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रांची वाईबीएन डेस्क : राजधानी रांची में शारदीय नवरात्र का शुभारंभ पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ हुआ। झारखंड आर्म्ड फोर्स (जैप-1) के गोरखा जवानों की परंपरा इस पर्व पर हर साल विशेष आकर्षण का केंद्र रहती है। .
मूर्ति नहीं, कलश से होती है पूजा की शुरुआत
यहां प्रतिमा स्थापित करने की परंपरा नहीं है, बल्कि कलश स्थापना से नवरात्र का आरंभ होता है। पहले दिन मां शक्ति को बंदूकों की फायरिंग से सलामी दी जाती है, जो गोरखा जवानों की वीरता और आस्था का प्रतीक मानी जाती है। .
गोरखा जवानों की पत्नियों की भागीदारी
पूरे नौ दिनों तक जवानों की पत्नियां कलश पूजन करती हैं। वे परिक्रमा मुद्रा में बैठकर आराधना करती हैं और वातावरण शक्ति के जयकारों व मंत्रोच्चार से गूंजता रहता है।
महानवमी का विशेष महत्व
महानवमी का दिन गोरखा जवानों के लिए खास होता है। इस दिन वे अपने हथियार मां दुर्गा के चरणों में अर्पित कर शस्त्र पूजन करते हैं। परंपरा है कि नवमी पर 101 बलि भी दी जाती है और पूजा के बाद फिर से फायरिंग कर सलामी दी जाती है।
1880 से चली आ रही परंपरा
इस पूजा की शुरुआत 1880 में गोरखा ब्रिगेड ने की थी। बाद में बिहार मिलिट्री पुलिस (बीएमपी) और अब झारखंड आर्म्ड फोर्स (जैप-1) के रूप में यह परंपरा उसी श्रद्धा से निभाई जा रही है। .
फूल पाती शोभायात्रा और पर्यावरण संदेश
महासप्तमी पर फूल पाती शोभायात्रा का आयोजन किया जाता है। इसमें नौ प्रकार के पेड़ों की शाखाओं का पूजन कर पर्यावरण संरक्षण और संतुलन की कामना की जाती है। इस अवसर पर भी गोरखा जवान बंदूकों से सलामी देते हैं।
कमांडेंट की मौजूदगी और सांस्कृतिक धरोहर
इस बार भी जैप-1 के कमांडेंट राकेश रंजन ने पूजा स्थल पर पहुंचकर जवानों और श्रद्धालुओं को शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि यह परंपरा धार्मिक आस्था, अनुशासन और शौर्य का अद्भुत संगम है। श्रद्धालुओं के मुताबिक जैप परिसर की नवरात्रि पूजा रांची की सांस्कृतिक धरोहर है।