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नई दिल्ली, वाईबीएन स्पोर्ट्स। साल था 1991 और तारीख 7 मई। मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में एक अजीबोगरीब मंजर दिखाई दे रहा था। दिलीप वेंगसरकर जमीन में सिर गाढ़कर फूटफूटकर रो रहे थे। उधर ड्रेसिंग रूम में सचिन तेंदुलकर की आंखों से गंगा जमुना बह रही थी। मुंबई के बाकी प्लेयर सोच भी नहीं पा रहे थे कि किस तरह से सचिन के चुप कराया जाए और कैसे दिलीप वेंगसरकर को मैदान से ड्रेसिंग रूम लाया जाए। दोनों के करीब जाने की हिम्मत भी कोई खिलाड़ी नहीं जुटा पा रहा था। हो भी क्यों ना। रणजी का तकरीबन हारा हुआ फाइनल मैच हरियाणा के हाथों से छीनने के बाद मुंबई 2 रनों से हार गई थी।
ये मैच इतिहास के पन्नों में शुमार है। एक ऐसा मैच जिसमें हरियाणा की तरफ से कपिल देव, चेतन शर्मा, अजय जड़ेजा और विजय यादव जैसे खिलाड़ी थे जो भारत के लिए खेल चुके थे। मुंबई की टीम में दिलीप वेंगसरकर, सचिन तेंदुलकर, विनोद कांबली, संजय मांजरेकर, चंद्रकांत पंडित और सलिल अंकोला जैसे धाकड़ खिलाड़ी थे। ये सारे भारत की तरफ से अपना जलवा दिखा चुके थे। ये मैच कई मायनों में खास था। 1992 विश्वकप के लिए भारतीय टीम का चयन होना था। रणजी ट्राफी में अपने हाथ दिखाकर कई खिलाड़ी भारत के लिए खेलने की दावेदारी पेश कर रहे थे।
कपिल के दम पर सेमीफाइनल में जीता हरियाणा
हरियाणा ने चेतन शर्मा और अमरजीत केपी के उम्दा प्रदर्शन की बदौलत सेमीफाइनल में जगह बनाई तो चैंपियन आलराउंडर कपिल देव ने बागडोर संभाल ली। सेमीफाइनल में कपिल ने बंगाल के खिलाफ धमाकेदार शतक बनाया और फिर अपनी स्विंग में बल्लेबाजों को फंसाकर 5 विकेट झटके। कपिल के लिए रणजी ट्राफी बेहद अहम थी। इस महान खिलाड़ी के ड्राइंग रूम में क्रिकेट का हर कप था सिवाय रणजी ट्राफी के।
पहली पारी में हरियाणा ने बनाए थे 522 रन
चार दिनों तक चलने वाले मैच की पहली पारी में हरियाणा ने बेहतरीन बल्लेबाजी करके 522 रनों का बड़ा स्कोर खड़ा किया। उम्रदराज दीपक शर्मा ने 199 रनों की शानदार पारी खेली। अजय जड़ेजा और चेतन शर्मा ने ताबड़तोड़ 90-90 रन ठोके। मुंबई अपनी पहली पारी में महज 410 रन बना सकी। एक समय मुंबई के 322 रनों पर 4 विकेट थे। वेंगसरकर और सचिन बेहतरीन बल्लेबाजी कर रहे थे। दोनों के बीच 78 रनों की साझेदारी हो चुकी थी। लेकिन फिर कपिल ने शानदार इनकटर पर वेंगसरकर को क्लीन बोल्ड कर दिया। चेतन ने तेंदुलकर को चलता कर दिया। मुंबई की टीम ताश के पत्तों की तरह से ढहकर 410 रनों के स्कोर पर सिमट गई।
190 मिनट और 20 मेंडेटरी ओवर्स में मुंबई को बनाने थे 355 रन
कपिल आधी लड़ाई जीत चुके थे। रणजी का नियम है कि मैच बेनतीजा रहे तो पहले पारी में जो टीम लीड लेती है वो ही विजेता मानी जाती है। कपिल और उनके प्लेयर्स को केवल समय को जाया करना था। हरियाणा ने इस लीक पर काम भी किया। दूसरी पारी में हरियाणा ने चौथे दिन तक बैटिंग की। मुंबई के गेंदबाज उमस भरी तीखी गर्मी में पसीना बहाते रहे। हरियाणा की मंशा केवल समय को बिताने की थी। हरियाणा का जब आखिरी विकेट गिरा तब तक मुंबई के लिए 355 रनों का पहाड़ जैसा टारगेट खड़ा हो चुका था। रनों के लिहाज से वेंगसरकर और तेंदुलकर सरीखे दिग्गजों के लिए ये नामुमकिन नहीं था। लेकिन मुंबई के पास महज 190 मिनट और 20 मेंडेटरी ओवर थे।
सचिन ने 96 रनों की पारी से बदल डाला सीन
मुंबई की पारी की शुरुआत बेहद खराब रही। 34 रनों पर 3 विकेट गिर चुके थे। दर्शक भी मान बैठे थे कि मुंबई मैच नहीं जीत सकती। वानखेड़े स्टेडियम के स्टैंड खाली होने लगे थे। 3 विकेट गिरने के बाद तेंदुलकर मैदान में आए। उसके बाद जो कुछ भी हुआ उसने कपिल देव की भी सांसें उखाड़ दीं। मास्टर ब्लास्टर ने महज 18 साल की उम्र में कपिल और चेतन शर्मा की बखिया उधेड़कर रख दी। दोनों का हर पैंतरा फेल हो गया। कपिल ने एक स्लोअर फेंकी। तेंदुलकर ने जिस अंदाज में सीधे बल्ले से गेंद के मैदान के बाहर भेजा, उसने भारत के सबसे महान तेज गेंदबाद की सांसें उखाड़ दीं। कपिल समझ गए थे कि तूफान रुकने वाला नहीं है। आलम ये था कि बालर और विकेटकीपर को छोड़कर सारे हरियाणा के खिलाड़ी बाउंड्री लाइन पर मौजूद थे। वो इंतजार में थे कि कोई शाट मिसटाइम हुआ तो तेंदुलकर को ड्रेसिंग रूम में भेजा जा सकता है। सचिन ने 75 गेंदों पर धुआंधार 96 रन बनाए। जब वो आउट हुए तो मैच पर मुंबई की पकड़ थी।
वेंगसरकर का ताबड़तोड़ अंदाज में बनाया गया शतक हुआ बेकार
सचिन के आउट होने के बाद दिलीप वेंगसरकर ड्राइविंग सीट पर आए और उन्होंने ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करके मुंबई को जीत की दहलीज पर लाकर खड़ा कर दिया। जो लक्ष्य नामुमकिन दिख रहा था सचिन और वेंगसरकर ने उसे बौना बना दिया था। आलम ये था कि मुंबई को 15 गेंदों में जीत के लिए महज 3 रन चाहिए थे। क्रीज पर 136 रन बनाकर वेंगसरकर मजबूती से डटे थे। उनका साथ दे रहे थे अभय कुरुविला। वेंगसरकर के पैर में दिक्कत थी तो उनके रनर के तौर लाल चंद राजपूत क्रीज पर थे। कपिल को तब भी उम्मीद थी कि वो जीत सकते हैं क्योंकि मुंबई 9 विकेट गंवा चुकी थी। जब चेतन शर्मा ने गेंद फेंकी और कुरुविला ने उसे बाउंड्री की तरफ भेजा तो दिलीप वेंगसरकर शार्टलेग पर अंपायर के पास खड़े थे। कुरुविला के शाट के बाद लाल चंद राजपूत ने दौड़ना शुरू किया लेकिन केपी ने शानदार थ्रो के जरिये स्टंप बिखेर दिए। कपिल दोनों हाथ आसमान में उठाकर भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे थे तो वेंगसरकर जहां थे वहीं घुटनों के बल बैठ गए। मुंबई जीती बाजी हार चुकी थी।
दशकों बाद भी कपिल के जहन में है सचिन का छक्का
कपिल ने अपनी पहली रणजी ट्राफी जीतने का जश्न शैम्पेन खोलकर मनाया। सालों बाद उन्होंने उस मैच को याद करते हुए सचिन की बेजोड़ पारी को याद किया। कपिल का कहना था कि सचिन ने जिस अंदाज में उनकी स्लोअर लेट स्विंग को मैदान के पार पहुंचाया, उससे उनके होश उड़ गए थे। उन्हें उसी वक्त लग गया था कि ये छोटे से कद का खिलाड़ी दुनिया भर के गेंदबाजों के लिए बुरा सपना बनने वाला है। सचिन ने उस शाट से अपनी क्लास दिखाई थी। कपिल का कहना है कि वो मैच उनके लिए 1983 के वर्ल्ड कप के फाइनल की तरह से है। वो उस मैच की फुटेज बार बार देखना चाहते हैं लेकिन उनको ये कहीं से भी नहीं मिल पाई। कपिल के लिए ये मैच कितना खास है कि उन्होंने फुटेज देने वाले को मुंहमांगी कीमत देने की बात तक कही है।