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बिहार की राजनीति में इन दिनों डॉ. अशोक चौधरी के इस्तीफे की चर्चा तेज है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भरोसेमंद मंत्रियों में शुमार अशोक चौधरी किसी भी समय पद छोड़ सकते हैं। वजह है प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी की ओर से लगाए गए गंभीर आरोप। पीके ने चौधरी पर 200 करोड़ रुपये की संपत्ति गलत तरीके से अर्जित करने का दावा किया था और बैंक खातों तक का ब्यौरा सार्वजनिक कर दिया था।
चौंकाने वाली बात यह रही कि आरोप लगने के बाद भी मंत्री अशोक चौधरी चुप्पी साधे रहे। उन्होंने न तो इन आरोपों का ठोस खंडन किया और न ही सबूत पेश किए। इस बीच उनकी बेटी और लोजपा (रामविलास) सांसद शांभवी चौधरी ने सामने आकर आरोपों को “नीच हरकत” बताया, लेकिन बचाव में कोई ठोस तर्क नहीं दिया।
यही खामोशी अब उनके लिए भारी पड़ रही है। पहले जदयू के विधान पार्षद नीरज कुमार ने सार्वजनिक रूप से मांग की कि अशोक चौधरी अपनी स्थिति स्पष्ट करें। कई अन्य जदयू नेताओं ने भी इस मांग का समर्थन किया और कहा कि एक मंत्री की वजह से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि धूमिल नहीं होनी चाहिए। रविवार को भाजपा नेताओं ने भी आवाज़ बुलंद कर दी और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नीतीश कुमार से कार्रवाई की मांग की।
नीतीश कुमार का राजनीतिक इतिहास बताता है कि वह अपने मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को हल्के में नहीं लेते। 2017 में जब डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर आरोप लगे थे और संतोषजनक जवाब नहीं मिला, तो नीतीश ने महागठबंधन से इस्तीफा देकर भाजपा के साथ नई सरकार बना ली थी। इससे पहले और बाद में भी कई मंत्री उनके फैसले की भेंट चढ़ चुके हैं, जिनमें मंजू वर्मा, मेवालाल चौधरी, अवधेश कुशवाहा और अन्य नाम शामिल हैं।
अब सवाल यह है कि अशोक चौधरी का भविष्य किस दिशा में जाएगा। क्या वे खुद इस्तीफा देंगे या नीतीश कुमार उन्हें हटाने का फैसला लेंगे? राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि नीतीश अपनी “जीरो टॉलरेंस” की नीति से पीछे नहीं हटेंगे। आने वाले दिनों में यह घटनाक्रम न केवल जदयू की राजनीति बल्कि पूरे बिहार के सत्ता समीकरण पर असर डाल सकता है।
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