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यह है गांधी उद्यान का गेट। इसके बाहर दर्जनों मोटरसाइकिल आड़े तिरछे तरीके से खड़ी रहती हैं। खास बात यह है कि गांधी उद्यान गेट के पड़ोस में ही स्मार्ट सिटी के नाम पर मल्टीलेवल पार्किंग भी बनी है, जो बड़े साहब के ही चहते दबंग ठेकेदार ने बनाई है। इसमें मोटा कमीशन पहले ही ले लिया गया है। अब यह पार्किंग खाली पड़ी है। बाइक और कारें गांधी उद्यान के गेट के ठीक सामने खड़ी होती हैं। फिर लगता है जाम।
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अब गांधी उद्यान के गेट के अंदर घुसिए जनाब। बीडीए ने यहां हरी भरी घास पर एक बड़ा सा पक्का निर्माण करा कर उस पर पक्का निर्माण करा डाला। हरी भरी घास पर टहलने की जगह को इसके जरिए कवर कर लिया गया। बची कसर ठेकेदार ने रेस्टोरेंट खोलकर पूरी कर ली। हरी भरी घास की जगह पर तीन साल पहले रेस्टोरेंट खुल गया। यहां तीन गुने दाम पर खाने पीने की चीजें बेचकर शहरवासियों की जेब काटी जा रही है। स्मार्ट सिटी के नाम पर कमाई करने में लगे हैं बड़े साहब और उनके प्रिय चहेते ठेकेदार।
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अब थोड़ा और अंदर आइए। बच्चों के खेलने का पार्क है। इसकी ज्यादातर जगह रेस्टोरेंट चलाने वाले ठेकेदार ने कर कर रखी है। संकरी गली से बच्चे अपने पेरेंट्स के साथ पार्क में घुसते हैं तो स्मार्ट सिटी के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च करके बनाए गए यह झूले उनको टूटे-फूटे मिलते हैं। कई बच्चे तो इन पर बैठकर चोटिल भी हो चुके हैं।
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गांधी उद्यान के अंदर थोड़ा और आगे बढ़ेंगे तो नगर निगम की ओर से स्मार्ट सिटी के नाम पर जिम भी बनवाई गई है। इस जिम में करोड़ों रुपए स्मार्ट सिटी बनाने के नाम पर खर्च कर दिए गए। लेकिन, इस जिम में मोटा कमीशन कमाकर उपकरण इतने घटिया और निम्न स्तर के खरीदे गए हैं कि ज्यादातर युवा यहां जिम करना पसंद नहीं करते हैं।
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अब थोड़ा और अंदर चलेंगे तो आगे छोटी सी कैंटीन भी दिखती है। पहले गांधी उद्यान में, जब रेस्टोरेंट नहीं हुआ करता था, केवल कैंटीन होती थी। मगर, साहब के खास ठेकेदार का रेस्टोरेंट खुल गया तो कैंटीन की कोई आवश्यकता नहीं थी ।मगर, नगर निगम की ओर से मोटी कमाई के लिए कैंटीन और रेस्टोरेंट दोनों चल रहे हैं। इस पार्क में टहलने वाले बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे जाएं भाड़ में। मुख्य मुद्दा सिर्फ मोटी कमाई का है।
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