बिहार में शिक्षा व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है। लखीसराय जिले में विद्यालय विकास से जुड़ी सरकारी योजनाओं में करोड़ों की फर्जीवाड़ा का खुलासा हुआ है। 36 स्कूलों के प्रधानाध्यापक और 13 ठेकेदारों पर सरकारी धन की बिना काम के निकासी के आरोप में केस दर्ज किया गया है।
डीएम की जांच में फूटा घोटाला
जिला अधिकारी मिथिलेश मिश्र ने जब 321 योजनाओं की जांच के लिए टीम गठित की, तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। जांच में पाया गया कि 90 योजनाएं ऐसी थीं, जिन पर कोई भी स्थल निरीक्षणीय कार्य नहीं हुआ था, फिर भी भुगतान की प्रक्रिया पूरी कर दी गई थी। इससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ।
दो FIR, अलग-अलग विभागों में घोटाला
इस मामले को लेकर डीपीओ (जिला कार्यक्रम पदाधिकारी) ने स्थापना शाखा की 29 योजनाओं और लेखा एवं योजना शाखा की 23 योजनाओं को लेकर दो प्राथमिकी दर्ज कराई हैं। कुल मिलाकर, अभी तक 52 योजनाओं के घोटाले पर कार्रवाई की गई है।
नामजद आरोपी: शिक्षक, इंजीनियर और ठेकेदार
प्राथमिकी में नामजद लोगों में 36 प्रधानाध्यापक, 13 ठेकेदार, 1 कनिष्ठ अभियंता और 1 सहायक अभियंता शामिल हैं। जिन स्कूलों के प्रधानाध्यापकों पर केस दर्ज हुआ है, वे बड़हिया, कजरा, हलसी, चानन, लखीसराय शहर समेत कई क्षेत्रों से हैं।
ठेकेदारों में शामिल हैं - अमन ट्रेडर्स, नव्या इंटरप्राइजेज, एसआरएस ट्रेडर्स, दीक्षा इंटरप्राइजेज, आदि। वहीं अभियंता अभयपाल और सुबोध कुमार को भी आरोपों के घेरे में लिया गया है।
बिना निर्माण, फर्जी बिल, बंटवारा तय!
इस पूरे घोटाले की खास बात यह है कि किसी भी योजना में जमीन पर कोई कार्य नहीं हुआ, लेकिन कागजों पर योजना पूरी, भुगतान स्वीकृत और ठेकेदारों को राशि ट्रांसफर हो गई। अनुमान है कि स्थानीय अधिकारियों और विद्यालय प्रभारियों की मिलीभगत से यह फर्जीवाड़ा हुआ। पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है, और फॉरेंसिक ऑडिट के संकेत भी दिए जा रहे हैं। यह घोटाला न सिर्फ भ्रष्टाचार का बड़ा उदाहरण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि शिक्षा के नाम पर मिलने वाली सरकारी राशि का किस तरह दुरुपयोग किया जा रहा है।