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रांची, वाईबीएन डेस्क: झारखंड में धर्मांतरण को लेकर तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। राज्य के कई आदिवासी संगठनों ने आरोप लगाया है कि ग्रामीण इलाकों में गरीब और अशिक्षित लोगों को लालच देकर धर्म बदलने के लिए मजबूर किया जा रहा है। इसको लेकर अब आदिवासी समुदाय ने सड़कों पर उतरने का फैसला किया है। 23 नवंबर 2025 को रांची के तुपुदाना से थाना तक विशाल आक्रोश रैली निकाली जाएगी।
गरीबी और बीमारी का बहाना बनाकर हो रहा धर्मांतरण” संगठनों का आरोप
जनजातीय सुरक्षा मंच की प्रदेश महिला प्रमुख अंजलि लकड़ा और झारखंड आदिवासी सरना विकास समिति के अध्यक्ष मेघा उरांव ने इस पूरे मुद्दे पर बड़ा बयान दिया है। उनका कहना है कि मिशनरी संगठनों के लोग गरीब आदिवासियों को लालच देकर धर्म परिवर्तन करा रहे हैं। बीमार व्यक्तियों को चमत्कार का विश्वास दिलाकर उनका मनोबल तोड़ा जा रहा है। इन नेताओं का आरोप है कि इस प्रक्रिया में विशेष रूप से महिलाओं और कमजोर तबकों को निशाना बनाया जा रहा है। अंजलि लकड़ा ने कहा कि “झारखंड में जो काम बंद होना चाहिए था, वह और तेज़ी से बढ़ रहा है। रांची के नामकुम इलाके के चांद गांव की आबादी अब पूरी तरह बदल चुकी है। धर्म परिवर्तन के नाम पर गांव की डेमोग्राफी को बदलने की सुनियोजित कोशिश की जा रही है।”
महुआडांड़ में घट गई आदिवासी आबादी, सभाओं से फैल रहा प्रभाव
मेघा उरांव ने आरोप लगाया कि पहले लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, पलामू, लातेहार और गढ़वा में साल में एक या दो बार प्रचार सभाएं होती थीं, लेकिन अब सप्ताह में दो-दो बार कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि “महुआडांड़ में अब मुश्किल से दो ही आदिवासी परिवार बचे हैं। बाकी सबका धर्म परिवर्तन कर दिया गया है।” उनका यह भी कहना है कि इस नेटवर्क में स्थानीय प्रशासन और राजनीतिक स्तर के कुछ लोग शामिल हैं, जो कार्रवाई रोकने में बाधा बनते हैं। अंजलि लकड़ा ने कहा कि “पांचवीं अनुसूची के तहत आने वाले इलाकों में बिना ग्रामसभा की अनुमति के इस तरह की सभा पूरी तरह गैरकानूनी है, फिर भी प्रशासन चुप है। यह न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि आदिवासी अस्मिता पर भी हमला है।
23 नवंबर को तुपुदाना से उठेगी ‘आदिवासी पहचान बचाओ’ की आवाज
संगठनों ने अब आंदोलन का रास्ता चुना है। उन्होंने घोषणा की है कि 23 नवंबर को तुपुदाना के 10 माइल से थाना तक विशाल रैली निकाली जाएगी। रैली के बाद सभी संगठन चांद गांव में जनसभा कर आंदोलन की आगे की रूपरेखा तय करेंगे। अंजलि लकड़ा ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने समय रहते कदम नहीं उठाए, तो आदिवासी समाज खुद मैदान में उतरकर उन संस्थाओं को हटाने के लिए मजबूर होगा जो लालच और छल के बल पर धर्मांतरण करा रही हैं। उन्होंने कहा कि “यह केवल धर्म का मुद्दा नहीं, पहचान और अस्तित्व की लड़ाई है। अगर अभी नहीं जागे तो आने वाले वर्षों में आदिवासी शब्द सिर्फ इतिहास की किताबों में रह जाएगा।” धर्मांतरण रोकने वाला कानून फिर सवालों के घेरे में गौरतलब है कि झारखंड में वर्ष 2017 में रघुवर दास सरकार ने ‘झारखंड धर्म स्वतंत्र्य अधिनियम’ पारित किया था, जिसका उद्देश्य किसी भी प्रकार के दबाव या प्रलोभन से धर्मांतरण पर रोक लगाना था। लेकिन मौजूदा हालात ने एक बार फिर इस कानून की उपयोगिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। संगठनों का कहना है कि अगर कानून होने के बावजूद धर्मांतरण जारी है, इसका मतलब प्रशासनिक स्तर पर कहीं ना कहीं चूक जरूर है