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अदालत की फटकार के बाद मंत्री समिति का दौरा, आदिवासी समुदाय ने जताई आपत्तियां

सुप्रीम कोर्ट की नाराज़गी के बाद झारखंड सरकार ने सारंडा वन क्षेत्र को सेंचुरी बनाने पर विचार शुरू किया। मंत्री समिति ने छोटानागरा गांव में जनसभा की, जहां 56 गांवों के हजारों ग्रामीण पहुंचे। ग्रामीणों ने जमीन, परंपरागत अधिकार, पूजा स्थलों और वनोपज

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MANISH JHA
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रांची,चाईबासा वाईबीएन डेस्क: सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए पूछा था कि आखिर क्यों अब तक सारंडा वन क्षेत्र को सेंचुरी घोषित करने की दिशा में कदम नहीं बढ़ाए गए। अदालत की नाराज़गी के बाद सरकार ने मंत्रिपरिषद की बैठक में फैसला लिया कि इस मुद्दे पर व्यापक जनमत जुटाया जाएगा। इसी क्रम में मंगलवार को राज्य के पांच मंत्री छोटानागरा गांव पहुंचे और ग्रामीणों से संवाद किया। समिति का नेतृत्व मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने किया, जबकि दीपक बिरूवा, चमरा लिंडा, संजय प्रसाद यादव और दीपिका पांडेय सिंह सदस्य के रूप में शामिल थे। इस दौरे में सांसद, विधायक, जिला परिषद सदस्य, डीसी-एसपी और वन विभाग के अधिकारी भी मौजूद रहे। 

ग्रामीणों की चिंताएं और सवाल

छोटानागरा मैदान में आयोजित जनसभा में 56 गांवों के हजारों लोग जुटे। समिति ने उन्हें भरोसा दिलाया कि उनकी राय ही रिपोर्ट का आधार होगी और किसी भी फैसले को थोपने की कोशिश नहीं होगी। इसके बावजूद ग्रामीणों ने कई गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि उनकी जमीन, परंपरागत पूजा स्थल और वनोपज पर किसी तरह का अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं होगा। विस्थापन की आशंका पर पंचायत प्रतिनिधियों ने सरकार से साफ जवाब मांगा कि अगर गांव हटाए जाते हैं तो पुनर्वास की नीति क्या होगी। साथ ही उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जिला मिनरल्स फंड ट्रस्ट (DMFT) में करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं, पर गांवों तक लाभ नहीं पहुंच रहा।

खनन, रोजगार और विकास की मांग

 ग्रामीणों ने बंद पड़ी खदानों को पुनः चालू करने की मांग रखी। उनका कहना था कि इलाके में खनन से होने वाली आय तो सरकार और कंपनियों तक जाती है, लेकिन स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिलता। बेरोजगार युवाओं को सौ प्रतिशत रोजगार की गारंटी दी जानी चाहिए। वहीं कुछ लोगों ने यह भी कहा कि सेंचुरी बनने से पर्यटन और पर्यावरणीय संतुलन को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन विरोधियों ने इसे आजीविका पर खतरा बताते हुए कहा कि खेती, चराई और वनोपज की गतिविधियों पर रोक लग सकती है, जिससे विस्थापन की स्थिति भी बन सकती है।

 सरकार का आश्वासन और आगे की दिशा

समिति अध्यक्ष राधाकृष्ण किशोर ने स्पष्ट किया कि सरकार लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास करती है और जनता की भावनाओं के विपरीत कोई कदम नहीं उठाएगी। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन साथ ही ग्रामीणों की राय सर्वोपरि होगी। सरकार का लक्ष्य संरक्षण और विकास के बीच संतुलन बनाना है, ताकि वन्यजीव सुरक्षित रहें और आदिवासी समुदाय की सांस्कृतिक पहचान व जीवनशैली भी अक्षुण्ण बनी रहे। मंत्री समिति आने वाले दिनों में अन्य गांवों का दौरा कर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगी, जिसके आधार पर अंतिम फैसला लिया जाएगा।

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