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रांची वाईबीएन डेस्क: राजधानी रांची के ऐतिहासिक दुर्गाबाड़ी मंदिर में इस साल भी विजयादशमी के अवसर पर सिंदूर खेला का आयोजन किया गया। सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी और महिलाओं ने पारंपरिक साड़ियों में सज-धजकर मां दुर्गा के दर्शन किए। विदाई की बेला में आस्था और भावनाओं का संगम देखने को मिला। मां के चरणों में सिंदूर अर्पित करने के बाद महिलाओं ने एक-दूसरे को भी सिंदूर लगाया। इस दृश्य से पूरा वातावरण भक्तिरस से सराबोर हो गया।
श्रद्धा और सौभाग्य का प्रतीक
सिंदूर खेला को बंगाली संस्कृति की सबसे पवित्र परंपराओं में गिना जाता है। मान्यता है कि इस रस्म से वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है और परिवार पर मां दुर्गा की कृपा बनी रहती है। महिलाएं कतारबद्ध होकर थाल में सिंदूर और मिठाई लेकर मां को अर्पित करती हैं और फिर एक-दूसरे के माथे पर सिंदूर लगाकर मंगलकामनाएं देती हैं। इस दौरान लाल रंग की आभा से मंदिर परिसर सजीव हो उठता है।
बदलती परंपरा, बढ़ती भागीदारी
पहले यह रस्म केवल बंगाली समाज तक सीमित थी, लेकिन अब अन्य समुदाय की महिलाएं भी इसमें पूरे उत्साह से शामिल हो रही हैं। इस आयोजन ने अब सांस्कृतिक मेलजोल और सामाजिक एकता का रूप ले लिया है। महिलाएं समूह बनाकर जयकारों के साथ मां के चरणों तक पहुंचती हैं और सिंदूर चढ़ाकर सामूहिक आशीर्वाद लेती हैं। इस अवसर पर वातावरण में उमंग, उल्लास और सामूहिकता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
सांस्कृतिक धरोहर का विस्तार
रांची का दुर्गाबाड़ी केवल एक पूजा स्थल नहीं, बल्कि साझा परंपरा का प्रतीक बन चुका है। विजयादशमी पर मां की विदाई से श्रद्धालु भावुक जरूर हो जाते हैं, लेकिन सिंदूर खेला के दौरान हंसी और उत्साह छा जाता है। महिलाओं का कहना है कि यह परंपरा केवल रस्म नहीं, बल्कि आस्था और विश्वास का उत्सव है। हर साल बढ़ती भागीदारी इसे और भव्य बनाती है और यही वजह है कि दुर्गाबाड़ी का सिंदूर खेला आज रांची की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में पहचान बना चुका है।