तहले नदी जलाशय योजना को लेकर वर्षों से कुछ ऐसी ही उम्मीद पलामू जिले के सबसे बड़े प्रखंड चैनपुर के निवासियों ने पाल रखी है। बावजूद उनकी खेतों को पानी मिलने का सपना साकार होता नहीं दिख रहा है। तहले नदी जलाशय योजना सियासत की भेंट चढ़ चुकी है। चैनपुर के एक बड़े भू-भाग को सिंचित करने के साथ ही बिजली उत्पादन को ले तहले नदी पर बहुउद्देशीय तहले जलाशय परियोजना निर्माण की रूपरेखा तैयार की गई थी। इसके तहत बूढ़ीवीर पंचायत अंतर्गत ईटको पहाड़ी व जयनगरा पहाड़ी के बीच तहले नदी को बांधकर 9 हजार फीट लंबा व 114 फीट ऊंचा डैम बनाने की योजना तैयार की गई। योजना की लागत 5 अरब 46 करोड़ 56 लाख 20 हजार थी। प्रस्तावित डैम का केचमेंट एरिया 217 वर्ग मील का था। डैम से 17 हजार हेक्टेयर खरीफ व 8 हजार हेक्टेयर रबी फसल की भूमि सिंचित होने का लक्ष्य था। साथ ही विद्युत उत्पादन कर पलामू प्रमंडल को बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की भी योजना थी। डैम बनने से विस्थापित हो रहे ग्रामीणों के पुनर्वास के लिए सरकार की ओर से 111 करोड़ रुपए का प्रावधान भी किया गया था। 4 जून 2006 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा तहले जलाशय योजना का शिलान्यास करने मेदिनीनगर पधारे थे। शिलान्यास स्थल चैनपुर प्रखंड के तहले पर सारी तैयारियां पूरी कर ली गई थी। शिलापट्ट लगाया जा चुका था। हेलीपैड व संपर्क पथ का भी निर्माण हो गया था। अचानक शिलान्यास के चंद घंटे पूर्व कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा। मुख्यमंत्री को शिलान्यास किए बिना वापस जाना पड़ा। इस कारण था राजनीतिक स्तर पर विरोध सामने आ गया था। डूब क्षेत्र में पड़ने वाले स्थानीय ग्रामीणों ने भी डैम निर्माण पर विरोध जताया था। इसके बाद तहले जलाशय योजना का निर्माण खटाई में पड़ गई। बाद में प्रस्तावित स्थल से चार-पांच किलोमीटर ऊपर कोकिला नामक स्थान पर डैम बनाने की योजन पर विचार हुआ। बाद में यह भी छलावा साबित हुआ। फिलहाल जिले में सिंचाई की समस्याएं यथावत हैं। कोई बड़ी योजना आकार नहीं ले पाई है। सुखाड़ पलामू की नियति बन चुकी है। जिले के कई नेता मंत्री व विधायक बनते रहे। बावजूद पलामू के खेतों की प्यास नहीं बुझ पाई है ।
तहले जलाशय का निर्माण नहीं होने का है मलाल : नामधारी-
मेदिनीनगर: झारखंड के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सह डालटनगंज के तत्कालीन विधायक इंदर सिंह नामधारी ने कहा कि तहले जलाशय योजना के शिलान्यास नहीं होने का हमें अब तक पश्चाताप है। यह योजना धरातल पर उतरती तो पलामू व गढ़वा के कई इलाकों को नई जिंदगी मिल जाती। इस योजाना का जमीं पर उतारने के लिए काफी मेहनत की थी। दो बार में प्राक्कलन तैयार कराया था। इस बीच बे वजह दो-तीन गांव के ग्रामीणों ने डूब जाने की बात कहा जुलूस निकाला। इंदर सिंह नामधारी होश में आओ,मुख्यमंत्री वापस जाओ के नारे लगाए। मेरे व्हील पावर की कमी कहें या थोड़े से वोट के बचाने की लालच हम शिलान्यास नहीं करा सके। नामधारी ने कहा कि इस योजना से कोई गांव डूबने वाले नहीं थे। हमें सोचाना चाहिए था कि चाहे जो हो इस जीवनदायी योजना को धरातल पर उतारना है कहा कि पूरी जिंदगी इसका हमें मलाल रहेगा।
कई बार हो चुका है सर्वे -
मेदिनीनगर : तहले जलाशय योजना को लेकर अविभाजित बिहार में 1970 के दशक के शुरू में सर्वे कराया गया था। इसके बाद 1986 -87 में अविभाजित बिहार के तत्कालीन कृषि राज्यमंत्री ईश्वर चंद्र पांडेय ने भी डैम निर्माण को ले सर्वे कराया। 2010 में पुनः एक बार कोलकाता से आए इंजीनियरों की टीम ने उच्च तकनीकी मशीनों से सर्वे किया। बावजूद परिणीति शून्य रही।