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तीन साल बाद झारखंड में होंगे नगर निकाय चुनाव, ओबीसी आरक्षण से खत्म हुई सबसे बड़ी अड़चन

तीन साल से टल रहे झारखंड नगर निकाय चुनाव अब दिसंबर 2025 से जनवरी 2026 के बीच होने की संभावना है। ओबीसी को 14% आरक्षण देने के बाद कानूनी अड़चन खत्म हो गई है। हाईकोर्ट की सख्ती और राजनीतिक दलों की तैयारी से चुनावी सरगर्मी तेज हो गई है।

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MANISH JHA
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 रांची वाईबीएन डेस्क : झारखंड में तीन वर्षों से लंबित नगर निकाय चुनाव अब आखिरकार होने जा रहे हैं। राज्य सरकार ने पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 14 प्रतिशत आरक्षण देने की मंजूरी दे दी है, जिससे चुनाव कराने की राह पूरी तरह साफ हो गई है। तीन साल से कानूनी और प्रशासनिक कारणों से टल रहे इन चुनावों को लेकर अब राज्य निर्वाचन आयोग ने भी तैयारी तेज कर दी है। हाईकोर्ट ने नगर निकाय चुनाव में हो रही देरी पर सख्त टिप्पणी की थी और सरकार से जवाब मांगा था। अब 10 नवंबर को होने वाली सुनवाई में चुनाव की तारीखों की घोषणा की उम्मीद जताई जा रही है।

ओबीसी आरक्षण से खुला चुनाव का रास्ता

राज्य सरकार द्वारा ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने से सबसे बड़ी बाधा दूर हो गई है। झारखंड पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए कहा कि अब कानूनी या संवैधानिक रूप से कोई अड़चन नहीं बची है। आयोग की अध्यक्ष जानकी यादव ने बताया कि चुनाव दिसंबर 2025 से जनवरी 2026 के बीच कराए जा सकते हैं। राज्य निर्वाचन आयोग ने भी मतदाता सूची को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। रांची, धनबाद, जमशेदपुर, बोकारो और हजारीबाग जैसे प्रमुख नगर निगम क्षेत्रों में वार्डवार मतदान केंद्रों की सूची भी जारी कर दी गई है। 

राजनीतिक दलों में मची चुनावी हलचल

निकाय चुनाव की घोषणा से पहले ही राज्य के प्रमुख राजनीतिक दल सक्रिय हो गए हैं। झामुमो-कांग्रेस गठबंधन ने नगर निकायों में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए संगठनात्मक बैठकों और जनसंपर्क अभियानों की शुरुआत कर दी है। वहीं, भाजपा ने भी शहरी वोटरों को साधने के लिए व्यापक रणनीति बनाई है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने कहा है कि भाजपा इस बार नगर निगमों में अधिक सीटों पर जीत हासिल करने की कोशिश करेगी। वहीं, आजसू पार्टी ने स्वतंत्र प्रत्याशियों को समर्थन देने की संभावना जताई है।

कोर्ट की सख्ती से बढ़ी रफ्तार

झारखंड हाईकोर्ट ने चुनाव में हो रही देरी पर नाराजगी जाहिर की थी और कहा था कि लोकतांत्रिक संस्थाओं में चुनाव की देरी स्वीकार्य नहीं है। अदालत की इस सख्ती के बाद ही सरकार ने आरक्षण से जुड़े विवाद को जल्द निपटाया। अब राज्य निर्वाचन आयोग और सरकार, दोनों पर जनता की निगाहें हैं कि चुनाव समय पर हों।

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