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रांची वाईबीएन डेस्क : झारखंड में धर्मांतरण पर नई बहस शुरू हो गई है। सरना समुदाय के साथ–साथ विभिन्न चर्चों के सदस्यों को जबरन दूसरे समूह में शामिल किए जाने का आरोप सामने आया है। दशमाईल में आयोजित सरना समिति की बैठक में मेघा उरांव ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया।
चर्चों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा पर आरोप
मेघा उरांव ने बैठक में दावा किया कि डूबकी मिशन, जीईएल चर्च, कैथॉलिक, प्रोटेस्टेंट और पेंटेकोस्टल सहित कई चर्चों के बीच अनुयायियों की संख्या बढ़ाने की होड़ चल रही है। उन्होंने कहा कि इसी प्रतिस्पर्धा के कारण एक चर्च के लोगों को दूसरे चर्च के कार्यक्रमों में शामिल कराकर मजबूरन धर्मांतरण जैसी स्थितियाँ पैदा की जा रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि चांद गांव में प्रार्थना और चंगाई सभा के नाम पर बीते एक वर्ष से भोले-भाले आदिवासी और अन्य समुदायों के लोग प्रभावित हो रहे हैं, जिससे सामाजिक तनाव भी बढ़ रहा है। समिति ने 23 दिसंबर को होने वाली प्रस्तावित सभा के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध की रणनीति तय की।
आदिवासी विकास और धर्मांतरण को लेकर चिंता
समिति के केंद्रीय अध्यक्ष रामपाहान बांडो ने कहा कि झारखंड में आदिवासियों के विकास की बातें वर्षों से कागजों में ही सीमित हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अभाव में आदिवासियों को मजबूरी का फायदा उठाकर धर्मांतरण कराया जा रहा है। सोमा उरांव ने आरोप लगाया कि बाहरी तत्वों द्वारा चलाया जा रहा यह अभियान स्थानीय स्तर पर कुछ समूहों से संरक्षण पाकर मजबूत हो रहा है।
धार्मिक आयोजनों के प्रभाव पर सवाल
डॉ. करमा उरांव ने चंगाई सभाओं की उपयोगिता पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि वास्तव में इस तरह के कार्यक्रमों से बीमारी और बेरोजगारी खत्म हो सकती, तो कोरोना काल में अस्पतालों की जगह ऐसे मिशनरियों को भेजा जाता। बैठक में रामपाहान बांडो, शनि टोप्पो, त्रिलोक सिंह, महली पाहान, सोमा उरांव, संदीप उरांव, बुधराम बेदिया और अजय कुमार सहित बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे।
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