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रांची वाईबीएन डेस्क : शारदीय नवरात्र के शुभारंभ से पहले आश्विन मास की अमावस्या तिथि को महालया के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखता है, खासकर बंगाल, बिहार और झारखंड में इसकी धार्मिक और सांस्कृतिक धूम रहती है। मान्यता है कि महालया के दिन मां दुर्गा का पृथ्वी पर आगमन होता है और इसी के साथ नवरात्र की तैयारियां औपचारिक रूप से शुरू मानी जाती हैं।
पौराणिक कथा और धार्मिक आस्था
सनातन धर्म के जानकार पंडित रामदेव बताते हैं कि देवताओं और असुरों के बीच हुए संघर्ष में जब महिषासुर ने तीनों लोकों में उत्पात मचाना शुरू किया, तब देवताओं की प्रार्थना पर मां दुर्गा का आविर्भाव हुआ। महालया के दिन श्रद्धालु देवी से प्रार्थना करते हैं कि वे धरती पर आकर अपने भक्तों की रक्षा करें और अधर्म का नाश करें। इसीलिए इसे नवरात्र की आध्यात्मिक शुरुआत का दिन भी कहा जाता है।
पितृपक्ष का समापन, देवी पक्ष का आरंभ
महालया का एक और विशेष महत्व यह है कि इस दिन पितृपक्ष का समापन और देवी पक्ष का आरंभ होता है। श्रद्धालु पितरों को तर्पण कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और फिर देवी दुर्गा की आराधना की ओर अग्रसर होते हैं। यही कारण है कि इसे केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि परिवार, समाज और श्रद्धा को जोड़ने वाला भावनात्मक उत्सव माना जाता है।
रांची में विशेष आयोजन
झारखंड की राजधानी रांची में भी महालया को लेकर विशेष उत्साह देखने को मिलेगा। अल्बर्ट एक्का चौक स्थित दुर्गाबाड़ी मंदिर में महालया के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होगा। शाम 7 बजे से 8 बजे तक “महिषासुर मर्दिनी” का मंचन किया जाएगा, जिसमें कलाकार मां दुर्गा द्वारा महिषासुर वध की कथा का जीवंत चित्रण करेंगे।
सांस्कृतिक धरोहर
महालया न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा पर्व है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ों का प्रतीक भी है। यह दिन हमें यह संदेश देता है कि अच्छाई हमेशा बुराई पर विजय पाती है और आस्था से ही समाज और परिवार में एकता बनी रहती है।