनिया का भविष्य तय करेंगे। अपने मतलब और फायदे के लिए डील करेंगे। वर्ष 1919 में कैलिफोर्निया के एक इंजीनियर विलियम एच स्मिथ ने टेक्नोक्रेसी शब्द का आविष्कार किया था। इसके विकास में हेनरी एल गैंट, थोरस्टीन वेबलन और हॉवर्ड स्कॉट शामिल थे, जिन्होंने तर्क दिया कि औद्योगिक नियंत्रण व्यवसायियों के बजाय इंजीनियरों के हाथों में होना चाहिए।

डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल मंसूबा प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन के कवर पृष्ठ को देखना चाहिए। टाइम मैगजीन ने अपने नवीनतम अंक में कवर पेज पर टेक दिग्गज एलन मस्क को अमेरिकी राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठे दिखाया है। पत्रिका प्रकाशित होने बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप काफी नाराज़ भी हुए। उन्होंने पत्रिका की प्रासंगिकता पर सवाल उठाते हुए सवाल किया कि क्या टाइम मैगजीन अब भी व्यवसाय में है। मस्क को हाथ में कॉफी का कप लिए, प्रेसिडेंशियल डेस्क के पीछे बैठे दिखाया गया है। इन सब मामलों से इतर, यदि एलन मस्क के बयानों को ध्यान से सुने तो उनकी मंशा और आकांक्षा समझने आसानी होगी। इन दिनों मस्क का गुस्सा डिजिटल विश्वकोश के खिलाफ चल रहा है। उन्होंने अनेक बार विकिपीडिया को अवैध ठहराने का प्रयास किया है। अपने एक्स अकाउंट पर सुझाव दिया है कि यह वामपंथी कार्यकर्ताओं द्वारा नियंत्रित है, अपने अनुयायियों से विकिपीडिया को दान न देने का आह्वान किया है। अमेरिकी वेंचर कैपिटल फ़र्म से जुड़ी एक कंपनी सिकोइया कैपिटल एक भागीदार शॉन मैगुएर ने भी पोस्ट किया है की विकिपीडिया पर कई सालों से वैचारिक रूप से कब्ज़ा किया गया है।
 मतलब साफ है दुनिया भर में करोड़ों लोगों को मुफ्त में सूचनात्मक ज्ञान बांटने वाली विकिपीडिया का भविष्य निश्चित तौर पर अंधेरे में है।
वर्ष 2016 में जब डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए थे तब उन्होंने चीन की अर्थव्यवथा को क्षति पहुंचाने का प्रयास किया था, लेकिन इस बार ट्रेड वार से मामला काफी आगे निकल चुका है। ट्रंप ने दुनिया भर के देशों पर टैरिफ लगाने का फैसला किया है। खास तौर पर कनाडा और मैक्सिको से भेजे जाने वाले सामानों पर 25% टैरिफ लगा रहे हैं। हालांकि यह टैरिफ फिलहाल विचारणीय है। ट्रंप का स्पष्ट रूप से कहना है कि इस दायरे में सभी आयेंगे। भारत इस दायरे में आएगा या नहीं यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिका दौर तय करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 फरवरी को अमेरिका दौरे पर जाएंगे। ऐसी संभावना है कि दोनों के बीच व्यापारिक साझेदारी भी स्थापित हो सकती है। खासतौर पर भू-राजनीतिक संबंधों को मजबूत करने, व्यापारिक संबंधों की मजबूती के साथ टेक्नोलॉजी के मुद्दों पर चर्चा की उम्मीद है। अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे भारतीय प्रवासियों को हथकड़ी पहनाकर सैन्य विमान में भेजने के बाद भारत में थोड़ी खटास जरूर देखने को मिली है। प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात में शायद हथकड़ी लगाने जैसे कृत्य को पाटने या भुलाने का प्रयास हो।

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