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रांची, वाईबीएन डेस्क : रांची के पीवीआर न्यूक्लियस मॉल में लेखक-निर्देशक अरण्य सहाय की हिंदी फीचर फिल्म ‘ह्यूमन्स इन द लूप’ का व्यावसायिक प्रदर्शन किया गया। यह फिल्म झारखंड की एक उरांव महिला के संघर्ष, तकनीक से जुड़ाव और सामाजिक पूर्वाग्रहों पर आधारित है।
कहानी का सार
फिल्म की नायिका नेहमा अपने पति से अलग होकर बच्चों के साथ पैतृक गांव लौट आती है। परिवार का पालन-पोषण करने के लिए वह एक डेटा लेबलिंग सेंटर में नौकरी करती है। यहां से उसका सामना कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की जटिल दुनिया से होता है। धीरे-धीरे उसे यह समझ आता है कि तकनीक भी मानव पूर्वाग्रहों से मुक्त नहीं है। फिल्म यह सवाल उठाती है कि क्या AI कभी आदिवासी दृष्टिकोण को आत्मसात कर सकता है?
फिल्म की पृष्ठभूमि
यह फिल्म उस वास्तविकता को दर्शाती है जहां बड़ी टेक कंपनियां झारखंड जैसे क्षेत्रों में सस्ते श्रम का उपयोग कर डेटा लेबलिंग का काम कराती हैं। डेटा लेबलिंग मशीन लर्निंग की पहली सीढ़ी है, जिसमें हजारों तस्वीरों और वीडियोज़ को टैग करके एल्गोरिद्म को प्रशिक्षित किया जाता है। फिल्म में इस काम को माता-पिता और बच्चे के रिश्ते के रूपक के रूप में दिखाया गया है।
निर्देशक अरण्य सहाय
मुंबई के फिल्मकार और संगीतकार अरण्य सहाय ने दिल्ली विश्वविद्यालय और एफटीआईआई पुणे से शिक्षा प्राप्त की है। वे पहले ‘डॉ. अरोड़ा’ और ‘डांसिंग ऑन द ग्रेव’ जैसी परियोजनाओं में सहायक निर्देशक रह चुके हैं। उनकी पहली फीचर फिल्म ‘शैडो’ (2021) को फिल्म बाजार में सराहना मिली थी।
अंतरराष्ट्रीय पहचान और पुरस्कार
‘ह्यूमन्स इन द लूप’ को कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सम्मान मिला है। फिल्म ने FIPRESCI अवॉर्ड 2025, IFFLA ग्रैंड ज्यूरी अवॉर्ड, और BIFFes बेस्ट फिल्म अवॉर्ड जैसे बड़े सम्मान हासिल किए। इसके अलावा फिल्म को न्यूयॉर्क इंडियन फिल्म फेस्टिवल और केरल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में भी सराहा गया। यह फिल्म केवल एक आदिवासी महिला की कहानी नहीं, बल्कि तकनीक और मानवता के रिश्ते की पड़ताल है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देती है।