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जेमिमा के 'मैजिक' से शेफाली के 'शो' तक विश्वकप जीत की वो 'दीप्ति'मान दास्तान जो पहले कभी नहीं सुना होगा | यंग भारत न्यूज Photograph: (YBN)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । यह सिर्फ एक क्रिकेट मैच नहीं है, दशकों तक प्रेरणा देने वाली एक महागाथा है। महिला विश्वकप की यह जीत किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं। जहां करो या मरो के मैच में चोट, हार का डर और सात बार की चैंपियन ऑस्ट्रेलिया का सामना था। स्मृति-प्रतिका की जोड़ी टूटी, लेकिन जेमिमा रॉड्रिग्स ने इतिहास रच दिया। फिर फाइनल में महज छह दिनों में शेफाली वर्मा का जीवन बदल गया, और ऑलराउंडर दीप्ति शर्मा ने ‘प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट’ बनकर देश को चैंपियन बना दिया।
विश्वकप 2025 जीत की ये 'दीप्ति'मान रोशनी दशकों तक हरमन-हर स्मृति में रहेगी। महिला क्रिकेट विश्वकप की यह जीत देश की हर बेटी के लिए सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं, बल्कि आसमान छूने का एक मजबूत हौसला है। यह सफर शुरू में जितना आसान लगा, अंजाम तक पहुंचने में उतना ही चुनौती भरा रहा। जिस टीम पर पहले धीमी शुरुआत का आरोप लगा, उसी टीम ने बाद में करो या मरो के मुकाबलों में शौर्य और जुझारूपन का ऐसा प्रदर्शन किया कि हर कोई देखता रह गया।
यह कहानी है हार के डर से लेकर इतिहास रचने तक की है, जहां हर मोड़ पर एक नया नायक सामने आया।
जब हर हार का मतलब था 'टूर्नामेंट से बाहर'
स्मृति-प्रतिका का पराक्रम लीग चरण का वह छठा मुकाबला, जब भारत का सामना न्यूजीलैंड से था। समीकरण सीधा था हार का मतलब सेमीफाइनल की दौड़ से बाहर होना। हर कोई जानता था कि यह कितना बड़ा दबाव था। टॉस हारने के बाद, जब स्मृति मंधाना और प्रतिका रावल मैदान पर उतरीं, तो उन्होंने सिर्फ रन नहीं बनाए, बल्कि एक अटूट विश्वास की नींव रखी।
रिकॉर्ड साझेदारी: दोनों खिलाड़ियों ने 212 रनों की अविश्वसनीय साझेदारी करके दबाव को हवा में उड़ा दिया।
दबाव में शतक: उपकप्तान स्मृति ने महज 95 गेंदों पर 109 रन बनाए, तो प्रतिका रावल ने 122 रनों की शानदार पारी खेली।
जेमिमा का योगदान: इसके बाद, जेमिमा रॉड्रिग्स ने 76 रनों की तेज पारी खेलकर स्कोर को 340 के विशाल पहाड़ तक पहुंचाया।
परिणाम: डकवर्थ लुइस नियम के चलते न्यूजीलैंड 53 रन से हार गई। इस जीत ने न केवल हमें सेमीफाइनल में पहुंचाया, बल्कि पूरी टीम को एक नई ऊर्जा से भर दिया।
लेकिन, इस ऐतिहासिक जीत के जश्न के बीच एक ऐसी बुरी ख़बर आई, जिसने टीम इंडिया के खेमे में मायूसी ला दी।
जीत के नायक की अचानक विदाई... सेमीफाइनल से पहले बड़ा झटका
जब टूटी 'प्रतिका-स्मृति' की जोड़ी: सेमीफाइनल में प्रवेश तो हो गया था, लेकिन मैच से ठीक पहले एक बुरी खबर ने सबको स्तब्ध कर दिया। करो या मरो के मैच में शतक लगाने वाली प्रतिका रावल चोटिल होकर टूर्नामेंट से बाहर हो गईं। यह सिर्फ एक खिलाड़ी का बाहर होना नहीं था, यह टीम की सबसे सफल ओपनिंग साझेदारी का टूटना था।
अब भारत का सामना था सात बार की विश्व विजेता और लगातार 15 मैच जीत चुकी अजय ऑस्ट्रेलिया से। चारों टीमों में चौथे नंबर पर रही भारतीय टीम के लिए यह मुकाबला किसी भी हाल में आसान नहीं था। प्रतिका की जगह टीम में शेफाली वर्मा को शामिल किया गया, जिनके लिए यह मौका भी था और बड़ी चुनौती भी।
सेमीफाइनल 'जेमिमा के मैजिक' ने रच दिया इतिहास
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल... यह मुकाबला इसलिए भी खास था, क्योंकि पिछली 15 जीत के साथ ऑस्ट्रेलिया अजेय दिख रही थी। एक बार फिर भारत टॉस हारा और ऑस्ट्रेलिया ने 338 रन का बड़ा लक्ष्य खड़ा किया। युवा गेंदबाज अमजोत कौर और टूर्नामेंट की नई खोज श्री चरणी की किफायती और शानदार गेंदबाजी ने 400 की ओर बढ़ रही कंगारू टीम पर लगाम लगाई।
अब 339 का रिकॉर्ड चेज करना था। नई ओपनिंग जोड़ी, शेफाली और स्मृति, 59 रन पर पवेलियन लौट चुकी थीं। यहीं से शुरू हुई वह पारी, जिसने भारतीय क्रिकेट इतिहास को नई दिशा दी।
करियर का टर्निंग पॉइंट: प्लेइंग इलेवन से बाहर की जा चुकीं जेमिमा रॉड्रिग्स कप्तान हरमनप्रीत के साथ क्रीज पर आईं।
ऐतिहासिक साझेदारी: जेमिमा और हरमनप्रीत ने जिम्मेदारी संभाली और ऐसा काउंटर-अटैक किया कि ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज भी बेबस दिखे। हरमनप्रीत 89 रन बनाकर आउट हुईं, लेकिन जेमिमा टिकी रहीं।
'मैजिक' पारी: जेमिमा ने नाबाद 127 रन बनाकर टीम को ऐतिहासिक जीत दिलाई और भारत ने रिकॉर्ड चेज करके फाइनल में जगह पक्की की। उन्हें प्लेयर ऑफ द मैच चुना गया।
हरमन-जेमिमा के पराक्रम ने फाइनल का टिकट तो दिला दिया, लेकिन असल परीक्षा तो अभी बाकी थी। और इस परीक्षा में, छह दिन पहले टीम में आई एक युवा खिलाड़ी ने अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखवा लिया।
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फाइनल छह दिन में बदली शेफाली की जिदंगी
27 अक्टूबर को टीम में शामिल हुईं 21 साल की शेफाली वर्मा सेमीफाइनल में कुछ खास नहीं कर सकी थीं, लेकिन फाइनल में उनकी किस्मत बदलने वाली थी। वह शेफाली, जिन्हें महिला क्रिकेट का सहवाग कहा जाता है, जो एक साल से वनडे टीम से बाहर थीं— उन्होंने फाइनल के लिए उस दिन को चुना, जब खुद उनके आदर्श सचिन तेंदुलकर मैच देख रहे थे।
फाइनल मैच में भारत एक बार फिर टॉस हारा और पहले बल्लेबाजी के लिए उतरा।
बल्ले से तूफान: शेफाली वर्मा और स्मृति मंधाना ने 104 रनों की बेहतरीन साझेदारी की। स्मृति 45 रन पर आउट हुईं, लेकिन शेफाली ने 87 रनों की यादगार पारी खेली।
दीप्ति की निरंतरता: मध्य क्रम में दीप्ति शर्मा ने इस विश्वकप का अपना तीसरा अर्धशतक जड़कर स्कोर को 298 तक पहुंचाया।
गेंद से पलटवार: दक्षिण अफ्रीका की कप्तान जब जीत की दीवार बनकर खड़ी थीं, तब शेफाली ने एक ही ओवर में एक के बाद एक दो विकेट लेकर भारत को मैच में वापस ला दिया।
दीप्ति का जादू: इसके बाद, दीप्ति शर्मा ने अपनी फिरकी का जादू दिखाया और नियमित अंतराल पर विकेट लेकर अफ्रीकी पारी को ढहा दिया।
परिणाम: भारत ने यह महामुकाबला जीतकर विश्वकप ट्रॉफी पर कब्जा किया।
जीत के हीरो: शेफाली वर्मा को प्लेयर ऑफ द फाइनल चुना गया। दीप्ति शर्मा को उनके बेहतरीन ऑलराउंड प्रदर्शन के लिए प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट चुना गया। यह जीत साबित करती है कि मुश्किल हालात में भी अगर टीम का हर सदस्य अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करे, तो कोई भी लक्ष्य नामुमकिन नहीं है। यह 'दीप्ति'मान रोशनी आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरणा देगी।
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