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रांची,वाईबीएन डेस्क : झारखंड स्थापना दिवस के रजत पर्व पर राजधानी रांची में पारंपरिक धुन, नृत्य और आदिवासी संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिला। शहर की सड़कों पर आयोजित भव्य सांस्कृतिक जतरा ने न केवल राज्य की जमीन से जुड़ी विरासत को प्रदर्शित किया, बल्कि झारखंड की एकता, संघर्ष और परंपरा को भी एक साथ समेट दिया। पूरे शहर में उत्सव का माहौल ऐसा रहा कि हर कोई झारखंडी धुनों की लय पर झूमने को विवश नजर आया।
रांची की सड़कों पर धुनों और संस्कृति का महासमागम
राजधानी में सुबह से ही ढोल, नगाड़ा और मांदर की थाप गूंजने लगी। करीब पाँच हजार से अधिक कलाकारों की भव्य टोली ने जब पारंपरिक पोशाकों में सामूहिक नृत्य प्रस्तुत किया, तो पूरा शहर एक विशाल सांस्कृतिक महोत्सव में तब्दील हो गया। विभिन्न जनजातीय समुदायों ने अपनी–अपनी पारंपरिक नृत्य विधाओंजैसे करमा, छऊ, सरहुल, पायका और जादुर के शानदार प्रदर्शन से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। यह दृश्य सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं बल्कि झारखंड की आत्मा का उत्सव बन गया, जिसने यह संदेश दिया कि राज्य की पहचान उसकी लोक–संस्कृति और लोकमूल्यों में ही निहित है।
पुरखों के संघर्ष और बलिदान को भावपूर्ण नमन
स्थापना दिवस का यह रजत पर्व झारखंड की संघर्षमयी यात्रा को भी याद दिलाता है। समारोह के दौरान वक्ताओं ने कहा कि राज्य के निर्माण के पीछे अनगिनत पुरखों का त्याग, बलिदान और संघर्ष छिपा है। आदिवासी समाज की गौरवशाली परंपराएँ, उनकी धरती के प्रति अगाध आस्था और अपने अधिकारों के लिए सतत संघर्ष ने ही अलग राज्य की परिकल्पना को साकार किया। लोगों ने इस अवसर पर वीर सपूतों और स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी। सभी ने संकल्प दोहराया कि राज्य के विकास, सम्मान और सांस्कृतिक पहचान को और मजबूत किया जाएगा।
विधायक कल्पना सोरेन की उपस्थिति ने बढ़ाई कार्यक्रम की गरिमा
गांडेय से विधायक श्रीमती कल्पना सोरेन ने भी राजधानी का दौरा कर इस सांस्कृतिक जतरा में हिस्सा लिया। उनकी मौजूदगी ने आयोजन में खास ऊर्जा और उत्साह भर दिया। उन्होंने कलाकारों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि झारखंड की संस्कृति विश्व में अपनी अलग पहचान रखती है, और इसे संरक्षित रखने की जिम्मेदारी हम सभी की है। उन्होंने राज्यवासियों को स्थापना दिवस की शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि यह अवसर हमें अपने पुरखों के सपनों को आगे बढ़ाने का प्रेरणास्रोत प्रदान करता है। समापन रजत वर्षगांठ का यह उत्सव न सिर्फ सांस्कृतिक आयोजन था, बल्कि झारखंडी अस्मिता, परंपरा, गर्व और सामूहिक एकता का सजीव दस्तावेज बन गया। हजारों कलाकारों की थाप, धुन और नृत्य ने राजधानी को ऐसी ऊर्जा से भर दिया जो लंबे समय तक याद की जाएगी।
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