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रांची, वाईबीएन डेस्क : झारखंड में कुड़मी समाज को अनुसूचित जनजाति (एसटी) सूची में शामिल किए जाने की मांग को लेकर विवाद एक बार फिर गहरा गया है। राजधानी रांची के सिरम टोली सरना स्थल और केंद्रीय धुमकुड़िया भवन में आयोजित बैठकों में आदिवासी नेताओं ने साफ कहा कि कुड़मी, कुरमी और महतो कभी आदिवासी नहीं रहे हैं और उनकी मांग किसी भी हालत में स्वीकार नहीं होगी।
आदिवासी नेताओं का आरोप
बैठक में पूर्व मंत्री देवकुमार धान, पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव, चंपा कुजूर, प्रेम शाही मुंडा, बलकु उरांव, प्रदीप उरांव, पवन तिर्की और आकाश तिर्की सहित कई नेताओं ने भाग लिया। नेताओं ने आरोप लगाया कि कुड़मी समाज के नेता राजनीतिक स्वार्थवश दोनों समाजों में खाई पैदा कर रहे हैं। उनका मकसद केवल राजनीतिक पद और सत्ता पाना है। रेल
रोको आंदोलन और विरोध
गीताश्री उरांव ने हाल ही में हुए पांच दिवसीय रेल रोको आंदोलन पर सवाल उठाते हुए कहा कि इतना बड़ा आंदोलन हुआ, लेकिन कुड़मी नेताओं पर एक भी केस दर्ज नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि जब कुड़मी समाज खुद को शिवाजी महाराज का वंशज और मराठा साम्राज्य से जुड़ा बताता है, तो उन्हें आदिवासी मानने का प्रश्न ही नहीं उठता।
आगामी आंदोलन की तैयारी
बैठक में नेताओं ने यह भी कहा कि आदिवासी समाज अब चुप नहीं बैठेगा। 20 सितम्बर को राजभवन के समक्ष एक दिवसीय धरना और 17 अक्टूबर को जिला उपायुक्त कार्यालय का घेराव करने का निर्णय लिया गया। इस मौके पर केंद्रीय सरना समिति महासचिव संजय तिर्की, महिला अध्यक्ष निशा भगत, हर्षिता मुंडा और फूलचंद तिर्की समेत कई नेता उपस्थित थे।