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आगरा, वाईबीएन डेस्क। शहर की सबसे व्यस्त व्यावसायिक केंद्र संजय प्लेस में पार्किंग में वाहन पार्क करने को लेकर भारी बवाल मच गया। चार्टर्ड अकाउंटेंट(CA)के पुत्र एवं कर अधिवक्ता शशांक अग्रवाल के साथ नगर निगम के ठेकेदार कर्मवीर और उसके कर्मचारियों ने पार्किंग शुल्क को लेकर विवाद में मारपीट कर दी। आरोप है कि ठेकेदार के लोगों ने सीए और उनके बेटे के कपड़े भी फाड़ डाले। घटना से आक्रोशित व्यापारी एकजुट हो गए और इस घटना को लेकर तीखा विरोध दर्ज कराया। थाना हरी पर्वत पर सैकड़ों लोग जमा हो गए। इस मारपीट का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है।
ठेकेदार के लोगों व सीए के बीच हुई मारपीट
जानकारी के अनुसार, सीए शशांक अग्रवाल का दफ्तर संजय प्लेस में है, रोज की तरह अपनी कार पार्क कर रहे थे, तभी ठेकेदार के दो कर्मचारियों ने पैसे की मांग की, जिसे लेकर कहासुनी हो गई। बात इतनी बढ़ गई कि उन कर्मचारियों ने शशांक के साथ मारपीट शुरू कर दी। मौके पर पहुंचे उनके अधिवक्ता के बेटे अधिवक्ता के साथ भी मारपीट की। इसके बाद इलाके में हंगामा खड़ा हो गया। मारपीट करने वालों में एक कर्मवीर बघेल, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ा हुआ है। दूसरी ओर सीए शशांक अग्रवाल प्रमुख व्यवसायी और जनकपुरी कमेटी के संयोजक मुरारी प्रसाद अग्रवाल के भतीजे हैं।
थाने तक पहुंचा मामला
घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और दोनों पक्षों को हरीपर्वत थाने ले जाया गया। यहां भी घंटों तक हंगामा और बहस का माहौल बना रहा। पुलिस दोनों पक्षों को धारा 151 (शांति भंग) में चालान करने पर अड़ी थी। पुलिस का कहना था कि दोनों पक्षों ने एक-दूसरे से मारपीट की है, जबकि वहां मौजूद लोग चाहते थे कि चालान के बजाय मामले को आपस में समझाकर निपटा दिया जाए।
ठेका ही बना विवाद की जड़, व्यापारियों में उबाल
थाने पर मौजूद व्यापारियों, अधिवक्ताओं और भाजपा पार्षदों ने खुलकर ठेके के विरोध में आवाज उठाई। व्यापार मंडल अध्यक्ष टी.एन. अग्रवाल ने आरोप लगाया कि नगर निगम ने यह ठेका गलत तरीके से उठाया, जिसकी शर्तों का लगातार उल्लंघन हो रहा है। व्यापारियों का कहना है कि ठेकेदार के गुर्गे जबर्दस्ती वसूली करते हैं, रसीद तक नहीं देते, और आये दिन पार्किंग को लेकर विवाद, गाली-गलौज और मारपीट होती है। उन्होंने मांग की कि नगर निगम को ठेके की पूरी जांच कर इसे तत्काल निरस्त करना चाहिए।
अब होगी ठेके की जांच
घटना के बाद तय हुआ कि पुलिस ठेकेदार से दस्तावेज मांगकर ठेका शर्तों की जांच करेगी ताकि भविष्य में विवाद से बचा जा सके। लेकिन सवाल यही है कि अगर पुलिस और निगम समय रहते ध्यान देते तो आज यह नौबत क्यों आती?