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रांची वाईबीएन डेस्क : राजधानी रांची का कर्बला चौक इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि धर्म इंसान को बांटने के लिए नहीं बल्कि जोड़ने के लिए है। मुस्लिम समुदाय की बहुलता वाले इस इलाके में 1956 से लगातार दुर्गा पूजा का आयोजन हो रहा है। यहां की सबसे खास बात यह है कि पूजा समिति में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय बराबर की भागीदारी निभाते हैं। यही वजह है कि कर्बला चौक दुर्गा पूजा केवल धार्मिक पर्व नहीं बल्कि भाईचारे का उत्सव बन चुका है।
मुस्लिम और हिंदू संरक्षकों की साझी सोच
पूजा समिति के मुस्लिम संरक्षक अफरोज आलम कहते हैं कि जो लोग समाज में नफरत फैलाना चाहते हैं, उन्हें यहां आकर देखना चाहिए। दुर्गा पूजा की हर तैयारी में मुस्लिम समाज पूरी सक्रियता से भाग लेता है। वहीं हिंदू संरक्षक यादवजी बताते हैं कि इस इलाके में दशकों से कभी विवाद की स्थिति नहीं बनी। हर वर्ष मुस्लिम पड़ोसी पूरे दिल से आयोजन में सहयोग करते हैं और इसे सफल बनाते हैं। दोनों का कहना है कि सच्चा त्योहार वही है जिसमें सभी धर्मों के लोग शामिल हों।
साझा संस्कृति की मिसाल और देश को संदेश
कर्बला चौक में पूजा पंडाल की सजावट, प्रतिमा स्थापना, रोशनी, सुरक्षा व्यवस्था और भंडारे तक हर कार्य में हिंदू-मुस्लिम मिलकर जिम्मेदारी निभाते हैं। महिलाएं और बच्चे भी मंदिर परिसर में शामिल होकर इस मेलजोल की तस्वीर को और मजबूत करते हैं। यह आयोजन केवल पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे देश को यह संदेश देता है कि इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है। कर्बला चौक की दुर्गा पूजा उन तमाम कोशिशों के लिए आईना है जो समाज को धर्म के नाम पर बांटने का काम करती हैं। यह आयोजन गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक है और बताता है कि जब इंसान एकजुट हो तो कोई भी दीवार स्थायी नहीं रह सकती।