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रांची में छठ महापर्व का विदेशी रंग :जर्मनी, नीदरलैंड्स और बेल्जियम के मेहमान हुए भारतीय संस्कृति से अभिभूत

रांची के गौरीशंकर नगर में इस वर्ष छठ महापर्व के दौरान तीन विदेशी पर्यटक जर्मनी, नीदरलैंड्स और बेल्जियम से आए जिन्होंने दीपावली और छठ की पूजा में पूरे भाव से हिस्सा लिया। व्रतियों की निष्ठा और पर्व की सादगी से प्रभावित होकर उन्होंने कहा कि यह उत्सव भारतीय संस्कृति का सजीव परिचय है।

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MANISH JHA
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रांची वाईबीएन डेस्क : बिहार और झारखंड की आस्था का पर्व छठ महापर्व अब सीमाओं को पार कर वैश्विक पहचान बना रहा है। इस बार रांची में आयोजित छठ पर्व में तीन विदेशी नागरिक जर्मनी, नीदरलैंड्स और बेल्जियम से आए पर्यटकों ने पूरे उत्साह के साथ भाग लिया। गौरीशंकर नगर के निवासी शुभेंदु शेखर के घर मेहमान बने इन तीनों विदेशियों ने न केवल छठ की पूजा-अर्चना में हिस्सा लिया, बल्कि उन्होंने दीपावली से लेकर खरना और संध्या अर्घ्य तक के सभी अनुष्ठानों को गहराई से समझा। 

आडंबररहित पूजा ने किया प्रभावित

 विदेशी मेहमानों ने कहा कि छठ की सादगी और अनुशासन ने उन्हें सबसे अधिक प्रभावित किया। न कोई दिखावा, न भव्य आयोजन केवल श्रद्धा, समर्पण और प्रकृति के प्रति आभार। उन्होंने कहा कि सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा में जो सामूहिकता, पवित्रता और एकता का भाव है, वह विश्व में अद्वितीय है। नहाय-खाय से लेकर खरना तक व्रतियों की तपस्या और परिवार की भागीदारी ने उन्हें भारतीय संस्कृति की गहराई से परिचित कराया। 

सोशल मीडिया के ज़रिए बढ़ी लोकप्रियता

 छठ पूजा की भव्यता और सौम्यता अब सोशल मीडिया के ज़रिए विश्वभर में फैल रही है। विदेशों में बसे भारतीयों के साथ-साथ स्थानीय नागरिक भी इस पर्व के प्रति उत्सुकता दिखा रहे हैं। रांची में आयोजित पूजा की तस्वीरें और वीडियो विदेशियों के सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर खूब वायरल हुए। विदेशी मेहमानों ने कहा कि वे भविष्य में फिर भारत आकर इस अनोखे पर्व का अनुभव करना चाहेंगे। 

भारतीय संस्कृति से हुए अभिभूत

 जर्मनी से आई पर्यटक लीसा ने कहा कि “छठ पूजा मानव और प्रकृति के बीच संतुलन का अद्भुत उदाहरण है।नीदरलैंड्स के पर्यटक जोहान ने कहा, “यह पर्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि पर्यावरण और समाज के बीच सामंजस्य का प्रतीक है। वहीं बेल्जियम से आई एनी ने कहा कि उन्होंने पहली बार किसी पर्व में सूर्यास्त और सूर्योदय दोनों का पूजन देखा। तीनों ने कहा कि भारत की परंपराओं में अपनापन और आध्यात्मिकता का ऐसा संगम उन्होंने पहले कभी नहीं देखा

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