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खरना पूजा के साथ छठ का व्रत हुआ आरंभ, भक्ति, अनुशासन और परंपरा में डूबे श्रद्धालु

छठ महापर्व के दूसरे दिन रविवार को व्रतियों ने खरना पूजा के साथ 36 घंटे के निर्जला उपवास की शुरुआत की। घर-आंगन में परंपरागत गीतों की गूंज रही और व्रतियों ने गुड़-खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण किया। कल शाम अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाएगा,

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MANISH JHA
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रांची वाईबीएन डेस्क : सूर्योपासना और लोकआस्था के सबसे बड़े पर्व छठ का रंग पूरे देश में छा गया है। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश से लेकर अब दुनिया के कई हिस्सों तक यह पर्व लोकसंस्कृति का वैश्विक प्रतीक बन चुका है। रविवार को महापर्व के दूसरे दिन खरना पूजा के साथ छठव्रतियों ने 36 घंटे के निर्जला उपवास की शुरुआत की। सुबह से ही घर-आंगन में पवित्रता और सादगी का वातावरण रहा। शाम ढलते ही व्रतियों ने स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थल सजाया। मिट्टी के चूल्हे पर गोइठा और आम की लकड़ी की धीमी आंच में गुड़ और अरवा चावल की खीर, घी लगी रोटी, और केले का प्रसाद तैयार किया गया। छठ गीतों की मधुर धुनों के बीच श्रद्धालु पूरे मनोयोग से पूजा-अर्चना में लीन दिखे। खरना की रस्म पूरी होने के बाद व्रतियों ने पहले स्वयं प्रसाद ग्रहण किया, फिर परिवार और पड़ोस के लोगों में बांटा। यह प्रसाद न केवल स्वाद का प्रतीक है, बल्कि पवित्रता, समानता और साझा संस्कृति का भी संदेश देता है। छठ पर्व में शुद्धता का इतना महत्व है कि व्रती इस दिन नमक, मसाले या किसी अन्य अनाज का स्पर्श तक नहीं करते। घर के हर कोने की सफाई, जल और अग्नि की शुद्धि, और मन की पवित्रता यही इस व्रत की आत्मा है। 

नहाय-खाय से आरंभ, अब सूर्य अर्घ्य की तैयारी

चार दिवसीय छठ व्रत की शुरुआत शनिवार को नहाय-खाय से हुई थी। आज खरना के साथ उपवास का कठिनतम चरण शुरू हो गया है। सोमवार, 27 अक्टूबर की शाम को व्रती अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करेंगे। इसके बाद मंगलवार, 28 अक्टूबर की सुबह उदयाचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करेंगे। इस अवसर पर प्रशासन ने घाटों पर सुरक्षा और स्वच्छता के विशेष इंतजाम किए हैं। स्थानीय निकायों द्वारा घाटों की सफाई, रोशनी और बैरिकेडिंग का कार्य तेज़ी से चल रहा है। महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों की सुविधा के लिए राहत शिविर और प्राथमिक चिकित्सा केंद्र भी बनाए गए हैं।

 लोक आस्था का पर्व, विश्व को जोड़ने वाली परंपरा

 छठ केवल एक पूजा नहीं, बल्कि जीवन, अनुशासन और संयम का महापर्व है। यह त्योहार हर वर्ष कार्तिक और चैत्र माह में मनाया जाता है। लोककथाओं के अनुसार, भगवान सूर्य की उपासना से जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य और वंशवृद्धि प्राप्त होती है। यह पर्व समाज को स्वच्छता, आत्मसंयम और पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देता है। बिना किसी वैभव या दिखावे के, मिट्टी, पानी और सूर्य  तीनों प्राकृतिक तत्वों के प्रति आभार व्यक्त करने का यह अनुपम उत्सव है। छठ के गीतों में मां और बहनें अपने परिवार की खुशहाली, बच्चों के दीर्घायु जीवन और विश्व कल्याण की प्रार्थना करती हैं। यही कारण है कि यह पर्व सीमाओं से परे, अब वैश्विक लोकपर्व का रूप ले चुका है। 

कल डूबते सूर्य को अर्घ्य, घाटों पर जुटेगी अपार श्रद्धा

कल की शाम पूरे राज्य में श्रद्धा और आस्था का समंदर उमड़ेगा। नदी, तालाब और पोखरों पर हजारों महिलाएं और पुरुष व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगे। दीपों की लौ और लोकगीतों की गूंज से पूरा वातावरण छठमय हो जाएगा। घाटों पर सुरक्षा बलों की तैनाती के साथ ही एनडीआरएफ की टीमों को भी अलर्ट मोड पर रखा गया है। प्रशासन के साथ स्थानीय स्वयंसेवक और सामाजिक संगठन श्रद्धालुओं की सेवा में जुटे हैं।

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