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रांची वाईबीएन डेस्क : भारतीय जनता पार्टी ने राज्यसभा सांसद आदित्य साहू को झारखंड का नया कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। पदभार संभालने के बाद साहू ने पार्टी नेतृत्व और कार्यकर्ताओं का आभार जताया। उन्होंने कहा कि संगठन ने जिस भरोसे के साथ उन्हें यह अवसर दिया है, उस पर वे पूरी निष्ठा के साथ खरे उतरेंगे।
जमीनी कार्यकर्ता से नेतृत्व तक का सफर
साहू ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1980 के दशक में साधारण कार्यकर्ता के रूप में की थी। चुनाव प्रचार के समय वे गांव-गांव जाकर पर्चियां बांटते थे। उस दौर में चुनावी माहौल में आशंकाएं रहती थीं, लेकिन साहू ने बिना डरे पार्टी की जिम्मेदारियां निभाईं। धीरे-धीरे संगठन ने उनकी मेहनत को पहचाना और उन्हें जिला उपाध्यक्ष, प्रदेश समिति के सदस्य तथा दो बार संगठन महामंत्री का दायित्व सौंपा। अब वे कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बनकर संगठन का नेतृत्व करेंगे।
ईमानदारी और समर्पण का वादा
नव-नियुक्त कार्यकारी अध्यक्ष ने कहा कि वे अपने जीवन का हर पल संगठन और कार्यकर्ताओं की भलाई में समर्पित करेंगे। उन्होंने स्पष्ट कहा कि उनके लिए सबसे बड़ा ध्येय संगठन को मजबूत बनाना और कार्यकर्ताओं की उम्मीदों पर खरा उतरना है। साहू ने यह भी कहा कि पार्टी द्वारा दिए गए हर कार्य को वे दायित्व और कर्तव्य समझकर निभाते आए हैं और आगे भी निभाते रहेंगे।
कार्यकर्ताओं ने मनाई जीत की खुशी
जिम्मेदारी मिलने के बाद जब साहू बीजेपी कार्यालय पहुंचे तो कार्यकर्ताओं ने ढोल-नगाड़ों और नारों के साथ उनका स्वागत किया। लड्डू बांटे गए और गुलाब के फूल भेंट किए गए। पूरे कार्यालय में “आदित्य साहू जिंदाबाद” और “भाजपा जिंदाबाद” के नारे गूंजते रहे। कार्यकर्ताओं ने कहा कि साहू की नियुक्ति से संगठन को नई ऊर्जा और दिशा मिलेगी।
मरांडी ने दी शुभकामनाएं, संगठन में बदलाव की चर्चा
वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने साहू को बधाई दी। उन्होंने कहा कि साहू के नेतृत्व में संगठन मजबूत होगा और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा। मरांडी ने यह भी संकेत दिया कि जल्द ही पार्टी झारखंड को नया पूर्णकालिक प्रदेश अध्यक्ष दे सकती है। क्योंकि वे खुद इस समय दोहरी जिम्मेदारी, प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष का दायित्व संभाल रहे हैं।
आंदोलन और लोकतंत्र पर मरांडी की राय
प्रदेश कार्यालय में मीडियाकर्मियों से बातचीत करते हुए मरांडी ने कुरमी आदिवासी आंदोलन पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि संविधान ने सभी को अपनी मांग रखने का अधिकार दिया है, लेकिन विरोध हमेशा शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक दायरे में होना चाहिए। जातिगत मांगों पर निर्णय प्रक्रिया के अनुसार होता है और इसमें जल्दबाजी या उग्रता सही नहीं है।