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रांची,देवघर, वाईबीएन डेस्क : झारखंड कांग्रेस में हाल ही में हुई जिला अध्यक्षों की नियुक्ति ने कई जिलों में असंतोष की लहर पैदा कर दी है। खासकर संथाल परगना के राजनीतिक रूप से संवेदनशील ज़िले देवघर में तो हालात धीरे-धीरे खुले टकराव का रूप लेने लगे हैं। नवनियुक्त जिलाध्यक्ष मुकुंद दास के कार्यभार संभालते ही संगठन में मतभेद उभर आए हैं। कई पुराने कार्यकर्ता इस बदलाव को “थोपे गए निर्णय” की संज्ञा दे रहे हैं, जबकि समर्थक इसे “संगठन में नई ऊर्जा का संचार” बता रहे हैं।
फुरकान अंसारी ने साधी चुप्पी, मुस्कान में छिपा जवाब
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद फुरकान अंसारी से जब मीडिया ने इस विवाद पर राय पूछी, तो उन्होंने बेहद नपा-तुला बयान दिया “अभी कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूं।” जब उनसे चयन प्रक्रिया की निष्पक्षता को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए बिना कुछ कहे जवाब टाल दिया। उनकी यह मुस्कान अब कांग्रेस के गलियारों में कई तरह के कयासों को जन्म दे रही है। पार्टी के भीतर यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि क्या चयन के पीछे कोई ‘राजनीतिक गणित’ काम कर गया।
कार्यकर्ताओं का मतभेद खुलकर सामने, ‘दिल्ली की मर्जी चली’ का आरोप
पूर्व जिलाध्यक्ष के समर्थक जहां इसे पार्टी आलाकमान का सुविचारित फैसला मान रहे हैं, वहीं कुछ कार्यकर्ता इसे “दिल्ली दरबार का फरमान” बता रहे हैं। पार्टी के अंदर कई वरिष्ठ कार्यकर्ता ऑफ रिकॉर्ड यह कहते नज़र आए कि इस बार संगठन में स्थानीय भावना की अनदेखी हुई है। उनका कहना है कि, “देवघर की नब्ज़ को समझे बिना दिल्ली ने निर्णय सुना दिया।” हालांकि नवनियुक्त जिलाध्यक्ष मुकुंद दास ने इन तमाम आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि संगठन पूरी तरह एकजुट है और कांग्रेस के मूल सिद्धांतों पर ही आगे बढ़ेगी।
संगठन में बढ़ता असंतोष, आलाकमान सुलह की राह पर
देवघर कांग्रेस का माहौल इन दिनों उत्साह से ज्यादा बेचैनी से भरा दिख रहा है। गुटबाज़ी ने धीरे-धीरे संगठन की एकजुटता को चुनौती दे दी है। कई कार्यकर्ता खुलकर नाराज़गी जता रहे हैं, जबकि कुछ वरिष्ठ नेता संयम बनाए रखने की सलाह दे रहे हैं। कांग्रेस आलाकमान भी इस स्थिति पर कड़ी नज़र रखे हुए है और आंतरिक संवाद के ज़रिए मतभेद कम करने की कोशिश कर रहा है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, आने वाले दिनों में एक बैठक बुलाई जा सकती है, जिसमें सभी पक्षों को एक मंच पर लाकर सुलह की दिशा में प्रयास किए जाएंगे। फिलहाल देवघर कांग्रेस की राजनीति सद्भावना से ज्यादा संघर्षभावना के दौर से गुजर रही है। कई कार्यकर्ता अब यह कहते सुने जा रहे हैं कि “संगठन का बाग़ अब सिर्फ गुलाबों से नहीं, कुछ कांटों से भी महक रहा है,