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पुरी में रथ सजाने का काम जोरों पर
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथों को पारंपरिक कारीगरों द्वारा खास लकड़ी और रंगों से सजाया जा रहा है। हर साल ये रथ नए बनाए जाते हैं और इसकी तैयारी अक्षय तृतीया से ही शुरू हो जाती है।
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रथ से मोक्ष तक
रथों को खींचने के लिए जिस विशेष रस्सी का उपयोग किया जाता है, इसका नाम ‘शंखचूड़’ है। इसे छूने मात्र से मोक्ष मिलता है।
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रथ बनाने में जुटे कामगार
रथ निर्माण की दुर्लभ झलकियाँ, जहाँ सैकड़ों कारिगर परंपरागत औजारों से लकड़ी तराशते और रथ के हर हिस्से को सावधानी से जोड़ते दिखाई देते हैं।
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कलात्मक झांकियां और पारंपरिक वेशभूषा
तीनों रथों का रंग अलग होता है। भगवान जगन्नाथ का रथ लाल-पीला, बलभद्र का लाल-हरा और सुभद्रा का रथ लाल-काला होता है।
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रथ की भव्यता
इन तीनों दिव्य रथों की ऊंचाई अलग-अलग होती है। भगवान जगन्नाथ का रथ 45.6 फीट, बलभद्र का रथ 45 फीट और सुभद्रा का रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है।
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सिर्फ लकडियों से बनता है रथ
रथ बनाने की पूरी प्रक्रिया में लोहे की कोई कील नहीं लगाई जाती, केवल लकड़ी के खूंटों और जोड़ का उपयोग किया जाता है।
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14 पहियों का होता है रथ।
भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिए होते हैं, जो इसकी भव्यता और मजबूती को दर्शाते हैं। वहीं, बलभद्र जी के रथ में 14 और सुभद्रा जी के रथ में 12 पहिए होते हैं।