NETAJI जयंती पर विशेष: सुभाष, गांधी और नेहरू में इतनी भी दूरियां न थीं
पिछले दशकों में सुभाष, गांधी और नेहरू के बीच में जो दूरियां पैदा की गईं वह ऐसी भी नहीं थीं जैसी हमें दिखाई जा रही हैं। तमाम टकराव के बावजूद आपसी सम्मान और सहयोग परस्पर बना रहा चाहें तीनों कहीं भी रहे हों।
आज हम नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 128 वीं जयंती मना रहे हैं। पिछले दशकों में सुभाष, गांधी और नेहरू के बीच में जो दूरियां पैदा की गईं वह ऐसी भी नहीं थीं जैसी हमें दिखाई जा रही हैं। तमाम टकराव के बावजूद आपसी सम्मान और सहयोग परस्पर बना रहा चाहें तीनों कहीं भी रहे हों। नेताजी का राजनीतिक जीवन बहुत ही उथल-पुथल रहा लेकिन उसके बावजूद उनका लक्ष्य बिल्कुल सीधा था। जहां एक ओर कांग्रेस में वह एक मुख्य चेहरा बनकर उभरे और बाद में कांग्रेस भी छोड़ दी। तमाम टकराव के बावजूद भी नेहरू और गांधी को लेकर उनका सम्मान या उन दोनों का सुभाष के प्रति सम्मान कभी कम नहीं हुआ। सुगत बोस अपनी किताब 'हिज़ मेजेस्टीज़ अपोनेंट' में लिखते हैं, "जब नेहरू यूरोप पहुँचे तो बोस नेहरू से मिलने ब्लैक फ़ॉरेस्ट रिसॉर्ट गए और दोनों एक ही बोर्डिंग हाउस में रुके। जब कमला नेहरू की हालत थोड़ी बेहतर हुई तो सुभाष ऑस्ट्रिया चले गए।"वो आगे लिखते हैं, "वहाँ से उन्होंने नेहरू को पत्र लिखकर कहा कि अगर मैं आपकी परेशानी में थोड़ा-बहुत भी काम आ सकता हूँ तो मुझे बुलावा भेजने में हिचकिचाइएगा नहीं। जब 28 फ़रवरी, 1936 को स्विटज़रलैंड के शहर लुज़ान में कमला नेहरू ने अंतिम साँस ली तो जवाहरलाल नेहरू, सुभाष बोस और इंदिरा गांधी वहाँ मौजूद थे।"वो लिखते हैं, "बोस ने ही कमला नेहरू के अंतिम संस्कार की व्यवस्था करवाई। नेहरू के दुखद दिनों में सुभाष की उनके पास उपस्थिति ने दोनों के बीच संबंधों को और घनिष्ठ कर दिया।"
सुभाष ने ही गांधी को कहा था राष्ट्रपिता
सुभाष चंद्र बोस और गांधी Photograph: (internet media )
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यह सुभाष ही हैं जिन्होंने गांधी को राष्ट्रपिता कहा इसलिए वह लोग जो गांधी के राष्ट्रपिता होने पर सवाल उठाते हैं वह कहीं ना कहीं सुभाष का ही विरोध कर रहे हैं। अंग्रेजों के चंगुल से बचकर जुलाई 1943 में सुभाष चंद्र बोस जर्मनी से जापान के नियंत्रण वाले सिंगापुर पहुंचे थे। 4 जून 1944 को सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए महात्मा गांधी को देश का पिता (राष्ट्रपिता) कहकर संबोधित किया।सुभाष ने कहा कि ,’भारत की आजादी की आखिरी लड़ाई शुरु हो चुकी है।ये हथियारबंद संघर्ष तब तक चलेगा, जब तक ब्रिटिश को देश से उखाड़ नहीं देंगे। थोड़ी देर रुककर उन्होंने कहा ‘राष्ट्रपिता , हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई में हम आपका आशीर्वाद मांगते हैं। अद्भुत तो यह था कि सुभाष चंद्र बोस ने आइएनए के रेजिमेंट के नाम महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, मौलाना आजाद और अपने नाम पर रखे।
झांसी की रानी के नाम पर गठित की थी महिला विशेष रेजीमेंट
नेताजी ने आजाद हिंद सेना के अंतर्गत ही एक महिला विशेष रेजिमेंट का भी गठन किया था। इसके लिए उन्हें आइएनए और आम नागरिकों की तरफ से काफी आलोचना भी झेलनी पड़ी, लेकिन उन्होंने आलोचनाओं की परवाह किए बगैर महिला यूनिट के गठन का काम पूरा किया। इस यूनिट का नाम झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के नाम पर रखा गया।
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गांधी ने नेताजी को कहा था देशभक्तों के राजकुमार
गांधी जी ने सुभाष बोस की विमान दुर्घटना की मृत्यु की खबर पर कहा था,’उन जैसा दूसरा देशभक्त नहीं, वह देशभक्तों के राजकुमार थे।’ 24 फरवरी 1946 को अपनी पत्रिका ‘हरिजन’ में गांधी ने लिखा,’आजाद हिंद फौज का जादू हम पर छा गया है। नेताजी का नाम सारे देश में गूंज रहा है। वे अनन्य देश भक्त थे। उनकी बहादुरी उनके सारे कामों में चमक रही है।इसलिए मैं युवाओं से यही कहना चाहूंगा कि इतिहास को गहराई से पढ़ें और किताबों से ही आंकड़े उठाएं तभी आप तर्क दे पाएंगे।
लेखक- डॉ.स्वप्निल यादव, प्रोफेसर जीएफ पीजी कालेज व संस्थापक संकल्प आइएएस
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